इतिहास : जलियांवाला बाग़ के गुमनाम शहीदों हो सलाम

Jallianwala bagh
  • 102 साल हुए जलियांवाला बाग़ नरसंहार को
  • पीएम मोदी ने शहीदों को अर्पित की श्रंद्धाजलि, बोले आपका बलिदान हर भारतीयों को देता है मजबूती
  • 21 साल बाद शहीद उधम सिंह ने लिया बदला

जयपुर। भारत के इतिहास में 13 अप्रैल एक महत्वपूर्ण तारीख है। 102 साल पहले पंजाब में अमृतसर में जालियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। इस नरसंहार में सैकड़ों-हजारों लोगों की मौत हुई। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला। कहा जाता है कि इसी घटना के बाद से भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत हुई। 13 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने निहत्थे भारतीयों के साथ खूनी होली खेली थी। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए यहां एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नाम के एक अंग्रेज ऑफिसर ने उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दीं। उसने खुद कहा कि 1650 राउंड फायरिंग की गईं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलियांवाला बाग नरसंहार के शहीदों को मंगलवार को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने ट्वीट कर शहीदों को मैं श्रद्धांजलि दी, कहा कि आपका साहस, बलिदान और वीरता हर भारतीय को मजबूती देते हैं।

जान बचाने के लिए कुए में कूदे लोग
कुछ ही देर में पूरे बाग में लाशें बिछ गईं। जान बचाने के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे। भगदड़ में ही कई लोगों की मौत हुई। एक के ऊपर एक कई लाशें थीं। कुछ लोग जान बचाने के लिए वहां मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए। थोड़ी ही देर में कुआं भी लाशों से पट गया। करीब 10 मिनट तक फायरिंग होती रही और इस दौरान कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। कुए से ही 120 शव मिले। ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग लोग शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए थे। अंग्रेज हुक्मरान ने उन पर ही अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं।

Jallianwala Bagh

2018 12largeimg05 Wednesday 2018 00553561021 साल बाद लिया बदला
इस नरसंहार के समय जलियांवाला बाग में मौजूद रहे उधम सिंह ने 21 साल बाद 1940 में जनरल डायर को लंदन में गोली मारकर बदला लिया। जनरल डायर को मारने के लिए वे लंदन गए। इसके लिए उन्हें लंदन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। 31 जुलाई 1940 को लंदन की जेल में उन्हें फांसी दी गई। इस नरसंहार ने 12 साल के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। इस घटना के बाद आजादी हासिल करने की चाहत लोगों में और जोर से उफान मारने लगी। आजादी की चाह न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश के बच्चों के सिर चढ़ कर बोलने लगी। उस दौर के हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे से लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया।

 

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