परीक्षाओं में इंटरनेट बंद करने पर राजस्थान हाईकोर्ट सख्त, कहा- संभागीय आयुक्त ने किस अधिकार से इंटरनेट किया बंद

जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने परीक्षाओं में इंटरनेट बंद करने के फैसले पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस फरजंद अली की बेंच ने इंटरनेट बंद करने को चुनौती देने वाली याचिका पर गहलोत सरकार से सवाल करते हुए पूछा कि संभागीय आयुक्त ने किस अधिकार से नेट बंद करने के आदेश जारी किए हैं। इंटरनेट बंद करने का अधिकार गृह सचिव के पास है। राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट एमएस सिंघवी ने हाईकोर्ट से समय मांगा है। अब अगली सुनवाई 23 नवम्बर को होगी।

केवल इमरजेंसी और लोक सुरक्षा के मद्देनजर ही नेटबंदी का नियम

राजस्थान में हर परीक्षा में इंटरनेट बंद करा दिया जाता है। फिर भी नकल रोकने में गहलोत सरकार नाकाम रही है। एडवोकेट नीरज यादव ने हाईकोर्ट में संभागीय आयुक्त के आदेश पर इंटरनेट बंद करने के खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिका में कहा कि टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज पब्लिक इमरजेंसी आर पब्लिक सेफ्टी रूल्स 2017 के तहत केवल इमरजेंसी और लोक सुरक्षा के मद्देनजर ही नेटबंदी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि परीक्षाएं सालभर चलने वाली एक रूटीन प्रक्रिया है। यह इन दोनों कैटेगरी में नहीं आती है।

जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस फरजंद अली ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि संभागीय आयुक्त ने किस अधिकार से इंटरनेट बंद करने के आदेश जारी किए हैं। यह अधिकार गृह सचिव के पास हैं। याचिका में कहा कि सरकार प्रतियोगी परीक्षा में नकल रोकने का हवाला देकर नेटबंदी कर रही है। ये आमजन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन

याचिकाकर्ता के वकील यर्थाथ गुप्ता ने कहा कि अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना वजह इंटरनेट बंद नहीं किया जा सकता है। नेटबंदी करना संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। साल 2018 में 14 और 15 जुलाई को कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा आयोजित हुई थी। तब दो दिन इंटरनेट बंद किया था। जोधपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई कि संभागीय आयुक्त को नेट बंद करने का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। सुनवाई के दौरान सरकार ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र पेश करके कहा था कि भविष्य में किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए नेटबंदी नहीं की जाएगी।

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