आयुर्वेद सम्बन्धी मिथको और तथ्यों पर आयुर्वेद की रोशनी

आयुर्वेद सम्बन्धी मिथको और तथ्यों पर आयुर्वेद की रोशनी

जयपुर : छठे आयुर्वेद दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ने अपने परिसर में सोमवार को “पोषण के लिए आयुर्वेद ” विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की। आयुर्वेद की दृष्टि से पोषण के अनेक महत्वपूर्ण और सामायिक पहलुओं पर केंद्रित इस संगोष्ठी में अनेक जाने माने विशेषज्ञों ने अनुभव आधारित विचार और उदाहरण प्रस्तुत किये।

व्याख्यानों में गर्भावस्था के लिए पोषण की अवधारणा, आहार से संबंधित मिथक और तथ्य, खाद्य तेल के विकल्प और पोषण में उनकी भूमिका, एनीमिया प्रबंधन, पोषण में यकृत स्वास्थ्य की भूमिका, भोजन संस्कार का महत्वपूर्ण विश्लेषण और विभिन्न व्यंजनों पर प्रकाश डाला गया।

तीन सत्रों में आयोजित इस संगोष्ठी का उद्धघाटन मुख्य अतिथि के रूप में माननीय सचिव , आयुष मंत्रालय , भारत सरकार पद्मश्री वैद्य राजेश कोटेचा द्वारा किया गया | इस कार्यक्रम में प्रमोद कुमार पाठक, विशेष सचिव, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार, वैद्य जयंत देवपुजारी (अध्यक्ष, NCISM), प्रो. अभिमन्यु कुमार (कुलपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर) और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के पूर्व सभी निदेशक सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

आयुर्वेद सम्बन्धी मिथको और तथ्यों पर आयुर्वेद की रोशनी

कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्थान के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने मुख्य अतिथि एवं अन्य अतिथि गणों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा से सबको अवगत करवाया। इसी कार्यक्रम की शुरुआत में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के लिए देहदान कराने की सेवाओं के लिए श्री कमल सचेती जी को सम्मानित भी किया गया।

उद्धघाटन समारोह के अंत में प्रो-वाईस चांसलर एवं आयोजन समिति की अध्यक्षा प्रो. मीता कोटेचा ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। संगोष्ठी के पहले सत्र में वैद्य जयंत देवपुजारी जी ने गर्भिणी में पोषण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए गर्भावस्था में विभिन्न पोषण से सम्बंधित स्थितियों के बारे में बताया। उन्होंने आयुर्वेद के माध्यम से गर्भिणी पोषण बनाये रखने के लिए अनेक तरीकों को अपने व्याख्यान में बताया।

आयुर्वेद सम्बन्धी मिथको और तथ्यों पर आयुर्वेद की रोशनी

मासानुमासिक अर्थात हर माह में गर्भिणी को भोजन में क्या दिया जाये इस पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। प्रथम सत्र की दूसरी वक्ता प्रो. मीता कोटेचा ने पोषण से सम्बंधित मिथक और तथ्यों पर प्रकाश डाला। अपने व्याख्यान में पोषण से जुडी मिथकों पर उन्होंने प्रकाश डाला जो आम जनता के लिए नया था। उन्होंने शहद , दही और घी से जुड़े मिथकों और भ्रांतियों पर प्रकाश डाला।

इंस्टिट्यूट ऑफ़ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के डॉ.शिव कुमार सरीन ने लिवर का पोषण में महत्त्व बताया। उनके व्याख्यान में यह बताया गया कि किस प्रकार लिवर शरीर को बना या बिगाड़ सकता है। लिवर कि भूमिका को पोषक तत्वों के अवशोषण में बताते हुए लिवर को कैसे स्वस्थ रखा जा सकता है उन सभी तरीको पर भी प्रकाश डाला।

द्वितीय सत्र में इंस्टिट्यूट ऑफ़ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के प्रोफेसर डॉ. उमेश कपिल जी ने भारत में पोषणजन्य खून कि कमी के उपचार तथा प्रबंध के तरीकों पर बात की, उन्होंने जन स्तर पर एनीमिया को ठीक करने के लिए जनता तथा सरकार के द्वारा क्या कदम लिए जा रहे है और क्या कदम लिए जा सकते है पर बड़े रोचक तरीके से बताया। इसी सत्र के दूसरे व्यख्यान में डॉ. रश्मि शर्मा (सह – प्राध्यापक, रसायन विज्ञान विभाग , अजमेर ) ने खाने में इस्तेमाल किये जाने वाले तेलों की जानकारी दी उन्होंने सही खाद्य तेल का चुनाव कैसे करें और आजकल बाजार में उपलब्ध अनुपयुक्त तेलों से होने वाले नुक्सान के बारे में बात की। उन्होंने राइस ब्रान आयल, सैफ्लावर आयल तथा ओलिव आयल पर विस्तार से बात की। उन्होंने मौसम तथा जलवायु के अनुसार तेल का चुनाव करने के विषय में भी बात की।

तृतीय सत्र में पवमाना फार्मेसी के डॉ. श्रीनिवास वाडेयार ने सूप (यूष) और उनके फायदों के विषय में बात की | उन्होंने यूष बनाने का सही तरीका और विभिन्न पोषक तत्वों की कमी में उसके उपयोग के विषय में विस्तार से बात की। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के डॉ. असित कुमार पांजा ने भोजन संस्कार अर्थात भोजन को बनाने की विभिन्न विधियों पर विस्तार से चर्चा की। भोजन संस्कार जैसे कूटना , ग्राइंड करना , छौंक लगाना , पानी में भीगा के रखना आदि से भोजन के गुणों में होने वाले परिवर्तन के विषय में बताया। पोषण में संस्कार के महत्त्व के बारे में भी उन्होंने चर्चा की।
संगोष्ठी का अंतिम व्याख्यान मुकेश गुप्ता जी द्वारा लिया गया , उन्होंने संस्कृति तथा परम्पराओं का स्वास्थ्य तथा पोषण पर क्या प्रभाव है उस पर बात की। विभिन्न परम्पराओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने बदलती परम्पराओं के कारण पोषण सम्बन्धी परेशानियों के बारे में बताया।

संगोष्ठी में 1500 से ज़्यादा लोग उपस्थित हुए तथा ऑनलाइन माध्यम से भी लोगों ने व्याख्यानों का लाभ उठाया।
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के 2 दिवसीय कार्यक्रम में दूसरे दिन पुस्तकों , प्रचार सामग्री , लघु फिल्मों तथा राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान द्वारा विकसित वाताद कुकीज़ का लांच भी किया जाना है।

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