भरतपुर। विप्र फाउंडेशन भरतपुर ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शीघ्रता एवं आतुरता में समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह को विधि मान्यता न देने बाबत राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन अतिरिक्त जिला कलेक्टर भरतपुर को सौपा गया। ज्ञापन में राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि समलैंगिक विवाह के अधिकार को विधि मान्यता देने का निर्णय लेने की आतुरता बरती जा रही हैं। भारत देश आज समाजिक व आर्थिक अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। वर्तमान समय में सुप्रीम कोर्ट की ओर से ऐसे मसले सुनने एवं निर्णीत करने की आवश्यकता नहीं है। देश को नागरिकों की बुनियादी समस्याओ जैसे गरीबी उन्मूलन , नि:शुल्क शिक्षा का क्रियान्वयन जनसंख्या नियंत्रण आदि समस्याए देश कि पूरी आबादी को प्रभावित कर रही है। उक्त गंभीर समस्याओ के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कोई तत्परता नहीं दिखाई ना ही कोई न्यायिक सक्रियता दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नालसा (2014), नवतेज जोहर (2018) के मामलो में समलेगिको एवं विपरीत लिंगी के अधिकारों को पूर्व से ही सुरक्षित किया है। जिससे यह समुदाय उत्पीड़ित नहीं है।
भारत में विवाह को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज द्वारा मुखर होकर विरोध किया जाना चाहिए। भारतीय संस्कृति पर सदियों से निरंतर आघात हो रहा है। फिर भी वह बची हुई है। अब भारत में इसे अपनी सांस्कृतिक जड़ो पर पश्चिमी विचारों दर्शनो एवं प्रथाओ के अधीरोपण का सामना करना पड़ रहा है जो इस राष्ट्र के लिए व्यवहारिक नहीं है। इस विषय पर कोई फैसला लेने से पूर्व सभी हितबध व्यक्तियों ,संस्थाओ से परामर्श करने के लिए आवश्यक कदम उठाए और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करे की समलैंगिक विवाह न्याय पालिका द्वारा वैध घोषित नही किया जावे ।
इस मौके पर विप्र फाउंडेशन के प्रदेश महामंत्री एवं भरतपुर जिला प्रभारी डॉ. दयाचन्द पचौरी, विप्र फाउंडेशन युवा के प्रदेशाध्यक्ष इन्दुशेखर शर्मा, जिलाध्यक्ष डॉ. सुशील पाराशर, विप्र फाउंडेशन युवा के प्रदेश महामंत्री देवाशीष भारद्वाज, प्रदेश सचिव प्रशांत उपमन, प्रदेश मीडिया प्रभारी राज कौशिक, विधि प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष लोकेश मुदगल आदि मौजूद रहे।