जगत जननी मां अम्बिका को कंगना ने एक बार फिर से पूजा दिया ‘जगत’ (संसार) में

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  • बारह सौ साल से भी अधिक पुराना है मेवाड़ के जगत की अंबिका माता का इतिहास
  • इस आस्था स्थल से ’फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत की भी जुड़ी है दिलचस्प कहानी’
  • मंदिरों की नगरी जगत कहलाता है मिनी खुजराहों

विशाल विमलेश शर्मा @ जयपुर।

उदयपुर के पास मंदिरों और पुरातन स्थापत्यकला की नगरी जगत स्थित अम्बिका माता का शक्तिपीठ यूं तो अपने में हजारों वर्षों का इतिहास समेटे हुए है। जगत गांव में स्थित इस प्राचीन शक्तिपीठ के बारे में इतिहासकारों का भी मानना है कि इस मंदिर का निर्माण खजुराहो में बने लक्ष्मण मंदिर से पहले करीब 960 ईस्वी के आसपास हुआ है। मंदिर के स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेखों से पता चलता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक अल्हट ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह प्राचीन शक्तिपीठ है। यह स्थान पांचवी व छठी शताब्दी में शिव.शक्ति संप्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है,लेकिन इस शक्ति स्थल को दुनियाभर में फिर से सुर्खियों में लाने का काम किया हैं ,फिल्म अभिनेत्री कंगना रणौत ने। जगत की अम्बिका माता कंगना की इष्टदेवी हैं। इस इष्टदेवी की खोज स्वयं कंगना ने ही अपनी मां के कहने पर की थी। मां ने कहा था कि उसके स्वप्न में एक बालिका आती हैं वह हमारी इष्टदेवी हैं। कंगना ने समाज के बड़े बुजुर्गों से पूछताछ कर आखिर राजस्थान के उदयपुर के पास जगत में अम्बिका माता की इष्टदेवी के रूप में खोज की।

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अम्बिका मंदिर से कंगना कनेक्शन
जानकारी के अनुसार कंगना के पूर्वज राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र से उदयपुर से कोई 50 किलोमीटर दूर जगत गांव से उठकर हिमाचल जाकर बस गए थे। यानी कंगना के डीएनए में मेवाड़ हैं और उसकी रगों में महाराणा प्रताप के रणक्षेत्र का खून दौड़ रहा हैं। सदैव सुर्खियों में रहने वाली कंगना को देख यही माना जाता है कि मेवाड़ी वीरांगनाओं की तरह कंगना भी शस्त्र थाम अपने विरोधियों से लोहा लेने में जुटी रहती हैं। कंगना तो स्वयं अनेको बार कह चुकी हैं कि उन्हें लडऩे की शक्ति और साहस माता अम्बिका ही प्रदान करती हैं।

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कंगना की अब तो जगत स्थित अम्बिका माता के प्रति इतनी श्रद्धा व आस्था हैं कि वे यहां आकर ना केवल अनुष्ठान करवा चुकी हैं बल्कि यहां की ज्योत ले जाकर हिमाचल के धबोई गांव में माता का भव्य मंदिर भी बनवाया हैं। धबोई में बने इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करवाने उदयपुर से ही पंडित अलकेश कुमार पंड्या के साथ पंडितों की टीम गई थी। पंड्या ही कंगना को पहली बार 15 अक्टूबर 2018 को जगत लेकर गए थे। अम्बिका माता के पुजारी शंकर गिरी गोस्वामी बताते हैं कि 2019 में भी कंगना पूरे परिवार के साथ आई थी तथा यहां अनुष्ठान भी करवाया था। कंगना ने कुछ समय पूर्व अपने भाई का शादी समारोह उदयपुर इसीलिए किया था ताकि नव विवाहित युगल जोड़ेे को मां का आशीर्वाद दिलवा सके। कंगना के भाई के शादी समारोह और अपने भाई अक्षत रनौत और भाभी रितु सागवान को जगत स्थित माता के दरबार में थोक दिलवाने वाली कंगना के परिवार की ये फोटों काफी सुर्खियों में रही थी। बेमला के डॉ.कमलेन्द्र सिंह के अनुसार जगत के पास बेदला और कुरावड़ में रणौत (राणावत)समाज के आज भी कई परिवार हैं। इस क्षेत्र के लोग इष्टदेवी के रूप में अम्बिका माता को ही पूजते हैं।

’क्यों कहते हैं जगत को मिनी खुजराहों’
सरस्वती, नृत्य भाव में गणपति, महिषासुर मर्दिनी, नवदुर्गा, वीणाधारिणी, यम, कुबेर, वायु, इन्द्र,वरूण, प्रणय भाव में युगल, अंगड़ाई लेते हुए व दर्पण निहारती नायिका, शिशु क्रीडा, वादन,नृत्य आकृतियां एवं पूजन सामग्री सजाये रमणी आदि कलात्मक प्रतिमाओं का अचंभित कर देने वाली मूर्तियों का खजाना और आदित्य स्थापत्य कला को अपने में समेटे जगत का अम्बिका मंदिर राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का मोती कहलाता है।

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मूर्तियों का लालित्य, मुद्रा, भाव, प्रभावोत्पादकता, आभूषण, अलंकरण, केशविन्यास,वस्त्रों का अंकन और नागर शैली में स्थापत्य का आकर्षण इस शिखरबंद मंदिर को खजुराहो और कोणार्क मंदिरों की श्रृंखला में ला खड़ा करता है। मंदिर के अधिष्ठान, जंघाभाग, स्तम्भों, छतों, झरोखों एवं देहरी का शिल्प.सौन्दर्य देखते ही बनता है। उत्कीर्ण लेखों से पता चलता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक अल्हट ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह प्राचीन शक्तिपीठ है। मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है।

कैसा दिखता है जगत का अम्बिका मंदिर
प्रवेश मण्डप और मुख्य मंदिर के मध्य खुला आंगन है। प्रवेश मण्डप से मुख्य मंदिर करीब 50 फूट की दूरी पर पर्याप्त सुरक्षित अवस्था में है। मंदिर के सभा मण्डप का बाहरी भाग दिग्पाल, सुर-सुंदरी, विभिन्न भावों में रमणियों, वीणाधारिणी, सरस्वती, विविध देवी प्रतिमाओं की सैंकड़ों मूर्तियों से सज्जित है। दायीं तरफ जाली के पास सफेद पाषाण में निर्मित नृत्य भाव में गणपति की दुर्लभ प्रतिमा है। मंदिर के पाश्र्व भाग में बनी एक ताक में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उत्तर एवं दक्षिण ताक में भी विविध रूपों में देवी अवतार की प्रतिमाएं नजर आती हैं। मंदिर के बाहर की दीवारों की मूर्तियों के ऊपर एवं नीचे कीचक मुख, गज श्रृंखला एवं कंगूरों की कारीगरी देखते ही बनती है। प्रतिमाएं स्थानीय पारेवा नीले-हरे रंग के पाषाण में तराशी गई हैं।

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गर्भ गृह की परिक्रमा हेतु सभा मण्डप के दोनों तरफ छोटे-छोटे प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। गर्भ गृह की विग्रह पट्टिका मूर्तिकला का अद्भुत खजाना है। यहां द्वारपाल के साथ गंगा, यमुना, सुर-सुंदरी, विद्याधर एवं नृत्यांगनाओं के साथ-साथ देवप्रतिमाओं के अंकन में शिल्पियों का श्रम देखते ही बनता है। गर्भ गृह की देहरी भी अत्यन्त कलात्मक है। गर्भ गृह में प्रधान पीठिका पर अम्बिका माता की प्रतिमा स्थापित है। मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्रृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का अम्बिका मंदिर मेवाड़ के प्राचीन उत्कृष्ठ शिल्प का नमूना है।

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