उदयपुर। चैत्र नवरात्रि से ठीक पांच दिन पहले एकादशी सोमवार को मेवाड़ की ईडाणा माता ने दिन में 11.15 बजे अग्नि स्नान किया। मां ज्वाला स्वरूपा ईडाणा माता का अग्नि स्नान का पता चलते ही लोग भरी दुपहरी में दर्शनों के लिए मंदिर पहुंच गए। 2022 में ईडाणा माता का यह पहला अग्नि स्नान हैं।
ईडाणा माता का ये स्थान उदयपुर जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर कुराबड़- बम्बोरा मार्ग पर अरावली की पहाडिय़ों के बीच स्थित है। कहते है कि यहां आने वाले श्रद्धालु की हर मुराद पूरी होती हैं। सबसे खास बात यह है कि देश के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों की तरह ईडाणा माता मंदिर में माता के सिर के ऊपर कोई गगनचुंबी शिखर नहीं है। यहां बिना छत के खूले चौक में ईडाणा मां बरगद के पेड़ के नीचे विराजमान हैं। मां की मूर्ति के पीछे केवल मनोकामना पूरी होने पर भक्तों की ओर से चढाई जाने वाली चुनड़ी और त्रिशुलों का सुरक्षाचक्र हैं।
हजारों साल पुराने इस श्री शक्ति पीठ ईडाणा माता मंदिर में अग्निस्नान की परम्परा चली आ रही है। यहां कभी भी आग लग जाती है और अपने आप बुझ जाती है। अग्नि स्नान के समय आग इतनी विकराल होती है कि 10 से 20 मीटर ऊंची लपटे उठती हैं। इससे ईडाणा माता प्रतिमा के आसपास प्रसाद, चढ़ावा, अन्य पूजन सामग्री आदि सब कुछ तो जलकर राख हो जाता है, लेकिन ईडाणा माता की जागृत प्रतिमा और धारण की हुई चुनड़ी पर आग का कोई असर नहीं होता। प्रतिमा वर्षों पहले जैसी थी आज भी वैसी ही हैं, जबकि ईडाणा माता के अग्नि स्नान के समय उठने वाली लपटों से कई बार बरगद के पेड़ तक को नुकसान पहुंचा हैं जिसके नीचे सदियों से माता रानी विराजमान हैं। ईडाणा माता मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. कमलेन्द्र सिंह बेमला के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं। मान्यता है कि अग्नि स्नान के दर्शन करने वाले की हर मनोकामना माता पूरी करती हैं। इसके चलते मेला सा लग जाता हैं।
लकवे का होता है यहां इलाज
इस मंदिर में नागौर के बूटाटी धाम की तरह लकवे का इलाज भी होता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई लकवाग्रस्त व्यक्ति यहां आता है तो वह यहां से स्वस्थ्य होकर लौटता है। यहां लकवाग्रस्त से यज्ञ करवाया जाता है तथा मंदिर के तलधर में बने हॉल में एक लोहे के द्वार से लकवाग्रस्त व्यक्ति को गुजारा जाता है। सभी लकवा ग्रस्त रोगी रात्रि में माँ की प्रतिमा के सामने स्थित चौक में आकर सोते है। यहां सोने के पीछे माना यह जाता हैं कि माता अपनी परछाई डालती हैं उससे ही लकवे के रोगी ठीक होते हैं।
निसंतान भी लगाते हैं अर्जी
जिन महिलाओं के बच्चे नहीं होते वे भी यहां मनौती मांगने आती हैं और मनोकामना पूरी होने पर बच्चे का एक झूला आदि मां के दरबार में टांग कर जाती हैं। इस मंदिर में भक्तों द्वारा मां को मुर्गे भी भेंट किये जाते हैं,लेकिन यहां किसी जानवर की बलि नहीं चढ़ाई जाती।
रहने-खाने की नि:शुल्क व्यवस्था
यहां मरीज तथा साथ आने वाले परिजनों के लिए रहने-खाने की नि:शुल्क व्यवस्था श्रीशक्तिपीठ ईडाणा की तरफ से की हुई हैं। मंदिर क्षेत्र में दस-बारह धर्मशाला भी बनी हुई हैं जिसमें श्रद्धालु ठहरते हैं।
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
यहां दूर-दूर से गुजरात, दिल्ली, मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों से हजारो श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। श्रद्धालु माता रानी के जयकारे लगाते हुए आते हैं। ईडाणा माता की सबसे अधिक मान्यता आदिवासियों में हैं। मेवाड़ और वांगड़ दोनों क्षेत्रों से आदिवासी यहां मनोकामना के लिए आते हैं। इसी तरह स्थानीय राजा-रजवाड़े भी ईडाणा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। यह मंदिर कुराबड़ ठीकाने की जागीर में आता हैं। पहले मंदिर की सेवा पूजा व सार संभाल ठीकाने के माध्यम से ही होती थी,चूंकि अब ट्रस्ट बन गया जो मंदिर की सारी व्यवस्थाओं का संचालन करता हैं। माता के इस मंदिर में श्रद्धालु चढ़ावे में लच्छा चुनरी और त्रिशूल लाते हैं। मंदिर में कोई पुजारी नहीं है। यहां सभी लोग देवी मां के सेवक हैं। हालांकि कोरोना वायरस के कारण इस बार नवरात्रि में यहां बड़े मेले का आयोजन नहीं हो रहा है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ माता रानी के दर्शन करवाये जा रहे हैं। मंदिर प्रबंधन का कहना है कि इस बार ईडाणा माता मंदिर में कोविड-19 को खत्म करने को लेकर विशेष पूजा.अर्चना भी की जा रही है।
गौशाला
ईडाणा माता मंदिर ट्रस्ट की ओर से बुढी,अपाहिज,बीमार व लावारिश गायों की सेवा के लिए एक गौशाला का संचालन भी किया जा रहा हैं। मंदिर परिसर में ही बनी इस गौशाला में वर्तमान में करीब साढ़े तीन सौ गाये हैं,जिनकी देखभाल व मंदिर में श्रद्धालुओं आदि के भोजन-पानी प्रबंध के लिए 45 लोगों का स्टॉफ कार्यरत हैं।
प्रमुख दर्शन
इस शक्ति पीठ की विशेष बात यह है कि यहाँ माँ के दर्शन चौबीस घंटें खुले रहते हैं। वैसे प्रात: साढ़े पांच बजे प्रात: आरती, सात बजे श्रृंगार दर्शन, सायं सात बजे सायं आरती दर्शन यहाँ प्रमुख दर्शन हैं।यहां एक नवग्रह मंदिर भी बना हुआ है जहां अनुष्ठान होते रहते हैं वर्तमान में भी शतचंडी महायज्ञ चल रहा है, लेकिन कोरोना के कारण सूक्ष्म तरीके से इसका आयोजन हो रहा है। केवल शतचंडी यज्ञ करने वाले पंडित ही गाइड लाइन की पालना करते हुए पाठ कर रहे हैं। मां के दरबार में अखंड ज्योति जलती रहती है। यहां तपस्वी संत की धुनी भी है जिसके श्रद्धालु दर्शन करते हैं।
कैसे पहुंचें
उदयपुर शहर से मात्र 60 किलोमीटर की दूरी पर ईडाणा माता का मंदिर यानी श्रीशक्ति पीठ हैं। यहां उदयपुर शहर के सूरजपोलगेट से प्रात: से ही देर शाम तक उपनगरीय बस सेवा उपलब्ध हैं। इसके अलावा कुराबड़-बम्बोरा मार्ग पर चलने वाले वाहनों से बम्बोरा पहुंच वहां से जीप आदि अन्य साधनों से शक्तिपीठ पहुंचा जा सकता है। स्वयं के वाहनों से देबारी. साकरोदा. कुराबड. बम्बोरा होते हुए शक्ति पीठ पंहुचा जा सकता है।