श्रीगंगानगर। गुरु का स्थान शास्त्रों, पुराणों और वेदों में भगवान से बढ़कर बताया गया है। भक्त शिरोमणि प्रहलाद स्वयं कहते हैं कि जिसने भगवान के बारे में बताया, मैं भगवान से पहले उन गुरु को प्रणाम करूंगा। जीवन में गुरू के महत्व पर प्रकाश डालते हुए यह बात ब्रह्मचारी कल्याण स्वरूपजी महाराज ने अपने उदबोधन में कही हैं। ब्रह्चारी कल्याण स्वरुपजी बुधवार की प्रातः तीनपुलि मोहनपुरा मार्ग पर स्थित धर्मसंघ संस्कृत महाविद्यालय में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित व्यास पूजन व गुरु पादुका पूजन के अवसर पर आगन्तुकों के समक्ष गुरु पूर्णिमा के महत्व पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज का जन सामान्य गुरु पूर्णिमा को केवल गुरु पादुका पूजन, गुरुपूजन, माल्यार्पण तक सीमित मानता है। परंतु इसके मूल तथ्यों पर चलें तो सभी देवताओं उनके माहात्म्य, कथाएं, परिचय इत्यादि को बताने वाले पुराणों के माध्यम से सामान्य जन तक पहुंचाने वाले वेदों की विभाग कर्ता प्रथम सर्वगुरु महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जी हैं जिनकी जयंती को गुरु पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।
पुराणों को लिखित रूप में उपलब्ध कराने वाले सबसे बड़े इतिहासकार वेदों को विभाजित करके ऋक्, यजूः साम, अथर्व के रूप में प्रस्तुत करने वाले महान वैदिक महर्षि वेदव्यास का पूजन मुख्य रूप से किया जाता जाना चाहिए, तदुपरांत अपने तत्विक गुरु जिनसे हम गुरु मंत्र अथवा समय-समय पर जीवन को सही ढंग से जीने का मंत्रा लेते हैं मुश्किलों में उनसे अपने हृदय की बात कहते हैं। ऐसे सद्गुरु का पूजन पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से करना चाहिए क्योंकि यही गुरु जीवन को सद् मार्ग पर चलाते हुए परमात्मा की प्राप्ति कराते हैं इसके उपरांत प्राकृतिक गुरु माता -पिता एवं विद्या देने वाले गुरुओं का भी पूजन अर्चन सम्मान करना गुरु पूर्णिमा को सार्थक बनाता है। इस मौके पर सभी आगन्तुकों ने गुरु पादुका पर शीश नवाया व अंत में प्रसादी ग्रहण की।