पं. सलिल भट्ट ने कोरोना के ज़ख्मों पर लगाई ‘सात्विक स्वरों’ की मरहम

पं. सलिल भट्ट ने कोरोना के ज़ख्मों पर लगाई ‘सात्विक स्वरों’ की मरहम

जयपुर। जगतपुरा स्थित सुरेश ज्ञान विहार यूनिवर्सिटी का सभागार बुधवार को वहां हुई सात्विक स्वरों की वर्षा से ठीक उसी तरह खिल उठा जैसे गर्मी की तपिश के बाद झुलसा परिवेश बारिश की फुहारों से खिल उठता है। मंच पर मौजूद थे देश के जाने-माने सात्विक वीणा वादक तंत्री सम्राट पं. सलिल भट्ट और सभागार में मौजूद थे उनके पिता व गुरू पद्भूषण पं. विश्व मोहन भट्ट व सुरेश ज्ञान विहार यूनिवर्स के चेयरमैन सुनील शर्मा और संगीत रसिकों का समूह।

कार्यक्रम से पहले सभी के चेहरों पर कोरोना से मिले दंश की पीड़ा सहज ही देखी और महसूस की जा सकती थी लेकिन मंच से जैसे ही सलिल भट्ट ने सात्विक वीणा पर राग धर्मावती के स्वरों का ताना-बाना बुनना शुरू किया हौले हौले सभी के चेहरों पर खेलती मुस्कान इस बात का आभास दे रही थी मानों घावों से पीड़ित किसी की काया मरहम की ठंडक पाकर सुकून से सराबोर हो गई हो। मौका था सुरेश ग्यान विहार यूनिवर्सिटी के सौजन्य से कार्यक्रम ‘सात्विक स्वर संवाद’ के आयोजन का। शरद पूर्णिमा के दिन आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है श्रोताओं और विद्यार्थियों को पिछले 20 महीनों में वैश्विक महामारी के बाद अवसाद से निकालना था।

ऐसा था सलिल भट्ट के सात्विक वीणा वादन का स्वरूप

पंडित सलिल भट्ट ने अपने गुरु के द्वारा रचित राग विश्व रन्जिनी का मधुर वादन किया. इस राग का नामकरण सलिल ने ही किा है। इस राग में सात्विक वीणा के स्वर कर्नाटक पद्धति के अनुसार राग धर्मावती के मेल कर्ता राग पर आधारित हैं. सलिल भट्ट का लक्ष्य स्वर सेतु बना कर उत्तर दक्षिण संगीत को जोड़ना है. इस विशेष राग के स्वर मन मस्तिष्क को ऊर्जा वान बनाते हैं और साथ ही तनाव, अवसाद को मिटा सकते हैं. इस राग में आलाप, जोड़ आलाप, विलंबित और द्रुत गत तीन ताल मे थीं. इसके बाद राग भूपाली के उत्साही और उत्सवी स्वरों से दादरा ताल मे एक अनूठी धुन भी प्रस्तुत की. सलिल के साथ तबले परपं. महेन्द्र शंकर डांगी ने संगत की।

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