दो दिवसीय बैकयार्ड मुर्गी पालन एवं प्रबंधन विषय पर प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ

बैकयार्ड मुर्गी पालन

श्रीगंगानगर : पशु विज्ञान केंद्र सूरतगढ़ में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली की अनुसूचित जाति उप योजना एवं प्रसार शिक्षा निदेशालय राजूवास बीकानेर की ओर से आयोजित बैकयार्ड मुर्गी पालन एवं प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ किया गया। जिसमें केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. राजकुमार बेरवाल ने बताया कि घर में मुर्गी पालन भारत में ग्रामीण और भूमिहीन परिवारों में आम बात है और अतिरिक्त आय का आकर्षक विरोध भी है। यह कम निवेश में अधिक मुनाफा देता है और महिलाओं बच्चों और बुजुर्गों द्वारा आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है।

ऐसे पक्षियों के मांस और अंडे गरीब परिवारों के लिए प्रोटीन और ऊर्जा का सस्ता और समृद्ध स्रोत भी है। बैकयार्ड मुर्गी पालन से मांस और अंडे का उत्पादन बढ़ाना कई वर्षों से भारत सरकार का एक प्रमुख विषय रहा है। बैकयार्ड पोल्ट्री उत्पादन में सुधार के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। मुर्गी पालन आज भारत में कृषि क्षेत्र के सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है। प्रशिक्षण शिविर में केंद्र के डॉ. अनिल घोड़ेला तथा डॉ. मनीष कुमार सेन ने बैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए उन्नत नस्लों के बारे में विस्तार से बताया तथा बैकयार्ड मुर्गियों की उन्नत किस्मों का प्रबंधन के बारे में कहा कि फ्री रेंज के तहत अगर प्राकृतिक चारा उपलब्ध है तो अंडे के उत्पादन के लिए छोटी संख्या में बैकयार्ड मुर्गी पालन किया जा सकता है।

हालांकि अगर स्थानीय मांग मांस की है तो पक्षियों को गहन तथा अर्ध गहन मुर्गी पालन के तहत बड़ी संख्या में पाला जा सकता है लेकिन सुविधाएं कमर्शियल ब्रायलर के समान प्रदान करनी पड़ती है। 6 सप्ताह तक उचित ब्रूडिंग के तहत पालने की जरूरत है जिसके बाद वे फ्री रेंज के तहत पाली जा सकती है।

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