- एक दो नहीं 9 भाषाओं का था ज्ञान
जयपुर। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम आते ही भारतीय संविधान का जिक्र अपने आप आ जाता है। सारी दुनिया आमतौर पर उन्हें या तो भारतीय संविधान के निर्माण में अहम भूमिका के नाते याद करती है या फिर भेदभाव वाली जाति व्यवस्था की प्रखर आलोचना करने और सामाजिक गैरबराबरी के खिलाफ आवाज उठाने वाले योद्धा के तौर पर। इन दोनों ही रूपों में डॉक्टर अंबेडकर की बेमिसाल भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता, लेकिन डॉक्टर अंबेडकर ने एक दिग्गज अर्थशास्त्री के तौर पर भी देश और दुनिया के पैमाने पर बेहद अहम योगदान दिया, जिसकी चर्चा कम ही होती है। 14 अप्रैल 1891 में मराठी परिवार में जन्मे भीमराव के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां का नाम भीमाबाई था। काफी विषम परिस्थितियों में पढ़ाई करने वाले भीमराव को बचपन से ही कई तरह के भेदभाव झेलने पड़े थे। दलित समाज के उत्थान और उन्हें जागरुक करने में डॉक्टर भीमराव ने जो योगदान दिया, उसे आज भी पूरी दुनिया याद करती है। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का चयन सन् 1913 में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए हुआ था। जहां से उन्होंने राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की थी। यही नहीं, इसके दो साल बाद यानी सन् 1916 में उन्हें एक शोध के लिए पीएचडी से सम्मानित किया गया।
9 भाषाओ का था ज्ञान
ये बात शायद बेहद कम लोगों को पता है कि डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को नौ भाषाओं का ज्ञान था। इसमें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, पाली, मराठी, जर्मन, फ्रेंच, गुजराजी और पर्शियन जैसी भाषाएं शामिल थीं।
संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता भी कहा जाता है। ये बात सभी जानते हैं कि हमारे देश के संविधान के निर्माण में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का अहम योगदान रहा है। 29 अगस्त 1947 को उन्हें संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। संविधान का फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने में उन्हें दो साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। संविधान तैयार करने के दौरान भीमराव आंबेडकर के विचार थे कि विभिन्न वर्गों के बीच के अंतर को बराबर करना महत्वपूर्ण था, नहीं तो देश की एकता को बनाए रखना बहुत मुश्किल होगा। उन्होंने धार्मिक, लिंग और जाति समानता पर जोर दिया था। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने 6 दिसंबर 1956 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले देश के पहले अर्थशास्त्री थे डॉ अंबेडकर
आज भले ही ज्यादातर लोग उन्हें भारतीय संविधान के निर्माता और दलितों के मसीहा के तौर पर याद करते हों, लेकिन डॉ अंबेडकर ने अपने करियर की शुरुआत एक अर्थशास्त्री के तौर पर की थी। डॉ अंबेडकर किसी अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल करने वाले देश के पहले अर्थशास्त्री थे। उन्होंने 1915 में अमेरिका की प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से इकॉनमिक्स में एमए की डिग्री हासिल की। इसी विश्वविद्यालय से 1917 में उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी भी की। इतना ही नहीं, इसके कुछ बरस बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी अर्थशास्त्र में मास्टर और डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्रियां हासिल कीं। खास बात यह है कि इस दौरान बाबा साहेब ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से डिग्रियां हासिल करने के साथ ही साथ अर्थशास्त्र के विषय को अपनी प्रतिभा और अद्वितीय विश्लेषण क्षमता से लगातार समृद्ध भी किया।
पीएचडी की थीसिस बनी पब्लिक फाइनेंस की अहम किताब
डॉक्टर अंबेडकर ने 1917 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए जो थीसिस पेश की वह 1925 में एक किताब की शक्ल में प्रकाशित भी हुई। ‘प्रॉविन्शियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ के नाम से छपी इस किताब को पब्लिक फाइनेंस की थियरी में अहम योगदान करने वाला माना जाता है। इस किताब में उन्होंने 1833 से 1921 के दरम्यान ब्रिटिश इंडिया में केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय संबंधों की शानदार समीक्षा की है। उनके इस विश्लेषण को उस वक्त भी सारी दुनिया में बड़े पैमाने पर तारीफ मिली थी। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल इकॉनमी के प्रोफेसर और जाने माने विद्वान एडविन रॉबर्ट सेलिगमैन ने डॉ अंबेडकर की इस पीएचडी थीसिस की तारीफ करते हुए कहा था उन्होंने इस विषय पर इससे ज्यादा गहरा और व्यापक अध्ययन सारी दुनिया में कहीं नहीं देखा है। डॉ अंबेडकर की इस किताब को पब्लिक फाइनेंस की थ्योरी, खास तौर पर फेडरल फाइनेंस के क्षेत्र में अहम योगदान करने के लिए जाना जाता है।