@विमलेश शर्मा,वरिष्ठ पत्रकार, जयपुर
जयपुर। राजस्थान जहां लोगों की जिंदगी अकाल और सूखे के बीच अभावों में गुजरी हो उनसे ज्यादा भला कौन धरती से उपजने वाले अन्न तथा शीतल छांव प्रदान करने वाले वृक्ष की महत्वत्ता के बारे में जान और समझ सकता है।
पिपलांत्री वाले बाबा शयमसुन्दर पालीवाल के बारे में तो आपने बहुत कुछ पढ़ा व सुना होगा जिनके गांव में लड़की पैदा होने पर 21 पेड़ लगाने की एक परंपरा है। ऐसे ही एक पर्यावरण प्रेमी हैं सुरेंद्र अवाना, जिन्हें लोग प्यार से पेड़ वाले बाबा कहते हैं।
भैराणा के जंगल को यूं किया मंगल
जयपुर से लगभग 55 किलोमीटर दूर बिचून के पास भैराणा गांव के जंगल में मंगल करने वाले अवाना ने जयपुर की विभिन्न कॉलोनियों व पार्कों में भी हजारों पेड़ लगाए है जो न केवल वृक्ष बन शीतल छांव दे रहे है, बल्कि प्रदूषित जयपुर को बचाये रखने में भी बड़ा योगदान दे रहे है।
पेड़ -पौधों की श्रृंखला
अवाना ने भैराणा में तो बिना भूजल वाली मिट्टी में मात्र पांच सालों में छाया व फलदार पेड़-पौधों की एक श्रृंखला ही खड़ी कर डाली। केवल वर्षा के पानी से कोई कैसे भला रेतीली धरती को हरा-भरा व सर सब्ज कर सकता है ये कोई अवाना से सीखे। भैराणा की बंजर जैसी 70 बीघा जमीन वाले रुद्रशिवं फार्म हाउस में कतारबद्ध जो पेड़ दिखाई देते हैं। वे सब अवाना की मेहनत व कर्मफल की देन है। फार्म की रातदिन सार संभाल के लिए रहने की गांधी कुटिया बना डाली। फार्म से ही वे सारी दुनिया जहान से जुड़े हुए हैं।
24 प्रकार की हरी घास
उनके फार्म हाउस रुद्र शिवम में फलदार व औषधीय पौधों की वृहद बगियां, 24 प्रकार की घास,परम्परागत खेती में उपजने वाले अन्न, सब्जी आदि से लहलहाते खेत एक अलग ही तरह की सुखद अनुभूति देते है। 24 प्रकार की घास तो गायों के लिए बारहों महीने हरे चारे के लिए लगा रखी हैं। इतने प्रकार की हरी घास चारा अनुसंधान केंद्र के फार्म पर भी नहीं है।इसी प्रकार 450 गिर नस्ल की गायों की पूरी डेयरी है । इस डेयरी के उच्च क्वालिटी के दूध और दूध से बने उत्पादों की तो डिमांड ही इतनी है कि मांग के अनुरूप सप्लाई ही नहीं हो पाती। अवाना के फार्म पर गायों के साथ रेगिस्तानी जहाज कहे जाने वाला ऊंट,घोड़ी, बैल, सांड, डॉग आदि सब है।
मछली -बतख और गाय के गोबर की ईंट से बने कॉटेज
वर्षा जल संग्रह के बने पौंड से सिंचाई के साथ मछली व बतख पालन भी हो रहा है। गाय के गोबर से बनी ईंटों के कॉटेज भी है जिनमे आप राजस्थान की 50 डिग्री से अधिक तापमान वाली भरी दुपहरी में बिना कूलर, एयरकंडीशनर के आराम फरमा सकते है।
कैसे बने पेड़ वाले बाबा
एक स्कूल संचालक कैसे गुरुजी से पेड़ो वाला बाबा और राष्ट्रीय स्तर पर पुरुस्कार प्राप्त प्रगतिशील किसान बना इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है। अवाना को पेड़ों से प्यार यूं तो बचपन से ही था। सरकारी नर्सरी से पेड़ पौधे लाते और आसपास के पार्क आदि में लगा देते।
पौधरोपण से ही जिनकी दिनचर्या प्रारंभ होती हैं
इसके बाद जून 2010 से अवाना की दिनचर्या में ऐसा परिवर्तन आया कि प्रतिदिन एक से पांच पेड़ लगाने की ठान ली। तब से सुरेंद्र अवाना पेड़ लगाने के अभियान में जुट से गए । उनकी दिनचर्या ही पौधे लगाने से शुरू होती हैं। ये क्रम आज तक कभी नहीं टूटा। अवाना किसी दिन बाहर होते तो भी किसी न किसी को पेड़ लगाने की ड्यूटी लगाकर जाते। उनके लगाए पेड़-पौधों में से 95 प्रतिशत जिंदा है,क्योंकि इस मिशन को उन्होंने पेड़ लगाकर फ़ोटो खिंचवाने तक सीमित नहीं रखा। अवाना कहते भी है कि पेड़ चाहे आप एक या दो ही लगाओ पर उनको वृक्ष बनने तक देखभाल की जिम्मेदारी लो तो ही पेड़ लगाओ।
ग्यारह साल से पेड़ लगाओ अभियान
ग्यारह साल पहले शुरू हुए पेड़ लगाओ, हरियाली बढ़ाओ का यह अभियान पहले तो जयपुर शहर में ही चलता रहा।
सब कुछ छोड़ जुड़ गए प्रकृति से अवाना दिसम्बर 2016 में स्कूल,कॉलेज परिवार के सदस्यों को सुपुर्द कर पूरी तरह प्रकृति व पर्यावरण से ही जुड़ भैराणा गांव की जमीन को हरी भरी बनाने में जुट गए। उन्होंने बहुवर्षीय खेती को अपनाया तथा एक से बढ़ एक नवाचार किए। पेड़ लगाने का काम भी भेराना की धरती पर जारी रहा।
प्रकृति प्रेम से मिला सम्मान
प्रकृति के प्रति इस प्रेम का उन्हें प्रतिफल भी मिला। अवाना जो चालीस वर्षो तक शिक्षा के क्षेत्र में नाम नहीं कमा सके उससे दस गुणा कम समय में उससे कहीं अधिक पर्यावरण व प्रकृति प्रेम ने उन्हें दे दिया जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। आज अवाना का केवल राजस्थान में ही नहीं,बल्कि देश के प्रगतिशील किसानों में नाम है। उन्हें हाल में कृषि क्षेत्र में नवाचार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पुरुस्कार व सवा लाख की राशि मिली हैं। राज्य स्तर पर कृषि क्षेत्र के लगभग सभी पुरुस्कार वे पहले ही हासिल कर चुके हैं। अवाना पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए कार्य के लिए भी कई नामी संगठनों से सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।
ऑर्गेनिक खाद कारखाना
पशुपालन व ऑर्गेनिक खेती के लिए विशिष्ट पहचान बना चुके सुरेंद्र अवाना ने अत्याधुनिक ऑर्गेनिक खाद का कारखाना भी स्थापित कर लिया है । केंद्र सरकार ने स्टारअप योजना से जोड़कर उन्हें खाद कारखाने के लिए 18 लाख की राशि भी स्वीकृत की है। कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर के बच्चे खेती से जुड़े अध्ययनों के लिए उनके यहां आते हैं।
शनिवार-रविवार को लगता है मेला सा
सप्ताह में दो दिन शनिवार-रविवार तो खेती के गुर सीखने देशभर से आने वाले विजिटर्स को भ्रमण के साथ उन्हें समझाने में ही बिताता है। इन दो दिनों में तो उनके फार्म हाउस पर मेला सा लगा नजर आता है।
खेती घाटे का सौदा नहीं
वे आगन्तुको को समझाते है कि खेती भी उद्योग की तरह है। घाटे का सौदा भी कतई नहीं। हां! केवल परम्परागत खेती तक सीमित नहीं रहकर धैर्य के साथ बहुवर्षीय खेती को अपनाना पड़ेगा।
सैंकड़ो युवा लौटे हैं अपने खेतों की तरफ
अवाना से प्रेरणा लेकर सैंकड़ो युवा छोटी-मोटी जॉब छोड़ खेती की तरफ लौटे भी है। डेढ़ साल से चले आ रहे कोरोना काल मे तो ऑर्गेनिक खानपान तथा खेती के प्रति रुझान बढ़ा भी है।
दूसरी लहर ने समझा दिया प्राणवायु के महत्व को
अवाना जब से पेड़ लगाने लगे हैं तब से ही शुद्ध हवा-पानी (ऑक्सीजन) की बात लोगों को समझाते भी रहे हैं। संक्रमण की दूसरी लहर ने ऑक्सीजन की महत्वत्ता को फिर से परिभाषित कर दिया है। प्राणवायु के लिए आमजन अधिक से अधिक पेड़ लगाने तथा पेड़ों का दोहन न करने की बात भी करने लगे हैं। लोगों में प्रकृति के प्रति व्यवहार में आए बदलाव को अवाना सकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं और कहते हैं कि जो हो रहा है वह अच्छे के लिए ही हो रहा है।
पेड़ ही मेरी सबसे बड़ी जमा पूंजी
हां ! प्रकृति प्रेमी सुरेंद्र अवाना स्वयं भी फार्म हाउस पर आने वाले विजिटर्स से पेड़ लगाना नहीं भूलते ताकि पर्यावरण के प्रति जागृति आए। अवाना के लगाए हजारों पेड़ आज प्राणवायु का संचयन कर रहे हैं। अवाना को पेड़ो के वृक्ष बन छांव व शुद्ध हवा देने पर खुशी और गर्व हैं। वे इतने वर्षों में लगाए 65 हजार से अधिक पेड़ों को सबसे बड़ी जमा पूंजी मानते हैं और कहते है कि ये धन आने वाली कई पीढ़ियों के काम आएगा।