काश ! सब राजनेता ऐसे होते …

lalit kishore chaturvedhi bjp

जाति-सम्प्रदाय से ऊपर उठकर करते थे पीड़ित मानवता की सेवा  
भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे ,भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रवादी चिंतक स्व.डॉ. ललित किशोर चतुर्वेदी जी को राजनेता के रूप में तो प्रायः सब जानते हैं पर उससे इतर पीड़ित मानवता की सेवा में जितना योगदान उनका रहा शायद ही किसी अन्य राजनेता का रहा हो। उन्होंने अपने चुनिंदा दोस्तों के सहयोग से एसएमएस अस्पताल में हार्ट,केंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाने का तो बाकायदा प्रकल्प चला रखा था। इसके लिए बाकायदा एक आदमी प्रतिदिन अस्पताल में बैठता था। रात दिन पीड़ित मानवता की सेवा को तत्पर रहने वाले संघनिष्ठ ललितजी पर विरोधी भले ही कट्टरपंथी होने के आरोप लगाते रहे हो पर वे सेवा के अपने मिशन में जाति-साम्प्रदायिकता आड़े नहीं आने देते थे। घटना वर्ष 2000 की उदयपुर की है। रात्रि 12 बजे प्रसूता का भाई मेरे पास आया और बताया कि उसकी बहन के डिलेवरी हुई हैं। डॉक्टरों का कहना हैं कि सुबह छह बजे तक ये जरूरी इंजेक्शन लगना हैं नहीं तो कुछ भी हो सकता है। ये इंजेक्शन उदयपुर में उपलब्ध नहीं हैं। इंजेक्शन जयपुर से किसी तरह आये तो बात बने। ललित जी को फोन लगाया गया और उन्हें प्रसूता की जान बचाने  के लिए इंजेक्शन की आवश्यकता बताई गई। वे कोटा थे फिर भी उन्होंने बिना देर किए एक आदमी कोटा और दूसरा जयपुर में दौड़ाया तथा इंजेक्शन का इंतजाम रातोरात कर उदयपुर भिजवाया। मुस्लिम परिवार के सदस्य ललित जी की इस महानता को स्मरण कर इसके लिए मेरा भी शुक्रिया अदा करते रहते हैं। ऐसे थे ललित जी। ये तो एक उदाहरण हैं। मानवीय संवेदनाओं से जुड़े ऐसे अनगिनत किस्से हैं ललित जी के।पुण्यतिथि पर  ललित जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
  – विमलेश शर्मा, जयपुर

सट्टे का गलत धंधा छुड़वा खुलवाई किराने की दुकान

lalit kishor chaturvedhi bjpआज हम राजस्थान की एक ऐसी सख्शियत को याद कर रहे हैं जिन्होंने राजनीती मे रहकर सामाजिक सरोकार के कार्यो को विशेष महत्व दिया। मानवीय संवेदना से भरपूर राजस्थान भाजपा के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ललित किशोर चतुर्वेदी ने राजस्थान में मंडल स्तर तक के कार्यकर्ता से सीधा संवाद रखा। वे कानून की पालना सख्ती से करते थे और करवाते भी थे परन्तु मानवता के कारण कभी-कभी उन्हें कानून को भी नजर अंदाज करना पड़ा। बात उस समय की है जब वे राज्यसभा के सदस्य थे और कोटा में गुमानपुरा मे रहने वाले एक अल्पसंख्यक कार्यकर्ता को पुलिस ने सट्टे की खाईवाली के आरोप मे पकड़ लिया।  आरोपी के परिवारजनों ने चतुर्वेदी जी से उसे छुड़ाने का आग्रह किया। आरोप की जानकारी होने पर पहले तो चतुर्वेदी जी बहुत नाराज हुए ,लेकिन जब आरोपी ने उन्हें रोते हुए बताया की वह स्वयं भी ऐसा घृणित कार्य नहीं करना चाहता, परन्तु परिवार का पेट भरने के लिए उसे मजबूरी में यह कार्य करना पड़ रहा है। उसने बताया की उसका चूल्हा ही खाईवाली के कारण जलता है। चतुर्वेदी यह बात सुनकर क्रोध की  जगह चिंता मे भर गए। उन्होंने तत्काल आरोपी से जानना चाहा की उसके परिवार के लिए न्यूनतम कितने धन की आवश्यकता है। कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकला की 8हजार रुपए मासिक की व्यवस्था हो तो कार्यकर्ता अपराध की दुनिया को छोड़ कर इज्जत की जिंदगी जी सकता है। उन्होंने तत्काल अपने कार्यकर्ता के लिए सहयोग राशि एकत्रित कर परचूनी की दुकान खुलवा दी और एक परिवार को अपराध की दुनिया से हटाकर स्वाबल्मन की राह पर जीने का रास्ता दिखा दिया। काश! ऐसी ही भावना अन्य राजनेताओं  में भी हो तो “नेता” शब्द गाली से बच जाएगा
उमेन्द्र दाधीच
( पेशे से पत्रकार उमेन्द्र दाधीच ने लम्बे समय तक ललित जी के निजी सहायक के रूप में कामकाज संभाला।)

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