जहां मां के गले से बहती रक्तधारा वाली प्रतिमा के होते है दर्शन

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-मां छिन्नमस्तिका मंदिर
– कामख्या की तरह ये भी है तांत्रिकों का प्रमुख स्थान
– इस शक्तिपीठ की भी है बड़ी मान्यता

@ मुकेश पारीक,बिसाऊ
माता दुर्गा सबसे शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं। पुराणों के अनुसार उन्हें माँ पार्वती का रूप माना जाता है जो कि भगवान शिव की पत्नी हैं। माँ दुर्गा के देश-दुनियां में अनेक मंदिर हैं जिसमें माता के अवतारों को पूजा जाता है। भारत वैसे बहुत वैभवशाली देश है यहां संस्कृति की बहुत्ता ही है जो सभी को परमात्मा की ओर जोड़ती है। इसी कड़ी में हम आज बात कर रहे हैं एक शक्तिशाली शक्तिपीठ के बारे में, जहां मां के गले से बहती रक्तधारा वाली मूर्ति है।

रजरप्पा में स्थित है मां का यह स्थान 
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिका का मंदिर है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर आस्था की धरोहर है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति जिसका सिर धड़ से अलग है तथा एक हाथ में मां अपना ही सिर लिए खड़ी हैं। इस मंदिर को असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। रजरप्पा के इस सिद्धपीठ के अलावा यहां पर अनेक मंदिर जैसे महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर। दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के पास ही मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बना हुआ है। दामोदर और भैरवी नदियों पर अलग-अलग दो गर्म जल कुंड हैं। माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से चर्म रोग जैसे कई गंभीर बीमारियां सही हो जाती है।

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उत्पत्ति की कहानी
एक बार भगवती भवानी अपनी दो सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भवानी के साथ-साथ दोनों सहलियों को तेज भूख लगी। जिसके कारण उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा,लेकिन वह बार-बार भूख लगने की हट करने लगी। बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह करते हुआ कहा – मां तो अपने बच्चों को तुंरत भोजन प्रदान करती है। ऐसा सुनकर भवानी ने अपने खडग से अपना ही सिर धड़ से अलग कर दिया। कटा हुआ सिर उनके बाए हाथ में जा गिरा और तीन रक्त धराएं बहने लगी। वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीऔर तीसरी धारा जो ऊपर की ओर बह रही थी, उसे स्वयं माता पान करने लगी। तभी से ये छिन्नमस्तिका कही जाने लगीं।

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तांत्रिक केन्द्र
असम में मां कामाख्या और बंगाल में मां तारा के बाद झारखंड का मां छिन्नमस्तिका मंदिर तांत्रिकों का मुख्य स्थान भी है। यहां देश-विदेश के कई साधक अपनी साधना करने नवरात्रि और प्रत्येक माह की अमावस्या की रात में आते हैं। तंत्र साधना द्वारा मां छिन्नमस्तिका की कृपा प्राप्त करते हैं।

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पशु की दी जाती है बलि
मां छिन्नमस्तिका का सिर कटा हुआ है। इनके गले के दोनो ओर से बहती हुई रक्तधारा को दो महाविधाएं ग्रहण करती हुई दिखाई दे रही है। मां के पैर के नीचे कमलदल पर लेटे हुए रामदेव और रति है। यहां पर बकरे की बलि दी जाती है। बलि के बाद सिर पुजारी ले जाता है और बचा हुआ भाग देने वाले व्यक्ति को दे दिया जाता है। लेकिन सबसे आश्चर्य की बात ये है कि जिस जगह बकरे की बलि दी जाती है, वहां पर इतना खून पड़े रहने के बाद भी एक भी मक्खी नहीं लगती है। चमत्कारों से ओतप्रोत यह मंदिर सभी के लिए एक जिज्ञासा का केन्द्र रहता है। भक्त अपनी मनोकामना मांगने यहां आते- जाते रहते हैं।

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