@ वैभव उपाध्याय
ॐ अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं धृतपाशाङ्कुशबाणचापहस्ताम् ।
अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्येव विभावये भवानीम् । ।
मार्कंडेय पुराण में देवी दुर्गा के कई महान कामों के बारे में बताया गया है। दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय में बताया गया है कि किस तरह देवी दुर्गा ने रक्तबीज के साथ भयंकर लड़ाई लड़़ी थी। रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसको कई असाधारण वरदान प्राप्त थे। अगर रक्तबीज के खून की एक बूंद जमीन पर गिरती थी तो उससे एक और उसी की शक्ति के बराबर का रक्तबीज पैदा हो जाते थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि दुनिया में लाखों रक्तबीज दानव पैदा हो गए थे। रक्तबीज को खत्म करने के लिए देवी ने एक उपाय निकाला और उसके खून को धरती पर नहीं गिरने देने का फैसला किया। देवी ने जलती हुई मसालों के साथ राक्षस रक्तबीज को जला डाला और उसके खून को एक कटोरे में इकट्ठा करके पी लिया। देवी ने उतने ही रूप धारण कर लिए जितने कि रक्तबीज पैदा हुए थे। ऐसा करके देवी दुर्गा ने रक्तबीज का खात्मा कर किया, इसलिए उन्हें बिजासन देवी के रूप में जाना जाने लगा।
2000 साल पुराना बताया जाता है ये स्थान
माता मंदिर राजस्थान के बूंदी जिले के इंदरगढ़ में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इतिहास की मानें तो इस मंदिर का निर्माण बूंदी के शासक राव शत्रुसाल के छोटे भाई इंद्रसाल ने अपने नाम पर बनवाया था। इस दौरान उसने यहां पहाड़ी पर कई भव्य किले, मंदिर और महल भी बनवाए थे। बीजासन माता मंदिर इंदरगढ़ में एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है, जिसका अपना ही अलग धार्मिक महत्व है।मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 से 800 तक सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं। कहते है कि यहां पर 2000 साल पहले भक्त कमलनाथ को देवी दुर्गा ने दर्शन दिए थे। कमलनाथ देवी दुर्गा के बहुत बड़े भक्त थे। देवी उसकी आस्था और श्रद्धा से प्रसन्न हो प्रकट हुई।इसी के चलते यहां पर बीजासन माता की मूर्ति को स्थापित किया गया था। माता की यह मूर्ति राक्षस रक्तबीज के ऊपर विराजमान है।
तुरंत चमत्कार वाली देवी
यह मंदिर इतना पवित्र माना जाता है कि यहां पर दूर-दूर से भक्त माता से मनोकामना मांगने के लिए आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी का चमत्कार तुरंत देखने को मिलता है। यहां पर भक्त पुत्र प्राप्ति के लिए और नवविवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की मनोकामना के लिए आते हैं। इसके अलावा कई मांगलिक अवसरों पर भक्त माता के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
ऐसा भी माना जाता है कि माता की कृपा से अंधे को भी दृष्टि प्राप्त होती है। यहां भक्त अपनी कई इच्छाओं की पूर्ति के लिए माता की प्रार्थना करने के लिए आते हैं। मंदिर में पूरे साल भक्तों और पर्यटकों की भीड़ देखी जा सकती है। बीजासन माता मंदिर में चैत्र और अश्विन मास नवरात्रि को बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस खास मौके पर मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है। यहां लोग नंगे पैर चलकर माता के दर्शन के लिए आते हैं।
कूंचलवाड़ा कलां की बीजासन माता
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सीमावर्ती ग्राम पंचायत कूंचलवाड़ा कलां में भी मां बीजासन का बहुत ही चमत्कारिक शक्तिपीठ है । यह स्थान टोंक जिले के देवली कस्बे के पैट्रोल पम्प चौराहे से ठीक 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । आदिकाल से अब तक कईं बस्तियां बसी और कईं काल का ग्रास बन गई । प्रमाण का अभाव होने के कारण इस मंदिर का निश्चित काल तो निर्धारण नहीं कर पाते , लेकिन आस पास के क्षेत्र मे प्राचीन छतरियां अवशेष से पता चलता है कि यह स्थान भी काफी पुराना हैं। जनश्रुति है कि सामन्त काल मेें यहां खेत में माता की मूर्ति स्वयं उदृत हुई तब से लेकर अब तक यह शक्तिपीठ समस्त मानव मात्र के आस्था का केन्द्र बनी हुई है ।
रक्तदन्तिका स्वरूप
यहां शुरू में ग्रामीण लोगों ने माँ बीजासन का एक चबूतरा बना कर पूजा अर्चना प्रारम्भ की थी तथा कालान्तर में माँ की मूर्ति के समक्ष शिवपंचायत की स्थापना की गई । शक्ति को रक्तदन्तिका स्वरूप माना जाता है जिसने कई राक्षसों का संहार किया था। उसी का अनुसरण करते हुए मां को प्रसन्न करने के लिए उनके समक्ष पशु बलि भी दी जाती थी और मधुरस चढ़ाया जाता है,लेकिन उनके समक्ष शिवलिङ्ग स्थापित होने से यह कार्य माता रानी के सामने पर्दा करके किया जाने लगा। वर्तमान में माता रानी के समक्ष बलि नहीं दी जाकर अन्यत्र निश्चित स्थान पर रक्तदंतिका के निमित्त पशुबलि दी जाती बताई ।
कुम्हार है यहां पुजारी
यहां आज से लगभग 120 वर्ष पूर्व गाँव के लोगों ने कुम्हार जाति के परिवार को दैनिक पूजा अर्चना का दायित्व सौंपा गया जो आज भी अनवरत माँ की सेवा में लीन है । बताते है कि जब-जब भी अतिवृष्टि ,अनावृष्टि या कोई भी दैवीय प्रकोप हुआ सभी ग्रामवासी इकठ्ठा होकर जाते है और कुशल मंगल की कामना करते है तो माता रानी अपना वरद हस्त प्रदान करती है ।
यहां भी आते है लकवाग्रस्त
यह साक्षात देवी का ही स्वरुप है जो भौतिक,दैहिक और दैविक संतापो से मुक्ति प्रदान करने वाली है । माँ भगवती की शक्ति से आधि और व्याधि दोनों ही प्रकार के रोगों से स्वास्थ्य लाभ होने लगा । लगभग 100 वर्षों से यहाँ दूर दराज के जिलों से आ रहे लकवा रोग से पीडि़त मरीजों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है जो इस बात का प्रमाण है कि जो भी यहाँ आकर माँ की प्रार्थना करता है वह निश्चित ही स्वस्थ होकर जाता है । संकट दूर होने पर अपने स्थान से दण्डवत और पैदल यात्रा करते हुए यहाँ माता रानी के दर्शन करके प्रसाद चढ़ाते है । ऐसी मान्यता है कि त्रिकाल संध्या के उपरान्त माँ स्वयं सूक्ष्म रूप में उपस्थित होकर प्रत्येक रोगी का उपचार करती है ।
अमावस्या और पूर्णिमा को रहता है श्रद्धालुओं का तांता
मातारानी के दरबार में हर माह अमावश्या और पूर्णिमा को श्रद्धालुओं का तांता लगा होने के कारण मेले का सा दॄश्य नजर आता हैं। रोगियों के विश्राम के लिए धर्मशाला का निर्माण करवाया गया है, जहाँ लकवा रोगी अपने सहायकों के साथ विश्राम करते हैं ।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 8
भव्य मंदिर का हो रहा है निर्माण
वर्तमान में यहाँ जैसलमेर के पत्थरों से माता रानी के भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है जिसमे उड़ीसा के शिल्पकारों द्वारा दीवारों पर देवताओं की अद्भुत मूर्तियों को उकेरा