एक चमत्कारी देवी-कुंजल माता

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एमएफए @ डॉ पवनकुमार पारीक

कुन्जल माता का मन्दिर नागौर जिले में जायल तहसील के डेह ग्राम में अवस्थित है। यह नागौर से 21 किमी.दूर नागौर-लाडनू- सुजानगढ़ मार्ग पर स्थित है।

माता के बारे में यह कहा जाता है कि इस ग्राम का जिसका प्राचीन नाम चांपावत नगरी था जहां माताजी संवत् 1089 में प्रकट हुई। देवी को ब्याहने दो बारातें आ गई तो खून खराबे की आशंका से देवी पृथ्वी में समां गई। भाई ने उसे रोकने का प्रयत्न किया किन्तु हाथ में केवल चुनरी का पल्ला रह गया। वह दोनों परिवारों के बीच होने वाली लड़ाई को रोकना चाहती थी जिस कारण उन्होंने ऐसा किया। तब से लोग कुन्जल माता की क्षेत्र में पूजा कर रहे है।

 

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भव्य मंदिर परिसर

पहले यहाँ केवल एक चबूतरा था। यहां चुना नाथ जी महाराज ने तपस्या की थी। कालान्तर में यहाँ लाम्बिया के श्री भंवरलाल जी पुरोहित को आये दिव्य स्वप्न्न के बाद उन्होंने मन्दिर का निर्माण करवाया। यहां 33 बीघा भूमि पर 50 कमरों की धर्मशाला ओर 2000 के जागरण का विशालकाय मंडप, शिव मंदिर, मनमोहक हरियाली, बड़े हॉल आदि शानदार निर्माण के अलावा अभी यज्ञ शाला का निर्माण हो रहा है।

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अन्य समाजों में भी हैं देवी मां की मान्यता

यह मंदिर को पवित्र माना जाता है और पारीक,जोशी,लापस्यास,बुधानियो और कई अन्य जातियां भी कुंजल माता को कुलदेवी के रूप में पूजती है। मंदिर में नवरात्रि के दौरान भव्य कार्यक्रमों का आयोजन होता है। दशहरे पर लोगों द्वारा डांडिया का भी आयोजन किया जाता है ।

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प्रबंध समिति

वर्तमान कार्यकारणी में चेन्नई में रहने वाले लक्ष्मीकांत जी पुरोहित अध्यक्ष एवं बजरंगलाल जी जोबनेर कार्यकारी अध्यक्ष है। पारीक समाज के असंख्य लोग हर आयोजन में इक्कठा होते है। हरिनारायण जी पारीक उर्फ भोम जी जोधपुर वाले संस्थान के उपाध्यक्ष है । आपने हेरिटेज लुक देने के लिए बड़ा गेट प्रवेश द्वार पर बनाया है तथा नक़्शे के मुताबिक सभी भवनों का निर्माण हो, इसी पर कार्य कर रहे है।

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 – लेखक मंदिर कमेटी के स्थायी आमंत्रित सदस्य एवं विप्र फाउंडेशन के राष्ट्रीय महामंत्री सहित कई संस्था व संगठनों से जुड़े हुए हैं।

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