धनोप माता: जहां माता के रूप में स्वयं जगदीश विराजते हैं

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-सात स्वरूपों में प्रकट हुई मां,राजा धुंध ने यहां विराजित किया
-पुरातत्व महत्व का है यह पौराणिक स्थान,पुराणों में भी इसका वर्णन
-इसे भी दाधीच ब्राह्मण मानते हैं अपनी कुलदेवी, अन्य समाजों में भी पूज्यनीय

@ उमेन्द्र दाधीच

राजस्थान को देवी देवताओं की धरा माना गया है। भीलवाड़ा जिले में स्थित धनोप माता का मंदिर भी ऐतिहासिक और पुरा महत्व का प्रमुख केंद्र है। धनोप माता को भी दाधीच (दायमा )ब्राह्मणों की कुल देवी दधिमती माता का ही स्वरूप माना गया है।

यह स्थान भीलवाड़ा से 80 कि. मी. दूर है वाया विजय नगर 30 कि. मी की दूरी है। यहां के लिए प्रत्येक एक घंटे में बस उपलब्ध है। धनोप माता के प्राकट्य के बारे में अनेक कथाएं है। विभिन्न पुस्तकों, विद्वानों और ग्रंथो के आधार पर कहा जा सकता है कि माता का यह स्थान काफी पुराना है। पुराण में भी राजा धुंध की कुल देवी माँ जगदेश्वऱी के नाम से वर्णन है।देवी भागवत में राजा धुंध द्वारा माता जी की पूजा अर्चना का वर्णन है। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने भी माँ के इस मंदिर को तीन से साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व का माना है। विद्वानों के अनुसार देवी मूलत: गोठ मांगलोद जिला नागौर राजस्थान में स्थित महर्षि दधीचि की बहिन जो दधीसागर उत्पन्न करने के कारण दधिमती के नाम से पूजी गई।

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मां धनोप का संवंध भी गोठ मांगलोद से
इसी आधार पर माना जाता है की माँ धनोप गोठ मांगलोद में ही विराजमान रही। गोठ मांगलोद में माता के पुजारी चिपडा गोत्र के दायमा ब्राह्मण थे जो माँ की सेवा पूजा, अर्चना किया करते थे। माँ दधिमती की लीलाए अपरमपार है। इनमें एक लीला यह भी है की प्राचीन समय में गोठ मांगलोद में पुजारियों (दायमा )के 20 घर ही थे, जिनमें किसी कारण वश अधिकांश परिवार समाप्त हो गए। केवल एक-दो परिवार ही शेष बचे। उन्होंने इसे माँ भवानी का कोप, नाराजगी समझ कर व्यथित होकर पूजा का परित्याग कर अन्यत्र जाने का निर्णय ले लिया और पुष्कर तीर्थ से पाराशर ब्राह्मणो को बुलाकर पूजा का काम सौंप दिया।

 

dhopभूल्या पुजारी के संग यहां आई माता
भूल्या जी नामके चिपडा दायमा ने अपने परिवार, गो सम्पदा के साथ बेलगाडिय़ों से गोठ मांगलोद से प्रस्थान कर दिया। मालवा की तरफ प्रस्थान करते समय रास्ते में विश्राम लेते हुए खारी नदी के निकट पहुंचे वहां माँ दधिमती ने दर्शन देकर उनसे संवाद किया। मां ने भूल्या से कहा बताया कि बीते समय को भुलाकर नया जीवन शुरू करो और आश्वस्त किया कि मैं तुम्हारे एक के बीस करुँगी। तुम्हारे परिवार को फिर से विकसित करुँगी। मुझ पर भरोसा कर कुछ दिन यही विश्राम करो। मैं निकट भविष्य में शीघ्र ही यही रेत के टीले पर बालू पर प्रकट होऊंगी तथा यहां के राजा द्वारा तुम्हे पुन: मेरी सेवा पूजा में बुला लूंगी। माता चिपडा परिवार की भूल को अनदेखी कर परिवार का पालन का वचन देकर अदृश्य हो गई। यह भविष्यवाणी सुन भूल्या जी वही विश्राम करने लगे ।

मां ने दर्शन देकर बताया राजा को
राजा धुंध जिनका किला खारी नदी के किनारे पर बना हुआ था जो आज भी विद्यमान है,वे राजराजेश्वर जगन्ननाथ जी के दर्शन के लिए गए हुए थे। वे जब कोलकाता शहर पहुंचे। उनको माँ दधिमती ने दर्शन दिये और आदेश दिया तुम वापस लौट जाओ। मैं जगदीश के रूप मे तुम्हारे ही घर में हूँ। मैं तुम्हारे गांव मे टीले में बालू से दबी हुई हूँ,परन्तु राज हठ के चलते राजा एक सप्ताह तक जगदीश जाने की जिद्द करता रहा। राजा जैसे ही कोलकाता से रवाना होता अंधे हो जाता और वापस कोलकाता आते ही रौशनी लौट आती। अंत में राजा दु:खी होकर साक्षात दर्शन करने का निश्चय कर माँ की अराधना करने लगा। भगवती ने राजा को दर्शन देकर आश्वस्त किया कि मैं तेरे घर बैठे जगदीश ही हूँ। मेरे यहां पर कोई भेदभाव नहीं है।

मां के अलग-अलग सात रूप
दर्शन पाकर राजा भाव विभोर हो गया और कोलकाता से अपने राज्य को लौट गया और निर्धारित टीले की खुदाई करने लगा। वह टीला जो आसपास की समतल भूमि पर 90फि़ट की ऊंचाई पर है जिस पर सौ फि़ट लम्बा चौड़ा मैदान भी है। थोड़ी ही देर में माता प्रकट हो गई । माता सात बहनो के साथ प्रकट हुई । प्रथम अष्टभूजा, द्वितीय श्री अन्नपूर्णा जी, तृतीय चामुंडा जी, चतुर्थ बिश्वेन जी (महिसासुर मर्दनी ), पंचम कालकाजी, इन पांच मूर्तियों के दर्शन श्रृंगार होने पर और दो मूर्तियां श्रृंगार के अंदर ही रहकर भक्तो की मनोकामना पूर्ण करती हैं। इस प्रकार मात भवानी के दर्शन पाकर राजा भाव विभोर हो गया और बोला माता यहां आपके चरण पखांरने के लिए जल नहीं है। इस पर माता ने संकेत दिया उस स्थान पर थोड़ा खोदने पर जल निकल आया। वहां आज भी कुआँ बना हुआ है।

स्वयं माता ने ही सेवा के लिए की पुजारी परिवार की नियुक्ति
राजा ने पुन: माँ से करबद्ध निवेदन किया की आपकी सेवा के लिए पुजारी भी नियुक्त कर दे। इस पर माता ने राजा को कहा कि खारी नदी के किनारे मेरा पुजारी परिवार सहित आया हुआ है उसे ले आओ। राजा स्वयं जाकर भूल्या जी का लेकर आए और आजीविका के लिए भूमि भी आवंटित की। इन पुजारी जी के प्रौढ अवस्था में एक संतान हुई जिनका नाम मादू जी रखा गया। उनके भी तीन पुत्र हुए कालू जी, देवा जी, जग्गा जी और इन्ही के वंश के 20 घर चिपडा दायमा पुजारियों के आज भी है जो बारी- बारी से ओसरे के अनुसार पूजा करते है ।

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पुजारियों के लिए भी कड़े नियम
जिस पुजारी की सेवा का समय निर्धारित है उस समय पुजारी को अखंड ब्रह्माश्चर्य नियमो का पालन कर वानप्रस्थजीवन जीना होता है। यहां तक क्षोर कर्म साबुन से नहाना भी वर्जित है।

फूल-पतियों के माध्यम से माता देती हैं प्रश्नों के उत्तर
पहले पुजारी चिक (पर्दा )के अंदर जाकर माँ से प्रश्न पूछते और जो उत्तर माँ देती। मां ने जो बताया पुजारी भक्तों को बता देते।अब प्रश्नो का जवाब फूल-पतियों के द्वारा दिया जाता है । इसी मंदिर में भैरवनाथ का मंदिर भी राजा धुंध ने ही बनवाया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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