नेट थिएटर पर नाटक “जायज़ हत्यारे”का सशक्त मंचन

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जयपुर: नेट थिएट पर मंचित नाटक जायज़ हत्यारे अल्बेयर कामू के नाटक ‘ द जस्ट एसासिंस ‘ का हिंदी रूपांतरण है l जिसे सुरेश भारद्वाज और दीपा साही ने रूपांतरित किया है। नाटक की कहानी स्वतंत्रता से पहले लगभग 1930 के आस पास की है।

नेट थिएट के राजेंद्र शर्मा राजू ने बताया की नाटक जायज हत्यारे का निर्देशन युवा रंगकर्मी अभिषेक मुदगल ने किया l नाटक उन क्रान्तिवीरों की कहानी है जो हिंसक क्रान्ति द्वारा अंग्रेजो से भारत को आजाद कराने के लिए प्रयत्नशील थे। नौजवान क्रान्तिकारियों का ये दल अंग्रेज गर्वनर को बम फेंक कर मारने के मौके की तलाश में हैं।जिससे अंग्रेजी हुकूमत को डरा कर देश छोड़ने के लिये मजबूर किया जा सके। दल का केन्द्रीय पात्र विमी तय समय पर गवर्नर की बग्घी पर बम फेंकने के लिए जाता है, पर बग्घी में बच्चों को भी बैठे देख कर वह बम नहीं फेंकता और लौट आता है।

दल का दूसरा सदस्य सुखेन इस बात पर बहुत नाराज होता है कि विमी ने बम क्यों नहीं फेंका, जबकि दल के अन्य सभी सदस्य विमी के इस विचार से सहमत होते हैं कि मासूम बच्चों को बम का निशाना बनाया जाना जायज नहीं है। अगले प्रयास में विमी, अंग्रेज गवर्नर पर बम फेंकने में सफल हो जाता है और लोगों तक आजादी के लिये आवाज बुलन्द करने के लिए प्रेरित करने के लिए खुद को गिरफ्तार करवा देता है।अंग्रेज हुकूमत विरोध के इस स्वर को दबाने के लिये जेल में विमी को जान बख्शने के एवज में यह बयान दिलवाने की कोशिश करती है कि उसे अपने किये पर पछतावा है।अंग्रेज हुकूमत की तरफ से स्वयं गवर्नर की बीवी को उसे, इसके लिये राजी करवाने के लिये भेजा जाता है, पर विमी इससे इन्कार कर फांसी पर चढ़ जाता है।

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कॉलेज के जमाने की विमी की प्रेमिका और दल की महिला सदस्या देविका, विमी की शहादत के बाद खुद भी देश पर कुर्बान होने के लिये आगे आती है और नाटक के अंत में वो कहती है कि अगला बम मैं फेंकूंगी।

नाटक में ओंकार- दीपेश रंजन पांडेय,सुखेन- गगन श्रीवास्तव,विवान- देव स्वामी, राहुल निर्वाण,
विमी- उत्कर्ष कश्यप,देविका- श्‍वेता चौलागाईं, बीवी- याशिका विजय, चीफ- नवीन शर्मा और फ़ज़ल- अविनाश शंखवार ने अपने सशक्त अभिनय से क्रांतिकारियों के स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई भूमिका को जीवंत कर दिया l
नाटक में प्रकाश अमित चौधरी, संगीत संचालन: सुधांशु शुक्ला,वस्त्र विन्यास: गरिमा सिंह राजावत और सेट: गिरीश यादव का मंचन में विशेष योगदान रहा l

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