मेवाड़ में कटारिया बनाम विरोधियों के बीच political दंगल

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  • भाजपा में अंतर्कलह के बीज गहरे
  • राजसमंद में कम वोटों के अंतर से जीत बना है मुद्दा

 उदयपुर । राजस्थान में भाजपा ने विधानसभा उपचुनाव में राजसमंद सीट तो जैसे-तैसे जीत ली, मगर इसने अंतर्कलह के गहरे बीज बो दिए। इसका विशेष असर मेवाड़ में व्यापक स्तर पर दिखाई दे रहा है। मेवाड़ में दो खेमों में बंटी भाजपा में एक खेमा नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का है तो दूसरा खेमा कटारिया के उन विरोधियों का है, जो चाहकर भी अब तक उनके वर्चस्व को मेवाड़ में कम नहीं कर पाए थे।

विरोधियों ने राजसमंद को बनाया मुद्दा
कटारिया विरोधियों ने इस बार राजसमंद से भाजपा के मात्र 5 हजार मतों के अंतर से जीत को मुद्दा बनाया है। इनका आरोप है कि कटारिया बिना विचारे बोलने और शब्दों के चयन में कोताही की आदत की आड़ में राजसमंद सीट हरवाना चाहते थे। इसीलिए महाराणा प्रताप को लेकर अमर्यादित भाषा वाला भाषण दे दिया। यदि ऐसा नहीं होता तो भाजपा 30 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीतती।

विरोधी ठंडा नहीं होने देना चाहते प्रताप का मुद्दा
कटारिया विरोधी खेमा राजसमंद के बहाने वल्लभनगर उपचुनाव में उन्हें आउट करना चाहता है। वल्लभनगर सीट पर भी उपचुनाव होना है, हालांकि कोरोना के कारण चुनाव आयोग ने उपचुनावों को स्थगित कर दिया है। यह सीट कांग्रेस विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के कारण रिक्त हुई है। चूंकि यह सीट भी मेवाड़ में हैं और इस सीट पर राजपूत मतदाताओं का ही दबदबा रहा है। यहां तक लंबे समय से पक्ष-विपक्ष दोनों से राजपूत समाज के ही प्रत्याशी चुनकर विधानसभा में पहुंचते रहे हैं। महाराणा प्रताप वाले मुद्दे को लेकर कटारिया माफी मांग चुके हैं किन्तु विरोधी मुद्दे को ठंडा नहीं होने दे रहे। कटारिया की ओर से पुलिस में करवाई गई एफआईआर से भी साफ है कि यह मुद्दा अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।

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पुरानी है भीण्डर और कटारिया में अदावत
दूसरा माना जा रहा है कि वल्लभनगर सीट पर भाजपा के टिकट बंटवारे में भी कटारिया की ही चलनी है, इसलिए कटारिया विरोधियों ने पहले से ही घेरेबंदी शुरू कर दी है। वल्लभनगर सीट को लेकर विरोधियों के पास राजपूत फेक्टर के अलावा और भी ठोस कारण हैं, क्योंकि भाजपा यहां तीसरे नम्बर पर है। भाजपा छोड़ जनता सेना बनाने वाले रणधीरसिंह भीण्डर ने 2013 से ही भाजपा को दौड़ से बाहर कर रखा है। भीण्डर की कटारिया से अदावत है और उसी कारण वे भाजपा से बाहर हैं। भीण्डर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निकट माने जाते हैं। भीण्डर न केवल अपने दमखम पर जनता सेना के बैनर तले निर्दलीय विधानसभा पहुंच चुके हैं, बल्कि स्थानीय निकायों में भी उन्हीं का दबदबा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भीण्डर कांग्रेस के मुकाबले दूसरे नम्बर पर रहे थे और भाजपा तीसरे नम्बर।

अब लड़ाई वल्लभनगर सीट को लेकर
इस जमीनी हकीकत को कोई नकार भी नहीं सकता, लिहाजा वल्लभनगर में भीण्डर को ही भाजपा में लाकर उम्मीदवार बनाने की मांग एक बार फिर तेजी से उठ खड़ी हुई हैं। उधर कटारिया भीण्डर को किसी भी सूरत में भाजपा में आने नहीं देना चाहते। कटारिया हार-जीत की परवाह किए बिना वल्लभनगर से अपने किसी खास समर्थक को मैदान में उतारना चाहते हैं। यहां से कटारिया के एक निकट संबंधी भी टिकट मांग रहे हैं।

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कटारिया के लिए राजनीतिक संकट
भीण्डर की घर वापसी भाजपा संगठन को तो सकून देने वाली हो सकती है, लेकिन मेवाड़ में अपने वर्चस्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया के लिए राजनीतिक संकट पैदा कर सकती है। विरोधी वल्लभनगर के बहाने कटारिया को घेरने में सफल रहे तो 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के दिग्गज नेता माने जाने वाले कटारिया को अपनी खुद की उदयपुर सीट बचा पाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि 75 पार उम्र को देखते हुए विरोधियों ने उदयपुर शहर के मतदाताओं को अभी से टटोलना शुरू कर दिया है।

उन्हें सबसे बड़ी चुनौती डूंगरपुर को स्वच्छ रख देशभर में नाम कमाने वाले पूर्व सभापति के.के.गुप्ता से मिल सकती है। गुप्ता पिछले काफी समय से उदयपुर में ही सक्रिय हैं और गुपचुप में विधायकी की तैयारी में जुटे हैं। गुप्ता कटारिया खेमे को मात देने में सब तरह से सक्षम माने जाते हैं। उनकी वागड़ यानी डूंगरपुर,बांसवाड़ा व प्रतापगढ़ में भी पकड़ हैं।

कटारिया के बाद मेवाड़ में कौन
वर्तमान में किरण माहेश्वरी के निधन के बाद कटारिया सम्पूर्ण मेवाड़ व वागड़ के अकेले क्षत्रप हैं। भाजपा के सामने भविष्य के लिए मजबूत नेता की तलाश है जो कटारिया का स्थान ले सके। फिलहाल तो संघ पृष्ठ भूमि का ऐसा नेता नजर नहीं आ रहा जो कटारिया के स्थान पर स्थापित हो सके। कटारिया के लिए केवल यहीं सकून वाली बात है।

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