जनक की विद्वतजनों की सभा में जब उसे अष्टावक्र के अंगों को टेढ़ा देखकर सभी विद्वतजन ठहाका लगाकर हंसे थे तो अष्टावक्र ने कहा था, ‘‘मैं इसे विद्वतजनों की सभा समझकर आया था परन्तु मुझे तो यह चर्मकारों की सभा प्रतीत होती है।’’ कितना सार्थक है यह वाक्य यह समझाने के लिए कि व्यक्ति की पहचान उसके रंग, रूप या धर्म से नहीं अपितु उसके मानवीय गुणों, विद्वता एवं संस्कारों से होती है। कहा भी है, ‘‘स्वराजे पूज्यते नृप, विद्वत सर्वत्र पूज्यते’’।
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को कुष्ठ रोग निवारण दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है क्योंकि गांधी जी का कुष्ठ रोगियों के प्रति अनन्य प्रेम और करूणामयी सेवा का भाव था। वह हर रोगी की सेवा मनोयोग से करते थे। वह उससे बिल्कुल भी घृणा नहीं करते थे जबकि ज्यादातर लोग कुष्ठ रोगियों से बचने की फिराक में रहते थे।
एक दिन सेवाग्राम आश्रम में एक व्यक्ति बापूजी से मिलने के लिए आया। गांधीजी ने देखते ही उसे पहचान लिया। वह व्यक्ति देशसेवा का प्रण लिए हुए था और अनेक बार जेल जा चुका था। वह व्यक्ति संस्कृत का बहुत बड़ा विद्वान था। दुर्भाग्य से वह कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो गया था। सभी उससे घृणा करते थे, उससे अछूत की तरह व्यवहार करते थे।
इससे वह व्यक्ति बहुत ही दुखी रहा करता था। लोगों का अपने प्रति ऐसा व्यवहार देखकर उसने स्वयं को सीमित कर लिया था। वह किसी से ज्यादा मिलता-जुलता नहीं था। अधिकतर समय हरिद्वार में एकांतवास में बिताता था। काफी दिनों से उसके मन में बापू से मिलने की तीव्र इच्छा थी। एक दिन उसने तय किया और बापू से मिलने उनके आश्रम में पहुंच गया। बापू ने उसका आदर-सत्कार किया, प्रेम से बातें कीं। बापू के प्रेम से वह व्यक्ति द्रवित हो गया और बोला, ‘बापू, आपके दर्शन कर मैं कृतार्थ हो गया। मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैंने आपको देने के लिए एक भेंट रखी थी।’ यह सुनकर बापू चहककर बोले, ‘अच्छा, दिखाओ!’ तब उस व्यक्ति ने सूत निकालते हुए कहा, ‘इसे मैंने अपने हाथों से काता है।’ बापू सूत लेकर अत्यंत प्रसन्न हुए।
इसके बाद वह व्यक्ति वहां से जाने लगा तो बापू उससे बोले, ‘अब तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है। तुम इस आश्रम में ही रहोगे।’ गांधीजी ने आश्वासन देने के बाद उस व्यक्ति के लिए अपनी कुटिया के पास ही एक कुटिया बनवाई। वह प्रतिदिन उसके पास जाते और उसकी मरहम-पट्टी करते। यह देखकर आश्रम के अन्य लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे भी रोगियों की सेवा में जुट गए।
उस संस्कृत के प्रकांड विद्वान स्वतन्त्रता सेनानी और कवि का नाम था परचुरे शास्त्री। यहां यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि गांधी जी का यह प्रेम 1894 की साउथ अफ्रीका की एक सभा से शुरू हुआ जहां कुछ लोग थोड़ी दूर अलग से एक कोने में उन्हें ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। गांधी जी के बारे-बार उन्हें आगे बुलाने पर भी वे नहीं आये तो गांधी जी उनके पास जाने लगे तो किसी ने कहा, ‘‘गांधी भाई वे कुष्ठ रोगी हैं।’’ उन रोगियों ने भी कहा, ‘‘हमारे पास मत आओ।’’
गांधी जी ने उनकी व्यथा को जाना। वे लोग स्वयं नीम की पत्तियां बंधकर अपना इलाज करते थे वहीं से शुरू हुआ गांधी जी का कुष्ठ रोग उन्मूलन एवं सेवा अभियान। आज कुष्ठ रोग के मामले तो देश में प्रतिवर्ष एक लाख से कम हुए हैं परन्तु कई अन्य कुष्ठ रोग हैं जो भारतीय समाज में अपना फन उठाए हुए हैं। राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो (2020) के आंकड़े बताते हैं कि दंगे (नागरिक संघर्ष) में 2020 में 2019 की अपेक्षा 96ः की वृद्धि दर्ज की गई, जातिगत दंगों में करीब 50ः ए कृषि से जुड़े दंगों में 38ः की वृद्धि हुई देखी गई। हत्या के मामलों में एक प्रतिशत की वृद्धि और अकेले राजधानी दिल्ली में 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 10,097 से अधिक मामले दर्ज किए गए। पर्यावरण सम्बन्धी अपराधो में 78 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि साइबर क्राइम अपराध की दर 3.7 प्रतिशत हो गई, राज्य के खिलाफ अपराध जिसमें देशद्रोह और राष्ट्र के खिलाफ युद्ध सम्मिलित है में उत्तरप्रदेश में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
आंकड़े बताते हैं कि इस समय देश की लगभग 20 प्रतिशत आबादी (10-75 वर्ष के बीच) विभिन्न प्रकार के नशे की चपेट में है। लगभग 85-90 रेप के मामले प्रतिदिन घटित होते हैं-निर्भया काण्ड, हाथरस कांड, उन्नाव काण्ड, भंवरी देवी गैंग रेप, इमराना रेप केस, स्कारलेट कीलिंग रेप केस ने ध्यानाकर्षित किया है। इसके अतिरिक्त आतंकवाद, माओबाद, नक्सलवाद की समस्याएं मुंह उठाए खड़ी हैं।
सभी समस्याओं एवं अपराधों के मूल में व्यक्ति में आसुरी सम्पदा की वृद्धि है। गांधी जी ने गीता को, ‘‘माई बुक आफ आन्सर्स’’ कहा, गांधी जी की इस उत्तरपुस्तिका का 16वां अध्याय दैवी और आसुरी सम्पदा की चर्चा करता है। आज आवश्यकता है उसी गीता से प्रेरित विद्यालयों की जहां दैवी सम्पदा अर्थात् अभ्य, अन्तःकरण की शुद्धि ज्ञानयोग में दृढ़ स्थिति, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शान्ति, अपैशुनम्, दया, अलोलुपता, मर्दवम्, हृी, अचपलम, तेज, क्षमा, धृति, शौच, अद्रोह, अतिमानिता और आसुरी सभ्यता में दम्भ, दर्प, पारुष्य, अभिमान, क्रोध, अज्ञान आते हैं।
भगवान कहते हैं दैवी सम्पदा से मोक्ष की प्राप्ति होती है और आसुरी सम्पदा से मोह और दासता की प्राप्ति होती है। कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस उस राष्ट्रपिता के लिए केवल कुष्ठ रोग उन्मूलन नहीं है अपितु व्यक्ति में व्याप्त कुण्ठाओं को समाप्त करने का भी अवसर है। इस स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में हम सभी विषरूपी कुष्ठों और कुण्ठाओं के उन्मूलन का प्रण लें तभी सार्थक होगा गांधी जी का कुष्ठ रोग उन्मूलन अभियान।
डॉ. मारकन्डे आहूजा, संस्थापक कुलपति
गुरूग्राम विश्वविद्यालय, गुरूग्राम