उदयपुर। पेसिफिक मेडिकल काॅलेज एण्ड हाॅस्पिटल, भीलों का बेदला में 800 ग्राम वजनी नवजात को नया जीवन देकर शादी के 18 साल बाद मां-बाप बनें दम्पति की झोली को फिर से खुशीयों भर दिया, और यह सम्भव हो सका है, अनुभवी चिकित्सको की टीम, बेहतरीन इन्फ्रस्ट्रक्चर, हाईटेक उपकरण एवं बेहतर नर्सिग केयर के कारण।
दरअसल जयपुर के लूनियाॅवास निवासी महिला के 28 सप्ताह की 800 ग्राम वजनी प्रीमेच्योर बच्ची ने जन्म लिया। जन्म लेते ही फेफडों के कमजोर होने के कारण उसे वेंटिलेटर पर लेना पड़ा और तीसरे दिन ही बच्ची का पेट फूलने लगा एवं वजन घट कर 760 ग्राम रह गया। परिजन उसे पेसिफिक हाॅस्पिटल लेकर आए जहाॅ बाल एवं नवजात शिशू सर्जन डाॅ.प्रवीण झंवर को दिखाया तो जाॅच करने पर पता चला की बच्ची के आमाशय में छेद है। जिसके कारण इंन्फेक्शन काफी बड़ गया था। जिसका आॅपरेशन द्वारा इलाज सम्भव था बच्ची का तुरन्त इर्मन्जेसी में ऑपरेशन किया गया।
ऑपरेशन पिडियाटिक सर्जन डॉ.प्रवीण झंवर,डाॅ.कोणार्क,डाॅ.अर्पित,डाॅ.अजय एवं उनकी टीम द्वारा किया गया, पूरी सर्जरी के दौरान निश्चेतना देने वाले एनेस्थीसिया विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.विजय चाहर,एवं डॉ.स्वाति शर्मा का अमूल्य योगदान रहा जिसके कारण इस ऑपरेशन को करना सम्भव हो पाया। करीब 100 दिन एनआईसीयू में डॉ.पुनीत जैन,डॉ.सन्नी मालवीय,मनीष एवं कल्पेश की देख रेख में बच्ची पूर्णत स्वस्थ और 1400 ग्राम की हो गई हैं। बाल एवं नवजात शिशू सर्जन डाॅ.प्रवीण झंवर ने बताया कि इस तरह के केसेज में बच्चें की बचने की संभावना 10 फीसदी से कम होती है। डाॅ.झंवर ने बताया की गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परफोरेशन की संभावित जटिलताओं में आंतरिक रक्तस्राव और सेप्सिस शामिल हैं।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परफोरेशन की समस्या तब होती है, जब गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट ब्लाॅक होने लगता है यानि कि उसके मार्ग की निरंतरता खो जाती है। यह स्थिति आसानी से गंभीर जटिलताओं में विकसित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मरीज कीे जान को खतरा हो सकता है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में नुकसान से आंतों की दीवार में एक छेद विकसित हो जाता है। इसकी जटिलताओं को रोकने के लिए शुरुआती पहचान और उपचार महत्वपूर्ण है। परिजनों ने पीएमसीएच के चेयरपर्सन राहुल अग्रवाल एवं समस्त स्टाॅफ बेहतरीन सुविधा एवं देखभाल के लिए धन्यवाद दिया। बच्ची अभी पूरी तरह से स्वस्थ्य है और उसको छूट्टी दे दी है।