महावीर प्रसाद शर्मा,मुम्बई
विप्र फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कलम से
सुबह कोलकाता तो शाम को जयपुर और रात्रि में मुम्बई और उसके अगले दिन गुवाहाटी में प्रवास। रात को सोते समय और भोर में आंखे खोलते ही जिसके सामने समाज की तस्वीर रहती हो। मोबाइल की घंटियां तो मानो उनके यहां थमने का नाम ही नहीं लेती। दिन में देश और रात्रि में विदेश में बैठे सामाजिक बंधुओं से चर्चा का सिलसिला मोबाइल पर बिना रुके, बिना थके चलता ही रहता है। फ्लाइट में जब मोबाइल एयरप्लेन मोड पर आ जाता है तब भी मोबाइल से अंगुलियां हटती नहीं। मोबाइल के पेड पर तैयार हो जाता है ड्राफ्ट। कार में ड्राइवर के बराबर अगली सीट पर ही नींद को पूरी कर लेना और बिना रुके सैंकड़ो मील का सफर पूरा कर चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान लिए लोगों के बीच पहुंच कार्यक्रम में शामिल हो जाना।
व्यक्ति नहीं संस्था
ये सब सुनकर ही हम और आप तो आहे भरे बिना नहीं रह सकते, क्योंकि इतनी सारी खूबियां कुछ बिरलो में ही मिलती है। इन सबको लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में तो चर्चा की जाती हैं। मोदी की बिना रुके, बिना थके काम करने की क्षमता के बारे में तो पढऩे व सुनने को मिलता है पर देश मे ऐसी अद्भुत शक्ति के मालिक और भी बहुत है। उनमे एक नाम विप्र फाउंडेशन के संस्थापक संयोजक सुशील ओझा का भी है। ओझा को उनके इन्हीं गुणों के कारण व्यक्ति नहीं संस्था के रूप में जाना जाता हैं।
अकल्पनीय,लेकिन सत्य
माह में दस से पन्द्रह दिन सामाजिक सरोकार के लिए ही प्रवास पर रहना और उसके साथ अपना व्यापार-व्यवसाय भी संभालना। कोलकाता में रहते हुए भी सामाजिक गतिविधियां ही अधिक रहती हैं। ये सब अकल्पनीय लगता है,लेकिन सत्य है। ओझा को निकट से जानने वाले भी उनकी एक साथ इतनी खूबियों से शायद कम ही परिचित होंगे। विप्र समाज के लिए इस तरह दौड़ सकने वाले व्यक्ति की वाणी में भी उतनी ही मिठास भरी है। दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में देश के विभिन्न क्षेत्रों से निर्वाचित 25 विप्र सांसदों व मंत्रियों को 40 मिनिट तक पिन ड्राप साइलेंट मुद्रा में सुशील ओझा को सुनते प्रत्यक्ष देखा है। अच्छे वक्ता के गुणों से भरपूर शब्दों के चयन में भी महारथी सुशील ओझा इन्हीं खूबियों के कारण आलोचकों के बीच भी चर्चाओं में बने रहते हैं।
संस्कारी,सबके साथी, औरों से कुछ अलग
इतनी व्यस्तता के बीच भी सोशल मीडिया के मंच पर हर समय उन्हें सक्रिय देखा जा सकता है। सोशल मीडिया पर तो उनका ध्यान यहां तक रहता है कि छोटे से छोटे कार्यकर्ता को कहीं बधाई देना छूट ना जाएं। इन्ही संबंधों और संपर्कों की थाती है कि देश-दुनिया के किसी भी कौने में आपातकाल में लोगों की मदद करने में वे कामयाब है। दु:खों में तो ओझा अपने कट्टर विरोधी को भी संबल प्रदान करने में कभी कोई संकोच नहीं करते। जिम्मेदारी को निभाने की कला में भी हर कोई निपुण नहीं होता। दूसरों पर टाला जाता है, बहाने बनाए जाते हैं, आरोपों और अन्य की गलतियों को कसूरवार ठहराकर खुद की छवि को बेदाग साबित करने की कोशिश होती है। इस मामले में सुशील ओझा औरों से कुछ अलग है। संस्कार उनमें कूट-कूट कर भरे हैं। हजारों की भीड़ में भी अपनों से बड़े व आत्मीयजनों के चरणस्पर्श करना और अदब के साथ झुककर प्रणाम करना शायद ही वे कभी भूलते हैं।
राजनीतिक महत्वकांक्षा से दूर
इनता सब कुछ होते हुए भी सुशील ओझा की राजनीतिक महत्वकांक्षा भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती । हां! राजनेताओं से उनकी प्रगाढ़ता ऐसी है कि समाजहित की बात को वे आसानी से मना ले जाते हैं। चाहे विप्र समाज को लोकसभा व विधानसभा चुनाव में टिकट का मामला हो अथवा सामाजिक सरोकारों से जुड़ा अन्य कोई निर्णय। कई एमएलए, एमपी इस सच्चाई को जानते हैं भले ही सार्वजनिक रूप से इस सत्यता को बोल नहीं सके।
विप्र फाउंडेशन के जिक्र बिना चर्चा अधूरी
राजनीति समाज से इतर नहीं हैं। समाज के देदिप्यमान नक्षत्र, विलक्षण प्रतिभाशाली, दूरदृष्टा, मृदुभाषी, कठोर परिश्रमी, राष्ट्रवादी चिन्तक, सफल संगठक, प्रखर वक्ता, दृढ़ संकल्पी, सादगी से परिपूर्ण, करोड़ो भूदेवों के आशीर्वाद से अभिशिक्त, विप्र जागृति के जन नायक सुशील ओझा को लेकर चर्चा विप्र फाउंडेशन के जिक्र बिना अधूरी है। सुशील ओझा के संयोजन में वर्ष 2009 में शस्य श्यामला बंग भूमि कोलकाता में प्रथम विप्र महाकुंभ का विराट आयोजन हुआ। महाकुंभ में विप्र मंथन के उपरान्त देशभर से आए हजारों विप्रजनों ने सर्वसम्मति से सुशील ओझा को दायित्व सौंपा कि वे ब्राह्मण समाज में पुन: जागृति व सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय संगठन का निर्माण करने में अग्रणी भूमिका निभाएं।
जुटता गया कारवां,पांच विराट विप्र महाकुंभ
आदेश शिरोधार्य हुआ और अनेक लोगों ने कंधे से कंधा मिलाया। दिल्ली, चेन्नई, वाराणसी, हैदराबाद, नागपुर, वृन्दावन, भुवनेश्वर व मुम्बई में चिन्तन बैठक हुई। वर्ष 2010 के परशुराम जयंती की पूर्व संध्या पर गोविन्ददेव प्रभु के श्रीचरणों में जयपुर में विप्र फाउंडेशन नामक युगान्तकारी संगठन के निर्माण की घोषणा की गई। अनेकानेक समाजहितैषी स्वजन निरन्तर जुड़ते गए और कार्यकर्ताओं के जज्बे, जोश और कड़ी मेहनत के चलते देश के विभिन्न राज्यों में संस्था का विस्तार होने लगा। संस्था ने समाज की जरूरतों व अपनी कार्यक्षमताओं का आंकलन करने तथा ब्राह्मण जन जागरण के उद्देश्य से योजनाबद्ध तरीके से कोलकाता के पश्चात् गुवाहाटी, दिल्ली, जयपुर एवं सूरत के अभूतपूर्व सफलता के साथ पांच विराट विप्र महाकुंभ आयोजित किए।
विप्र जागृति के मुख्य सूत्रधार
पिछले दशक में आई ब्राह्मण जागृति के मुख्य सूत्रधार के रूप में सुशील ओझा को जाना जाता है। विप्र फाउंडेशन आज जिस ऊंचाई पर है उसमें सुशील ओझा का अतुलनीय योगदान है। उनकी दूरदर्शिता एवं सांगठनिक क्षमता ने ब्राह्मण समाज को खूब लाभान्वित किया है। सभी प्रमुख शहरों सहित विभिन्न स्थानों पर विविध गतिविधियों के माध्यम से सकारात्मक वातावरण तैयार हुआ है। इसके चलते एक नव चेतना का जयघोष हुआ। व्यक्ति जगा, भावनाएं जगी, संस्थाएं जगी, विभिन्न न्यातें जगीं तथा और अधिक सक्रिय होकर समाज विकास को तत्पर हुई। समाज के सभी वर्ग ने मजबूती और विश्वास के साथ विप्र फाउंडेशन की सोच, योजनाओं एवं कार्यशैली को अंगीकार कर अपना भरपूर समर्थन प्रदान किया।
विप्र समाज का राष्ट्रव्यापी प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र संगठन विप्र फाउंडेशन
विशेष रूप से युवाजन, बरसों से कार्यरत समाज की विभिन्न न्यातों की गौरवमयी संस्थाएं तथा बरसोंं से ब्राह्मण हितार्थ कार्यरत स्वजन पूरे भारतवर्ष में विप्र फाउंडेशन को अपने अशीर्वाद से अभिशिक्त कर रहे हैं। संस्था की कार्ययोजनाएं अत्यन्त प्रभावी व उपयोगी सिद्ध हो रही है। इसमें कोई संदेह नहीं की आज भारतवर्ष में ब्राह्मणों का राष्ट्रव्यापी प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र संगठन विप्र फाउंडेशन ही है। संस्था ने अपने कार्यों की बदौलत न सिर्फ अपने आपको स्थापित किया है, बल्कि ये सोच युगांतकारी व परिवर्तनकारी सिद्ध हुई है।
प्रेरणापुंज सुशील ओझा
संस्था के सफल प्रयासों का प्रतिफल ही है कि अब तक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ो विप्रजनों का संस्था की ओर ध्यान आकर्षित हुआ, लाखों लोग सकारात्मक भाव से एक दूसरे के करीब आए हैं। हजारों जरूरतमंद परिवार लाभान्वित हुए । सैकड़ों युवाओं के उच्च शिक्षा स्वावलंबन के सपने साकार हुए। पचासों कल्याणकारी प्रकल्प प्रारम्भ हुए। दसों स्थाई सेवा केन्द्रों की स्थापना हुई है। दो बड़े शहर कोलकाता व सूरत में भवन बन चुके है। उदयपुर में विप्र कॉलेज का अपना भवन बन चुका है। जल्द ही जयपुर में गौरव गरिमा युक्त भव्य भवन बनेगा। इसके लिए सरकार से जमीन मिल चुकी है। कोरोनाकाल को ही ले तो विप्र फाउंडेशन ने समपर्णभाव से जो सेवाकार्य किए और अभी निरंतर जारी है उसके प्रेरणापुंज सुशील ओझा ही है। सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना से ओत प्रोत सुशील ओझा गाय,गीता और गायत्री के प्रति भी पूरी तरह से कृत संकल्पित हैं।
सर्वसमाज को भी साथ लेकर चलने की क्षमता
विप्र फाउंडेशन भले ही ब्राह्मणों को वैश्विक संगठनों हो पर उसके उद्देश्यों में उन्नत समाज, समर्थ राष्ट्र न केवल जोड़ा गया है, बल्कि विप्र फाउंडेशन की विभिन्न योजनाओं में भी सर्वसमाज को लाभान्वित करने का संकल्प लिया गया हैं। कन्या विवाह की योजना सहित कई में सर्वसमाज की गरीब बेटियों को सुकून राशि दी जा रही हैं। कोरोनाकाल में विप्र फाउंडेशन ने जो मदद की उसमें तो धर्म-समाज कुछ भी नहीं पूछा गया। जरूरतमंद व पीड़ित को कैसे मदद की जा सकती है इसी शुद्धअंतकरण के भाव से विप्र समाज ने सेवाकार्य किए हैं। सुशील ओझा का अन्य समाजों में जिस तरह की पहुंच है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। वे एक समाज की संस्था में पदाधिकारी तक रह चुके हैं। विप्र समाज के मुखिया के नाते सर्वसमाज में मान-सम्मान और बढ़ा हैं।
मूलत:राजस्थानी, धमक पूरे देश में
मूलत: राजस्थानी और बीकानेर के निवासी ओझा का जन्म कोलकाता में स्व.श्री कोडराम-श्रीमती शांतिदेवी के घर हुआ। कोलकाता यूनिवर्सिटी से स्नातक ओझा की धर्मपत्नी श्रीमती प्रेमलता जी एक सफल गृहणी है। आप दो सुपुत्रियों सौ.कां. संगीता व कविता तथा एक सुपुत्र दीपक के पिता है। दीपक उन्हीं के साथ ही व्यवसाय संभाल रहे हैं,जबकि दोनों सुपुत्रियों का विवाह हो चुका। ओझा का हावड़ा, कटक एवं दिल्ली मेें कैमिकल निर्माण का उद्योग व्यापार है। वे वस्त्र एवं प्रॉपर्टी व्यवसाय से भी जुड़े हुए है। सामाजिक सरोकारों का जहां तक सवाल है छात्र जीवन से ही सामाजिक संगठनों के कार्यों में रुचि लेने लगे थे। ओझा दर्जनों सामाजिक संगठनों के विभिन्न पदों पर भी रह चुके हैं। एक दशक से अपनी समस्त गतिविधियां ब्राह्मण समाज पर केन्द्रित कर विप्र फाउंडेशन के माध्यम से जन कल्याण के कार्य में लगे हुए हैं। ओझा जन्में भले ही कोलकाता में हो मूलतः राजस्थानी हैं और उनकी धमक पूरे देश में हैं।