जयपुर। राजस्थान में हुए दो सीटों वल्लभनगर व धरियावद के उपचुनावों में भाजपा की करारी हार ने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को राजस्थान में प्रदेशाध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष दोनों ही पदों पर बदलाव के लिए मजबूर कर दिया हैं। सतीश पूनिया के स्थान पर दूसरा कोई नया चेहरा प्रदेशाध्यक्ष पद पर तथा नेता प्रतिपक्ष पद से गुलाबचंद कटारिया को हटाकर किसी अन्य को बागडोर सौंपे जाने की कवायद शुरू हो गई हैं। पूनिया व कटारिया को तो हटाया जाना तय है। बस ! अब तो इनके स्थान पर पार्टी व विधायक दल की कमान किसे सौंपी जाए उस पर विचार मंथन हो रहा हैं।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने ये जानकारी देते हुए बताया कि उपचुनावों में कांटे के मुकाबले में पार्टी प्रत्याशी हारते तो शीर्ष नेतृत्व राजस्थान को फिलहाल नहीं छेड़ता,लेकिन वल्लभनगर में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी हिम्मतसिंह झाला के चौथे स्थान पर चले जाने तथा जमानत तक न बचा पाने को राष्ट्रीय नेतृत्व ने गंभीर माना है। इसी तरह धरियावद सीट जो पहले भाजपा की थी उस पर पार्टी उम्मीदवार खेतसिंह के तीसरे स्थान पर खिसक जाने का जो शर्मनाक खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा हैं उसने ही राष्ट्रीय नेतृत्व को राजस्थान में संगठन स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन को मजबूर कर दिया हैं। वैसे भी पूनियां प्रदेशाध्यक्ष तथा कटारिया नेता प्रतिपक्ष के साथ भाजपा में मेवाड़ के भी क्षत्रप माने जाते है ऐसे में नैतिकता के आधार पर भी दोनों को उपचुनाव ने करारी हार के लिए त्याग पत्र की पेशकश स्वयं ही कर देनी चाहिए। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया तो वैसे भी उम्रदराज हो गए। दूसरा अपने ही बयानों को लेकर विवादों में रहने के चलते कटारिया की विदाई पार्टी कभी भी कर सकती हैं। सतीश पूनियां के स्थान पर किस नए चेहरे को बागडोर सौंपी जाए यह टेढ़ी खीर हैं।
ये हो सकते है नए विकल्प
सूत्रों ने बताया कि राजस्थान में जहां तक भाजपा नेतृत्व का सवाल है उसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सबसे मजबूत दावेदार हैं,लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह राजे के स्थान पर नया नेतृत्व चाहते हैं। राजस्थान में नया चेहरा देने की कवायद के तहत राज्यवर्धनङ्क्षसह राठौड़ को आगे करने की बात आई तो उनकी रिपोर्ट ठीक नहीं आई। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत भी राजस्थान में सरकार गिराने के विवादं में फंसे हुए। बीच में दलित चेहरे के रूप में केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल का नाम भी उछला था ,लेकिन वे खुद ही पीछे हटते हुए नजर आएं। भाजपा राजे के अलावा किसे सीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट करें उसमें सबसे प्रमुख नाम लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला का हैं। वे मोदी-शाह के निकट भी है तो उनमें सबको साथ लेकर चलने की क्षमता भी। बिड़ला के अलावा मजबूत दावेदारों में ओम प्रकाश माथुर भी माने जाते हैं। वे गुजरात प्रभारी के रूप में काम कर चुके हैं तथा मोदी-शाह से अच्छे संबंधों के बावजूद अभी तक उन्हें कोई सरकार में भागीदारी को मौका भी नहीं मिला हैं।
पूनियां की जगह ले सकते है बंसल
भाजपा इन दो चेहरों के अलावा राजस्थान में पार्टी संगठन की बागडोर सतीश पूनियां के स्थान पर सुनील बंसल को यूपी से ला सौंप सकती हैं। बंसल मूलत: राजस्थान से ही हैँ और वर्तमान में उत्तरप्रदेश में संगठन महामंत्री के रूप में काम देख रहे हैं,हालांकि उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बंसल की सिफ्टिंग में देरी हो सकती हैं।
राजे भी जल्दी से मैदान छोडऩे वाली नहीं
भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व की राजस्थान को लेकर इन मशक्कतों के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे आसानी से अपनी दावेदारी नहीं छोडऩे वाली। उपचुनाव परिणामों ने राजे खेमे को और अधिक ताकत दी हैं। उनके समर्थक माने जाने वाले भाजपा से निष्कासित रोहिताश कुमार तथा पूर्व संसदीय सचिव भवानीसिंह राजावत ने उपचुनाव परिणाम आते ही फिर से वसुंधरा राजे को सीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट करने की मांग उठाने लगे हैं। वसुंधरा राजे भी अब लम्बी चुप्पी के बाद जन समर्थन जुटाने के लिए शीघ्र ही राजस्थान दौरे पर निकलने वाली है। राजे का सामाजिक व धार्मिक यात्रा का जो प्रस्तावित कार्यक्रम है वह मेवाड़ से ही शुरू करने की संभावना है जहां हाल में वल्लभनगर व धरियावद उपचुनाव सम्पन्न हुए हैं। यह यात्रा कार्यक्रम ऐसा रहेगा जिसके तहत राजे कोई सभा टाइप का आयोजन नहीं करेगी। मंदिरों में दर्शन तथा उन कार्यकर्ताओं के घर जाने का रहेगा जहां कोरोनाकाल के दौरान परिवार में कोई दु:खद त्रासदी हुई हैं। यानी शोक संवेदना प्रकट करने के इस कार्यक्रम में जुटने वाली भीड़ आदि को लेकर पार्टी में उनके विरोधी भी ऐतराज नहीं उठा सकते और ना ही राष्ट्रीय नेतृत्व ऐसे यात्रा प्रवासों के लिए उन्हें रोक सकता। राजे के इस शक्ति प्रदर्शन को देख राष्ट्रीय नेतृत्व भी इस बात को लेकर मजबूर हो जाए कि राजस्थान में फिलहाल वसुंधरा राजे का कोई विकल्प व तोड़ नहीं हैं।
अरुणसिंह व चन्द्रशेखर पर भी आ सकती हैं आंच
उपचुनाव टिकट वितरण में राजस्थान के प्रभारी महामंत्री अरूणसिंह तथा राजस्थान के संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर की भूमिका भी ठीक नहीं रही बताई। इन दोनों ने ही वल्लभनगर में चित्तौड़ सांसद सीपी जोशी के कहने पर हिम्मतसिंह को टिकट की सिफारिश कर दी,जबकि एक दिन पहले तक जनता सेना की रणधीरसिंह भीण्डर की पत्नी का नाम तय हो चुका था। भीण्डर के खेमे में इसकी सूचना भी पहुंच गई थी। यहां तक की जनता सेना कोर कमेटी तथा समर्थक मतदाताओं ने इसकी अनौपचारिक स्वीकृति भी दे दी थी।इसी तरह धरियावद में स्व. गौत्तमलाल मीणा के सुपुत्र कन्हैयालाल मीणा की उम्मीदवारी लगभग तय थी उसे नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की वल्लभनगर टिकट वितरण से उत्पन्न नाराजगी को दूर करने के लिए धरियावद में खेमसिंह को उम्मीदवार बना दिया गया,जबकि धरियावद को लेकर कांग्रेस नेता भी टिकट वितरण से पूर्व अपनी पराजय स्वीकार कर चुके थे। कन्हैयालाल की मजबूत दावेदारी तथा प्रधान के नाते क्षेत्र में पकड़ को कैसे नजरअंदाज कर दिया गया यह चुनाव प्रबंधन में लगे नेताओं के लिए भी सातवां आश्चर्य था। भाजपा ने कन्हैयालाल को बगावत से तो राजी कर लिया,लेकिन वोटों को सिफ्ट नहीं कर सके। नाराजगी के चलते ही वीटीपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार थावरचंद की किस्मत ने जोर खाया और वे नाराज मतदाताओं के वोट ले दूसरे नम्बर पर पहुंच गए और भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। सही आंकलन नहीं करने का ठीकरा अरूणसिंह व चन्द्रशेखर पर फूट सकता हैं तथा दोनों की राजस्थान से छुट्टी की जा सकती हैं।
ये हो सकता है सर्वमान्य हल
नेता प्रतिपक्ष पद से गुलाबचंद कटारिया को हटाया जाना है ऐसे में पार्टी की एकजुटता दिखाने के लिए ये पद पार्टी वसुंधरा राजे को सौंप सकती हैं। उससे राजे समर्थक ये कहने की स्थिति में रहेंगे कि यह सीएम उम्मीदवारी का संंकेत हैं। पार्टी संगठन के प्रदेश मुखिया पद पर पूनिया के स्थान पर बंसल या किसी अन्य को जिम्मा सौंप भाजपा विधानसभा चुनावों में उतर सकती हैं। चुनाव परिणाम के बाद नेता का चुनाव भाजपा संसदीय वोर्ड करेगा ही। हालांकि वसुंधरा राजे का पूरा जोर चुनाव में जाने से पहले मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करवाने का रहेगा।