खरी-खरी: भाजपा की तो ये दुर्गति होनी ही थी, कांग्रेस को भी ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं

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जयपुर। राजस्थान के वल्लभनगर व धरियावद में हुए उपचुनावों के अप्रत्याशित परिणामों की खुशी में कांग्रेस में जीत के ढोल ताशे बज रहे हैं। बजने भी चाहिए। कांग्रेस नेता गदगद हैं और इस खुशी को बांटते हुए एक दूसरे की पीठ थपथपाने में लगे हैं। दूसरी तरफ भाजपा में मातमी सन्नाटा सा बिसरा हुआ है। यह भी भाजपा की गलतियों पर गलतियों का परिणाम है। इन दोनों ही उप चुनाव क्षेत्रो में टिकट वितरण के बाद जो तस्वीर बनी उसे देख थोड़ी बहुत चुनावी भूगोल- गणित जानने वाला व्यक्ति ये भविष्यवाणी कर सकता था कि यहां भाजपा तो कतई नहीं जीतने वाली। फिर ये बात देश चलाने वाले तथा आगामी विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता की उम्मीद पाले बैठे भाजपा नेताओं को क्यों नहीं सुझी। भाजपा ने सच्चाई को जानते हुए भी ऐसा फैसला क्यों किया। भाजपा नेता जमीनी हकीकत से अनजान क्यो बने रहे? भाजपा को तो अपना राशिफल अभी से पढ़ लेना चाहिए कि ऐसे ही चलोगे तो 2023 में सरकार बनाने के सपने देखना मूर्खता हैं।

राजस्थान में भी तीसरी शक्ति का उदय

भाजपा ने तो इन उप चुनावों में जो “खेला’ खेला उसका तो ये ही परिणाम आना था। कांग्रेस को भी ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं हैं। इन उप चुनावो में मतों के विभाजन ने कांग्रेस को जबरदस्त सफलता दिलवा दी। ऐसे चमत्कार की तो चुनावो की बागडोर संभाले बैठे नेताओ को भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही भविष्य में होने वाले खतरे का शायद अहसास नहीं हैं। ये खतरा बन उभरेगी बीटीपी और आरएलपी। इन दोनों ही दलों ने जो प्रदर्शन उप चुनाव में किया है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्थान में भी तीसरी शक्ति का धीरे-धीरे उदय हो रहा है। बीटीपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में जिस तरह का प्रदर्शन किया था उससे कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दल बुरी तरह प्रभावित हुए थे उसे भुलाना नहीं चाहिए।

धरियावद में तकनीकी कारणों से थावरचंद के बीटीपी उम्मीदवार न बन पाने के बावजूद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 50 हजार वोट प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहना उसे हल्के में नहीं आंका जा सकता। आदिवासी क्षेत्रों में बीटीपी के बढ़ते वर्चस्व से जो हालात बनते जा रहे हैं उससे आने वाले समय मे कांग्रेस को ही अधिक नुकसान होने वाला है। इस सच्चाई से आदिवासी क्षेत्र के कांग्रेस नेता अपने आकाओं को समय-समय पर अवगत भी करवाते भी रहे हैं। बीटीपी ज्यों-ज्यों मजबूत होती जा रही हैं उसके चलते शांत प्रिय राजस्थान में नक्सलवाद की नई समस्या से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जिस तरह के घटनाक्रम बीटीपी के आने के बाद राजस्थान के आदिवासी अंचल में देखने को मिल रहे हैं उसको देखते हुए गैर आदिवासियों के पलायन के बड़े खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता।

आरएलपी की मारवाड़ से सीधी मेवाड़ में सेंध

बीटीपी का तो सीमित क्षेत्र आदिवासी अंचल ही है, लेकिन हनुमान बेनीवाल की आरएलपी की मारवाड़ से सीधी मेवाड़ में सेंध को कम आंककर नहीं चलना चाहिए, क्योंकि बेनीवाल की पार्टी आरएलपी राजस्थान की आधे से अधिक सीटों पर बड़ा चुनावी उलटफेर कर सकती हैं। हनुमान बेनीवाल जाट समाज के सबसे बड़े नेता हैं। राज्य की दो सौ में से लगभग आधी सीटे ऐसी है जिन पर जाट मतदाता या तो निर्णायक स्थिति में है अन्यथा हार- जीत को प्रभावित कर सकने में तो सक्षम हैं। बेनीवाल धरियावद से पहले सुजानगढ़ में अपनी इस ताकत का अहसास करवा चुके हैं। बेनीवाल इन दोनों ही उप चुनावों में जाटों के साथ दूसरे वर्ग- समाज के मतदाताओं को साधने में सफल रहे। चूंकि वल्लभनगर व सुजानगढ़ में बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया,लेकिन विधानसभा आम चुनावों में कई क्षेत्रों में कांग्रेस को भी घाटा उठाना पड़ सकता हैं।

टूट सकता है तिलस्म

2023 में सत्ता पर काबिज होने का सपना पाले बैठी भाजपा- कांग्रेस दोनों बीटीपी- आरएलपी की आहट को अभी से समझे वर्ना दावे धरे रह जाएंगे। दोनों की ही सत्ता की कुर्सी खिसक सकती है। राजस्थान में वर्षों से चली आ रही दो दलीय अवधारणा का तिलस्म भी टूट जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इतना नहीं तो कम से कम सत्ता की चाबी तो इन क्षेत्रीय दलों के हाथ मे आ सकती है।

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