राजनीति के महारथी राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अचूक निशानेबाज भी है जिनकी रायफल से निकली गोली सटीक निशाने पर लगती है। यह दीगर बात है कि कभी-कभी ख्यातिनाम शूटर से भी चूक हो जाती है। पायलट सरनेम उन्हें अपने पिता से विरासत से मिला पर उन्हें भी उड़ान भरनी आती हैं।
इस राजनीति के खिलाड़ी सचिन पायलट को लेकर बहुत कम लोगों को पता होगा कि उन्होंने शूटिंग में तो कई राष्ट्रीय राइफल और पिस्तौल शूटिंग चैम्पियनशिप में दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया। सचिन ने क्षेत्रीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में भी सेवाएं दी हैं, इसलिए उन्हें क्षेत्रीय सेना में लेफ्टिनेंट पायलट के रूप में भी जाना जाता है। कांग्रेस के इस दिग्गज नेता को पिता की तरह राजनीती के साथ-साथ आकाश में उड़ान भरने का शौक भी कम नहीं है । विमान उड़ाने के लिए उन्होंने 1995 में न्यूयॉर्क से प्राइवेट पायलट का लाइसेंस हासिल किया।
समय ने सब कुछ सीखा दिया
कहते है कि व्यक्ति गिरते पड़ते ही कुछ सीख पाता है। ये बात सचिन पायलट पर भी लागू होती हैं। कान्वेन्ट की पढ़ाई और अंग्रेजी दा दोस्तों के बीच दिन रात चर्चा में मशगूल रहने वाले सचिन पायलट को समय ने सबकुछ सीखा दिया। पायलट ने 2004 में जब पहला लोकसभा चुनाव दौसा से लड़ा था तो उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष की थी। उन्हें अपने पिता स्व.राजेश पायलट के अकस्मात निधन के कारण राजनीतिक विरासत को संभालना पड़ा,लेकिन सचिन पायलट ने राजनीति में अपनी पहली लैंडिंग ही दौसा में ऐसी की कि उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दौसा जब सुरक्षित सीट हो गई तो अजमेर से भाग्य आजमाया और उसमें वे विजयी हुए। उन्हें 2012 में यूपीए 2 में मनमोहनसिंह सरकार में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के साथ कॉरपरेट मामलों के मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। उस समय सचिन पायलट मंत्रिमंडल में सबसे कम उम्र के सदस्य थे।
जनता के बीच बने रहने की साधना ने किया पायलट को राजस्थान में स्थापित
ऊर्जावान इस नौजवान की काबलियत को देखकर ही उन्हें राजस्थान पीसीसी का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया था। पायलट ने जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाली तब कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनावों में मात्र 21 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। सचिन पायलट को राजस्थान आते ही तेज झटके लगे। मोदी की आंधी के कारण 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें गंवानी पड़ी। पायलट स्वयं भी अजमेर से हार गए,लेकिन पायलट ने इस निराशाजनक वातावरण भी पांव नहीं छोड़े और राजस्थान में रहकर ही मुकाबले की ठानी। पायलट इस मिशन में जुट गए कि राजस्थान में कांग्रेस कैसे फिर से सत्ता में लौटे। इसके लिए उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलनों का मोर्चा खोल दिया। पायलट ने सड़कोंं पर संघर्ष करते हुए कार्यकर्ताओं के साथ लाठियां भी खाई। जनता के बीच बने रहने की साधना का असर यह हुआ कि फरवरी 2018 में हुए अजमेर सीट के लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को विजयी बना अपनी हार का बदला चुका दिया।
तपनभरी आवों हवा से तपकर बने कुंदन
राजस्थान में लू भरे थपेड़े खा-खा कर पायलट में ऐसा राजनीतिक निखार आया कि वे इसी मरुधरा के होकर रह गए। राजस्थान की तपन भरी आवों हवा में तपकर वे कुंदन बन गए। प्रदेश का जनमानस उन्हें भावी सीएम के रूप में देखने लगा। यहां तक की राज्य विधानसभा के 2018 के अंत में हुए चुनावों में उनकी ताजपोशी तय सी मानी जा रही थी,लेकिन विधानसभा की 200 में से कांग्रेस को 99 सीटें मिलने के कारण 99 का फेर ऐसा आया कि एक झटके में सबकुछ बदल गया। कांग्रेस आलाकमान ने सत्ता की चाबी दो बार के मुख्यमंत्री रहेअशोक गहलोत को सौंप दी। सुलह समझौते के बाद उन्हें उपमुख्यमंत्री पद पर ही संतोष करना पड़ा। डेढ साल तक तो सत्ता व संगठन का गठजोड़ जैसे-तैसे चलता रहा,लेकिन सरकार में अपने आपको तथा समर्थकों को उपेक्षित महसूस किया तो इस युवा नेता से रहा नहीं गया और उन्होंने बगावत का झण्डा बुलंद कर दिया।
कुछ पाने के लिए कुछ गंवाना भी पड़ता हैं
बस! पायलट यहीं सही निशाने से चूक गए। पाायलट जिनके लिए आवाज उठा रहे थे तथा जिन्हें पायलट ने ही मंत्रिमण्डल में स्थान दिलवाया वे ही कुर्सी के लालच में पीछे खिसक गए। समर्थकों के 45 के आंकड़े में से केवल 19 साथी ही ऐसे बचे जो पायलट के साथ अंत तक डटे रहे। आखिर सुलह समझौता हुआ और उनकी घर वापसी हुई। इस बीच उन्होंने इस राजनीतिक चूक के कारण न केवल उपमुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रस अध्यक्ष पद गंवाया,बल्कि उनका साथ देने वाले दो मंत्रियों को भी सत्ता सुख से हाथ धोना पड़ा। कांग्रेस के हरावल दस्ते माने जाने वाले सेवादल, युवा कांग्रेस और एनएसयूआई जैसे संगठन भी उनके समर्थकों के हाथ से खिसक गए। कुछ पाने के लिए कुछ गंवाना भी पड़ता हैं। सचिन पायलट पर ये कहावत भी काफी हद तक सटीक मानी जा सकती हैँ।
बढ़ी लोकप्रियता ने विरोधियों को भी किया सोचने पर मजबूर
खैर! कहते है न कि देर आएं,दूरुस्त आएं। पायलट की इस नई राजनीतिक पारी में जो निखार देखने को मिल रहा है उससे तत्काल भले ही कुछ हासिल ना हो,लेकिन किसी पद पर न होतेे हुए भी पायलट की लोकप्रियता का जो ग्राफ तेजी से बढ़ रहा हैं। उसने विरोधियों को भी सोचने को मजबूर कर दिया हैं। पायलट को मुख्यमंत्री के रूप मेंं देखने की चाह रखने वाले समर्थको के साथ अब विरोधी भी ये कहने लगे है कि कांग्रेस में राजस्थान का भावी नेता सचिन पायलट ही हैं। पायलट की फूंक-फूंक कर कदम रखने की रणनीति ने बहुत कुछ बदल डाला।
ये है जलवा
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के एयरपोर्ट पर पायलट के स्वागत में उमड़ी भीड़ और सचिन पायलट जिंदाबाद के नारों की गूंज से इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं। राजस्थान की धरा से बाहर कर्नाटक के बैंगलुरु में पायलट समर्थकों की मौजूदगी उनकी लोकप्रियता को दर्शाने के लिए काफी हैँ। उनके समर्थको के लिए इससे बड़ा सकून क्या हो सकता हैं। जहां तक सोशल मीडिया की बात है। राजस्थान में अगर किसी राजनेता के सबसे ज्यादा फॉलोवर्स है तो वह सचिन पायलट हैं। सोशल मीडिया पर तो हाल ये है कि रात को दो बजे भी अगर कोई पोस्ट डालो और उसमें पायलट का कहीं नाम हो तो सोशल मीडिया पर उस पोस्ट को पढऩे वालों का बूम दिखाई देता हैं।
पायलट के जन जुड़ाव से आलाकमान भी है वाफिक
अगर पायलट राजस्थान में पड़ाव नहीं डालते तो वे भी राजस्थान की राजनीति का एक किस्सा भर बनकर रह जाते। 44 वर्षीय इस नौजवान की इस ताकत से कांग्रेस आलाकमान भी वाफिक हैं। कांग्रेस आलाकमान ज्योतिरादिज्य सिंधिया, जतिन प्रसाद की तरह सचिन पायलट को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहती,क्योंकि इस नौजवान के राजस्थान से बाहर उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश,जम्मू-कश्मीर तक में चाहने वाले हैं जिसका लाभ कांग्रेस कभी गंवाना नहीं चाहेगी।
अपने पिता की तरह गांव-गुंवाड़ के व्यक्ति के साथ राम-राम सा और अंग्रेजी दा व्यक्ति के साथ अंग्रेजी में तार्किक संवाद सचिन पायलट की खूबी में शूमार हैं। सचिन पायलट को लेकर सियासी गलियारों में कहा जाता है कि वह बेहद सादगी वाले नेता है पर सिद्धांत और विचारों के मामले में ठीक अपने पिता की तरह हैँ। वे आज भी कहते है कि कांग्रेस आलाकमान के समक्ष अपनी बात रखने का हमें अधिकार हैं। जब भी कोई मसला आएगा तो पर्टी मंच पर अपनी आवाज उठाएंगे।
पायलट के जीवन से जुड़े ये भी कुछ तथ्य
7 सितम्बर, 1977 को उत्तर-प्रदेश के सहारनपुर में जन्में सचिन पायलट का पैतृक गांव नोएडा के पास वेदपुरा है। सचिन पायलट की शुरुआती शिक्षा दिल्ली के एयरफोर्स बालभारती स्कूल से हुई। स्कूली शिक्षा के बाद सचिन पायलट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के “सेन्ट स्टीफन्स कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में बीए आनर्स की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद सचिन ने क्चक्चष्ट के दिल्ली ब्यूरो में काम किया फिर जनरल मोटर्स में थोड़े समय काम करने के बाद छोड़ दिया और इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी” गाजियाबाद और पेन्सिलवानिया विश्वविद्यालय और व्हार्टन बिजनेस इन विश्वविद्यालयों से एमबीए की डिग्री हासिल की। सचिन पायलट को साल 2008 में विश्व इकोनॉमिक फोरम में यंग ग्लोबल लीडर के रूप में चुना गया। सचिन पायलट की अन्य खेलों में भी काफी रुचि हैं। यह सर्वविदित है कि सचिन पायलट किसान नेता तथा देश की राजनीति में अग्रणी राजनेता रहे स्व. राजेश पायलट तथा रमा पायलट के सुपुत्र हैं। आपकी एक बहन सारिका हैं। आपकी पत्नी सारा और दो बच्चे अरान और विहान हैं।