कपिलेश शर्मा @ बिसाऊ
झुझुनूं शोखावाटी जनपद यूं तो अनेक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है परन्तु गांगियासर की रायमता मंदिर अपनी वैभवशाली परम्परा का अनुपम उदाहरण है। जिले के पश्चिमी छोर पर बिसाऊ कस्बे से 10 किलोमीटर दूर बसे गांगियासर में गांव के प्रवेश द्वार पर बना विशाल मंदिर सुदूर प्रदेशों तक लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रमुख धार्मिक स्थल है।
रायमाता का प्राकट्य
रायमता के प्रकटीकरण का इतिहास चमत्कारी और रोचक है। जनश्रुति के अनुसार 300 वर्ष पूर्व ग्राम के दक्षिण की ओर ऊंचे टीले पर सेवापुरी नामक तपस्वी सन्त रहते थे। जिन्होंने जीवित समाधी ली थी। अचानक पृथ्वी वही एक निश्चित स्थान पर कंपित होने लगी और कुछ ही गहराई से विक्रम संवत 1600 में दुर्गामता की मूर्ति प्रकट हुई। उसी समय आवाज आयी कि मैं रायमता हूं ,तुम मेरी पूजा करों। बस क्या था यह खबर आग कि तरह गांव में ही नहीं अपितु आस-पास के गांवो तक फैल गई। देवी के दर्शन करने के लिए हजारों ग्रामीण वहां पहुंच गए। बाबा सेवापुरी जी के साथ सभी ने पूजा अर्चना कर वहीं देवी के मंदिर की स्थापना कर दी। ग्रामीणों के साथ तत्कालीन शासक श्री देवदत जी भी थे। कालांतर में मंदिर को भव्य रूप देने में ग्राम के हो कानोडिया परिवार ने योगदन किया।वर्तमान में रायमाता मंदिर प्रबंधन का एक ट्रस्ट बना हुआ है लोक श्रद्धा के अनुसार यही रायमता लोकप्रिय और कलियुग की चमत्कारी देवी के रूप मे प्रसिद्ध हो गई।
एक नहीं अनेको चमत्कार
प्राचीनकाल मे देवी शक्ति के रूप में प्रकट हुई रायमाता ने अपने अनेको चमत्कार दिखाए। अपने चमत्कारों से उन्होंने अपने एक भक्त की रक्षा करते हुये बैल को गाय बना दिया। तब से इनकी मान्यता जन-जन में फैल गई। इसके अलावा भी मां के अनेक चमत्कारी किस्से रायमाता के भक्तों की जुबान से सुने जा सकते हैं।
जनश्रुति के अनुसार एक बार एक चोर आसपास के गांव से बैल चुराकर गांगियासर भाग आया। जब बैल के मालिक को पता चला तो वह गांववासियों को लेकर चोर को पकडऩे गांगियासर आ गया, इसके कारण चोर भागते-भागते पकड़े जाने के डर सेे बैल को मन्दिर के बाहर बांध खुद मन्दिर के अंदर जाकर रायमाता जी के चरणों में गिर आराधना करने लग गया। माताजी ने चोर की करुणामयी पुकार सुनकर बैल को गाय बना दिया। जब बैल का मालिक लोगो को लेकर मन्दिर आया तो वहां अपने बैल की हूबहू शक्ल वाली गाय को बंधा देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
मालिक एवं ग्रामवासी माताजी की पूजा करके वापस लौट गए। जब चोर ने देखा कि बैल का मालिक अपने साथियों के साथ वापस लौट गया तो चोर भी चमत्कार को देखकर माताजी के चरणों मे गिर माफी मांगने लगा। बाद में उस चमत्कारी गाय को मन्दिर में ही छोडक़र वहां से चला गया। उसी दिन से यह कहावत कही जाने लगी कि भक्त जान संकट हरयो,करी बैल से गाय।
‘जय जननी मातेश्वरी, गांगियासर की राय।’
‘भक्त जान संकट हरयो, करी बैल से गाय।’
गांगियासर की रायमता को लेकर यहीं कहावत आमजन के मुख से सुनी जाती हैं।
ग्रामवासियों के लिए स्वयं माता ने लड़ा युद्ध
एक अन्य घटना का उदाहरण देते हुए ग्रामीण बताते हैं कि एक बार मीर खान पठान की फौजों ने गांगिायासर ग्राम को लूटने के उद्देश्य से घेर लिया तो ग्रामीण सन्त सेवापुरी महाराज की शरण मे पहुंचकर संकट से बचने की प्रार्थना करने लगे। सन्त ने फौज का सामना करने को कहा और आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी ही जीत होगी। परिणाम वही हुआ मीर खान की तोपे रूक गई। तोपो का मुंह तक नहीं खुला।
दूसरा दृश्य बड़ा ही विचित्र दिखाई दिया। मीर खान ने देखा कि सिपाही कटते नजर आ रहे हैं। रणक्षेत्र में एक स्त्री के हाथ में तलवार और खप्पर लिए हुए उस की फौज के सिपाहियों के सिर धड़ से अलग-थलग कर रही है और एक साधू हाथ में चीमटा लिए घूम रहा है। तब मीर खां के पांव उखड़ गए और मैदान छोडक़र भाग गया।
मां के आभुषण चुराने वाला साधु हुआ अंधा
इसी तरह एक साधू मां की परीक्षा लेने के लिए उनके गहने चुरा कर जाने लगा तो वह मंदिर से बहार आकर रास्ता भूल गया और गहनो को जमीन मे गाड़ दिया। साधु वहां से भागते वक्त एक झाड़ी में फंस गया, क्योंकि उसे दिखना बंद हो गया था। प्रात: ग्रामीणो को जानकारी मिली तो वे उसे पकड़ कर लाए। पूछताछ करने पर उसने आप बीती सब कुछ बता दी। एक अन्य श्रुति के अनुसार भेमा खाती जो पुजारी था उसने भक्तिवश अपना शीश काटकर मां को चढा दिया,लेकिन मां ने उसे पुन: जोड़ दिया। करीब चार दशक पूर्व की एक अन्य घटना है। एक चोर मां की मूर्ति चोर कर ले गया जो 10 किलो चांदी की थी,लेकिन पटियाला में वह पकड़ा गया। एक बार नाथ सम्प्रदाय के संत रतिनाथ जी के साथ सवामणी के लिए आयी सेठानी जो माता के दरबार में ही कुर्सी रख कर बैठ गई। थोड़ी ही देर में हलवाइयों के सिलेण्डर ने आग पकड़ ली। रतिनाथ जी यह चमत्कार जान गये। उन्होंने सेठानी को कुर्सी से नीचे बैठाकर मां से प्रार्थना की तब जाकर आग शांत हुई। रायमाता के एक अन्य भक्त ने बताया कि भूलवश रुपयों से भरी बेग मंदिर के बाहर ही मोटर साइकिल पर छोड़ गया। चार घंटे बाद उसे याद आया तो मंदिर परिसर में दुबारा पहुंचा तो बेग मोटर साइकिल पर ही सुरक्षित मिली,जबकि चार घंटे की इस अवधि में काफी लोग मोटर साइकिल के पास से गुजर चुके थे।
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु, मेले में मुस्लिम भी आते हैं
आज इस चमत्कारी मन्दिर में दूर दराज तक से दर्शनार्थी आकर मन्नत मांगते हैं तथा मन्नत पूरी होने पर माताजी की तन,मन,,धन से सेवा करते हैं। मनोकामना के लिए यहां प्रवासी राजस्थानी भी आते हैं और शतचंडी जैसे धार्मिक अनुष्ठान करवाते रहते हैं। गांगियासर के रायमाता के मेले में हिन्दू.मुस्लिम दोनों धर्मावलम्बी सम्मलित होकर साम्प्रदायिक सदभाव की मिशाल पेश करते हैं। मेले के समय होने वाला कुश्ती दंगल तो यूपी,हरियाणा आदि पड़ौसी प्रान्तों तक प्रसिद्ध हैं।
तिवाड़ी परिवार की भक्ति
रायमाता पब्लिक सेवा ट्रस्ट,मुम्बई के ट्रस्टी चेयरमैन मुरारीलाल तिवाड़ी ने बताया कि शारदीय व चैत्र नवरात्रि में शतचंडी यज्ञ का आयोजन वे करते हैं तथा नवरात्रि के समय पूरे दिन भण्डारा भी चलता है जिसमें हजारों श्रद्धालु मां की प्रसादी पाते हैं। इसी ट्रस्ट के अध्यक्ष रवि तिवाड़ी, उपाध्यक्ष कुलश्रेष्ठ तिवाड़ी, संरक्षक प्रेमलता तिवाड़ी व कोषाध्यक्ष भारती तिवाड़ी नवरात्रि के समय सेवा में गांगियासर ही रहते हैं। मूलत: महनसर के रहने वाले तिवाड़ी परिवार ने तो अपने संस्थानों का नाम ही रायमाता पर रख रखा है। इस ट्रस्ट की ओर से मेले के समय होने वाले दंगल व अन्य खेलों के विजेताओं को पुरस्कार दिए जाते हैं, चुंकि वर्तमान में कोरानाकाल हैं ऐसे में मेला तो भरेगा ही नहीं दर्शन आदि भी कोरोना गाइड लाइन के अनुसार ही करवाए जा रहे हैं।
जूना अखाड़े से है नाता
यह मंदिर गद्दी श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा अंतर्राष्ट्रीय गुरु गद्दी बालक हरियाणा के अधीन हैं। । यहां सेवापुरी महाराज से लेकर अनेक संत मन्दिर महंत के रुप में रहे हैं। कालांतर में बुधगिरी जी महाराज प्रथम एवं द्वितीय हुए जिनकी समाधि मन्दिर परिसर में ही स्थापित है। वर्तमान में यहां दसमीगिरी जी महाराज माताजी की सेवा पूजा कर रहे हैं। शेखावाटी के प्रसिद्ध संत नाथ सम्प्रदाय के बऊधाम के महंत श्री रतिनाथ जी महाराज ने भी लंबे समय तक यंहा प्रवास किया। श्री रायमाता जी को अपना इष्ट मानकर जब भी उनका इधर आसपास आना होता है तो वे माताजी के दर्शन कर ही आगे जाते हैं।
तीन सौ वर्षों से अखण्ड धूणी
मंदिर परिसर में रायमाता के प्रमुख विग्रह के अलावा कालीजी, मां गायत्री, हनुमानजी महाराज आदि कई देवी-देवताओं के देवरे बने हुए हैं। मंदिर में एक अखण्ड धूणी भी जलती रहती हैं। बताते है कि ये धूणी सेवादास जी महाराज के समय की तीन सौ वर्ष पुरानी हैं। मंदिर के सामने यात्रियों के ठहरने आदि के लिए एक अति सुन्दर धर्मशाला भी बनी हुई हैं। मंदिर परिसर की भूमि गांगियासर के शासक श्रीदेवीदत्त ने दी थी जो बणी मेला क्षेत्र कहलाता हैं। गायों का लालन पालन भी किया जाता हैं।
कैसे पहुंचे रायमाता के
झुंझुनूं जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। रायमाता पहुंचने के लिए बिसाऊ के अलावा मलसीसर, नीराधनु होते हुए भी पहुंचा जा सकता हैं।