जी हां! इसे अमरत्व ही कहा जाएगा। जिस व्यक्तित्व के नाम पर गीत रचे जाते हो और जिन्हें महिला-पुरुष विभिन्न आयोजन-प्रयोजनों में गाते हो, इससे बड़ी उपलब्धि किसी व्यक्ति विशेष की क्या हो सकती हैं। यह शख्सियत हैँ भाजपा से राज्यसभा सदस्य डॉ.किरोड़ीलाल मीणा, जिन्होंंने संघर्षों का तो वर्ल्ड रिकॉर्ड ही रच डाला। अभी तक की उनकी संघर्ष यात्रा को देखे तो डॉ.मीणा ने 556 आंदोलन किए और इन आंदोलनों के कारण उन पर 153 मुकदमें लगे। वे 14 बार जेल गए व 29 बार गिरफ्तार हुए।
संघर्षों का रच डाला इतिहास
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जिस किसी की पीड़ा के बारे में सुनते हैं। बस! कूद पड़ते हैं न्याय दिलाने के आंदोलन में। तभी तो वे राजनीति में अकेले ऐसे शख्स है जिनके नाम आमजन की समस्याओंं को लेकर संघर्षों का एक सुनहरा रिकॉर्ड हैं। यह भी सच्चाई है कि डॉ.किरोड़ीलाल मीणा ने अपनी राजनीतिक यात्रा में सबसे अधिक आमजन के लिए सड़कों पर संघर्ष किया हैं। इस संघर्षयात्रा की तीन से चार घटनाएं तो ऐसी है जिसमें मृत्यु को भी डॉ.किरोड़ी ने निकट से देखा और लोहे जैसी छाती को आगे कर मौत को मात दे डाला। इन घटनाओं के घाव उनके शरीर पर आज भी ताजा है पर उन्होंने कभी इन जख्मों की परवाह ही नहीं की। उन्होंने आंदोलनों में कभी हार का मुंह देखना तो सीखा ही नहीं।
सर्वसमाज की लड़ी लड़ाई
इन आंदोलनों व लड़ाइयों में कई घटनाएं तो ऐसी भी हैं जो स्वयं के समाज के खिलाफ थी,लेकिन सच्चाई और न्याय के साथ डॉ. किरोड़ीलाल खड़े दिखाई दिए। उन्हें केवल मीणा समाज का नेता कहने वालों को शायद यह पता नहीं कि डॉ. किरोड़ीलाल ने 556 आंदोलनों में से 70 प्रतिशत आंदोलन सामान्य व ओबीसी वर्ग के लिए लड़े और न्याय के बाद ही हिले। दबंग व जुझारू इस नेता की लोकप्रियता को देख मीणा समाज के ही कई नेताओं ने मुकाबले की कोशिश की,लेकिन मैदान में कहीं टिक नहीं पाएं। डॉ. किरोड़ीलाल का आज दिन तक उनका कोई तोड़ नहीं। निर्भिक लीडर डॉ.किरोड़ी ने राजनीति के कई क्षत्रपों से भी जमकर लोहा लिया। चाहे वह उनके गुरु रहे पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैंरोसिंह शेखावत हो अथवा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे। जन से जुड़े आंदोलनों में उन्होंने यह कभी नहीं देखा कि किसकी सरकार हैं। भाजपा में रहते भाजपा सरकारों के खिलाफ भी उन्होंने आंदोलनों का बिगुल बजाया। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से राजनैतिक मतभेद के चलते उन्हें भाजपा तक को छोडऩा पड़ा। ये दीगर बात है कि राजे से इन दिनों उनके मधुर संबंध हैं।
मीणा हाईकोर्ट (नांगल प्यारीवास)
दौसा जिले के नांगल प्यारीवास गांव की जिस भूमि पर आज विश्व आदिवासी दिवस का भव्य आयोजन हो रहा हैं। उसके इतिहास का सुक्ष्म वर्णन किए बिना डॉ.किरोड़ीलाल मीणा की संघर्ष यात्रा के दर्शन अधूरे ही रह जाएंगे। मीणा हाईकोर्ट के नाम से प्रसिद्ध इस भूमि का नाम भी पंचों की पंचायत और उसको लेकर आंदोलन से जुड़ा हैं। इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ.किरोड़ीलाल ने ही किया था। उस समय की तत्कालीन भैंरोसिंह शेखावत सरकार को झुकना पड़ा था। शेखावत ने ही कहा था कि मीणा हाईकोर्ट का फैसला है इसे कोई कैसे बदल सकता हैं। तब से ही मीणा हाईकोर्ट के नाम से यह स्थान प्रसिद्ध हुआ। मीणा हाईकोर्ट की कहानी यूं तो काफी दिलचस्प और लम्बी हैं उसका विस्तृत विवरण फिर कभी। यह ऐतिहासिक स्थल आज जिस तरह से विकसित हो रहा हैं वह पूरे मीणा समाज को गौरवान्वित करने वाला हैं। इस स्थल की दूसरी खास बात यह है कि यहां होने वाले आयोजनों में समाज की जाजम पर सब मिलकर एक साथ बैठते हैँं भले ही राजनैतिक विचारधारा मेल नहीं खाती हो।
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उम्र के इस पड़ाव के बावजूद संघर्ष का जज्बा ज्यों का त्यों
दौसा जिले के महवा तहसील के एक छोटे से गांव खोररा मुल्ला में 3 नवम्बर 1951 को एक साधारण किसान परिवार में जन्में डॉ.किरोड़ीलाल का बचपन भी संघर्षोँ में गुजरा। उसके बाद भी डॉ.किरोड़ीलाल ने जवानी और अब वृद्धावस्था संघर्ष में ही गुजारे। इतनी कठिन तथा कांटों भरी यात्रा के बावजूद डॉ. मीणा में आज भी एक नौजवान से कहीं अधिक ऊर्जा हैं। डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की हाल में जयपुर में एक अगस्त को अंधेरी रात और बारिश के मौसम में जंगलों के रास्ते आमागढ़ किले तक की यात्रा चमत्कृत व विस्मित कर देने वाली हैं। पुलिस की थ्री लीयर सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ जंगल के रास्ते पहाड़ी पर स्थित आमागढ़ किले तक पहुंचने की घटना जिस किसी ने भी सुनी, वह दांतों तले अंगूली दबाएं बिना नहीं रहा। डॉ.किरोड़ीलाल मीणा का आमागढ़ की पहाड़ी पर चढने का वीडिय़ों आज भी सोशल मीडिया पर देखा जा सकता हैं।
सहज उपलब्ध, किसी को निराश नहीं लौटाते
एक राजनेता और पेशे से चिकित्सक डॉ.किरोड़ी लाल को इसीलिए दमदार नेता माना जाता हैं। डॉक्टर साहब हमेशा जनता के कार्य करने के लिए तैयार रहते है।। कहते है कि इनके पास जाने वाले लोग कभी निराश होकर नहीं लौटते। डॉ.किरोड़ी लाल जमींन से जुड़े हुए नेता है। पूर्वी राजस्थान में तो उनका जबरदस्त दब-दबा हैं। सांसद किरोड़ी लाल मीणा को खाट अथवा जमीन पर नीचे बैठ जब खाना खाते देखते हैं, तो वे एक शांत और सहजता से उपलब्ध व्यक्ति लगते हैं। इसी तरह विभिन्न सामाजिक एवं पारिवारिक आयोजनों में मीणावाटी के गीतों तथा हेला ख्याल जैसे आयोजनों में नृत्य करते देख लगता ही नहीं कि राजनीति में दहाड़ लगा ललकारने वाले 69 वर्षीय डॉ.किरोड़ीलाल ये ही हैं। अपनी गुस्सेल और आक्रामक छवि के बिल्कुल विपरीत।
डॉक्टरी के पेशे से लेकर राजनीति तक का सफर
बीकानेर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस डॉ.किरोड़ीलाल मीणा ने अपने चिकित्सक पेशे को छोड़ राजनीति में 1980 में कदम रखा और पहला विधानसभा चुनाव महवा से लड़ा, लेकिन मात्र 16 वोटों के अंतर से पिछड़ गए। आरएसएस पृष्ठभूमि के डॉ.किरोड़ीलाल ने राजनीति सेवा का सबसे बड़ा जरिया सोचकर राजनीति में कदम रखा था। डॉ.किरोड़ीलाल चुनावों में हार-जीत की परवाह किए बिना संघर्ष ही जीवन के ध्येय वाकये के साथ आज भी अपने पथ पर अडिग हैं। विधायक, सांसद व मंत्री रहे डॉ.किरोड़ीलाल वर्तमान में भाजपा से राज्यसभा सदस्य हैं, पर आंदोलन में वे पार्टी लाइन से हटकर भी सर्वसमाज के लिए संघर्ष करते रहते हैं।
पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए कुछ भी कर सकने वाले इंसान
वे कभी आपको जयपुर की सड़कों पर तो कभी सुदूर ढाणी और गांव में मोर्चा लिए खांट पर लेटे नजर आ ही जाते हैं। बूकना (सपोटरा) का बाबूलाल वैष्णव हत्याकांड व टीकरी (महवा) के शंभू पुजारी हत्याकांड तो आमागढ़ से पहले के प्रमुख आंदोलनों में से हैं जिसकी लड़ाई डॉ.किरोड़ीलाल ने ही लड़ी और न्याय दिलवाकर ही हटे। महवा पुलिस थाने से शंभू पुजारी की तो लाश को लेकर वे जयपुर में सरकार की नाक के नीचे सिविल लाइन्स फाटक तक पहुंच गए। पुलिस को बिना भनक लगे पुलिस थाने से जयपुर तक लाश को ले आने की कोई सोच भी नहीं सकता। आदिवासी महिलाओं और अनाथ बच्चों को भी सरकारी सहायता दिलवाने की मांग को लेकर वे अभी भी आंदोलनरत हैं। इन आदिवासी महिलाओं और बच्चों की मांगों को लेकर एक बार तो वे मुख्यमंत्री निवास के गेट तक तथा कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन जिस होटल में रूके थे वहां तक न्याय के लिए दरवाजे खटखटा चुके हैं। छापामार पद्धति से आंदोलन डॉ.किरोड़ी ही कर सकते हैं। अभी सरकार ने उनकी इन मांगों को पूरा करने का आश्वासन दे रखा हैं इसलिए वे शांत हैं।
जज्बा आज भी जवानी सा, धर्मपत्नी गोलमा देवी का भी पूरा साथ
इन आंदोलनों में सहभागी रहने वाली उनकी धर्मपत्नी गोलमादेवी भी विधानसभा की सदस्य व गहलोत सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। गोलामादेवी ने भी कई संघर्षों में उनके साथ खुले आसमान के नीचे धरनों पर रात गुजारी हैं। हजारों लोगों को ले दौसा से जयपुर तक कूच और भारतमाला योजना के तहत आने वाली किसानों की जमीन का उचित मुआवजे की मांग को लेकर गड्ढ़े में सर्द रात गुजारने वाले डॉ.किरोड़ीलाल का जज्बा आज भी देखने लायक हैं। पहले एसएमएस अस्पताल के सामने वाले सरकारी आवास तथा अब जगतपुरा स्थित स्वयं के निवास पर जुटने वाली भीड़ से अंदाजा लगाया जा सकता है। कहते है कि थक हारकर व्यक्ति आखिर न्याय की उम्मीद से उनके यहां पहुंचता हैं।
यह डॉ.किरोड़ी की अदालत है जहां सबको न्याय मिलता हैँ। जयपुर से दौसा को अलग जिला बनवाने के आंदोलन मे भी अग्रणी रहे डॉ. किरोड़ीलाल मीणा 69 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह फीट हैँ। डॉ. किरोड़ीलाल मीणा कभी दिल्ली तो कभी जयपुर तथा कभी करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा अथवा उदयपुर संभाग का आदिवासी इलाका वे बिना थके हारे जनता के बीच पहुंच ही जाते है।