जिसे भारत से प्यार नहीं उसे देश में रहने का अधिकार नहीं: साध्वी ऋतंभरा

जिसे भारत से प्यार नहीं उसे देश में रहने का अधिकार नहीं: साध्वी ऋतंभरा

जयपुर। परम शक्तिपीठ के तत्वावधान में वृंदावन की श्री सर्व मंगला पीठम् की स्थापना के निमित्त विद्याधरनगर सेक्टर सात के अग्रसेन पार्क के सामने दो नवंबर को शुरू हुई दीदी मां साध्वी ऋतंभरा की श्रीमद्भागवत कथा मंगलवार को सुदामा चरित्र, नवयोगेश्वर संवाद, कलियुग वर्णन और परीक्षित मोक्ष के प्रसंग के साथ संपन्न हुई। अंतिम दिन की कथा राष्ट्रवाद के नाम रही।

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साध्वी ऋतंभरा ने श्रद्धालुओं को देश के प्रति कर्तव्यबोध करवाते हुए दक्षिणा के रूप में देश से प्रेम करने और इसे अखंड बनाए रखने का संकल्प करवाया। प्रारंभ में कथा के मुख्य यजमान शिव कुमार गोयल ने व्यासपीठ का पूजन कर आरती उतारी। कार्यक्रम संयोजक सौरभ गोयल ने आभार प्रकट किया।

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साध्वी ऋतंभरा ने राष्ट्रवाद का शंखनाद करते हुए कहा कि देश से अगर प्यार है तो इसे भारत ही रहने दो। अपनी संस्कृति को बचाओ। बच्चों को विदेशों में पढ़ाकर मैकाले की संतान मत बनाओ। वहां पढ़कर ज्यादातद बच्चे धर्म और संस्कृति का विरोध करते हैं। विदेशी षड्यंत्र के तहत वैब सीरीज के माध्यम से देश की संस्कृति को खत्म किया जा रहा है। उन्होंने कहा जिसको भारत की धरती से प्यार नहीं उसे भारत में रहने का अधिकार नहीं है। जिसे देश से प्यार है, वह संकल्प करें कि वह निजी स्वार्थ, जाति और प्रांतवाद से ऊपर उठकर भारत का सौभाग्य बनाए रखेंगे।

साध्वी ऋतंभराने कहा कि देश 800 साल तक किसी का गुलाम नहीं रहा, वह हमारा संघर्ष का कालखंड था। अयोध्या के बन राम मंदिर को प्रसंग में शामिल करते हुए कहा कि राम मंदिर कर्तव्य की इतिश्री नहीं मात्र प्रारंभ है। इस दौरान मैं रहू या ना रहू भारत यह रहना चाहिए…गीत केे माध्यम से उन्होंने देशभक्ति की हिलोर पैदा कर दी। साध्वी ऋतम्भरा ने गुरु नानक जयंती पर शबद कीर्तन भी किया।

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चंद्रग्रहण होने के कारण लोगों ने कथा पांडाल में भजन गाए और संकीर्तन किया। इस मौके पर अलवर सांसद स्वामी सुमेधानंद, रीको के निदेशक सीताराम अग्रवाल सहित अनेक विशिष्ट लोग उपस्थित रहे। करने वाला कराने वाला भगवान: साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि जो भी कार्य करो हमेशा यह भाव रखो कि करने वाला और कराने वाला भगवान है। वह तो मात्र उपकरण है। क्योंकि कार्य के दौरान होने वाली टीका टिप्पणी से किसी को रोका नहीं जा सकता। भगवान कृष्ण तक पर मणि की चोरी का आरोप लगा है । इसलिए पाप और पुण्य भगवान को अर्पित करते रहिए। पुण्य पेट है तो पाप पीठ। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। पुण्य करते-करते कब पाप हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस कार्य को करके छुपाना पड़े वही पाप है, लेकिन वास्तव में भगवान से कुछ छुपा नहीं रहता। हमारा चित्त ही चित्रगुप्त है जो हमारे पाप और पुण्य का लेखा जोखा लिखता रहता है। साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि संबंधों के बीच संदेह है मत आने दीजिए अन्यथा संबंधों में बिखराव आ जाता। रिश्तों में अहम और वहम दोनों ही खतरनाक है।

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