राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा, BJP ज्वॉइन करने की अपील से आयी विवादों में

राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा, BJP ज्वॉइन करने की अपील से आयी विवादों में

जयपुर: 1 जुलाई को राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के 80वें जन्मदिन पर उनकी आत्मकथा (कलराज मिश्र निम्मित मात्र हूं मैं) का विमोचन किया गया। विमोचन के बाद सूबे के सभी 27 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपति (वीसी) की उनसे भेंट हुई, जिसके बाद वे अपने वाहनों की ओर बढ़े। वहां उनके सामने जो हुआ, उसने कुलपतियों को कुछ क्षणों के लिए आश्चर्य में डाल दिया। हर गाड़ी के बाहर वीसी के लिए किताबों के दो कार्टन थे और ड्राइवर के पास एक बिल था, जो कि अड़सठ हजार तीन सौ तिरासी (68,383) रुपए का था। यह रकम राज्यपाल की बायोग्राफी की 19 कॉपियों (हार्डकवर कॉफी टेबल फॉर्मैट) की कीमत के तौर पर थी, जबकि आत्मकथा की एक अतिरिक्त कॉपी मुफ्त दी गई थी। हालांकि इस घटना को लेकर राजभवन की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है।

राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ज्वॉइन करने की अपील की गई है। जिस पेज पर भगवा पार्टी से जुड़ने की बात है, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ कमल का फोटो भी है। यही नहीं, विमोचन कार्यक्रम में शिरकत करने वाले मेहमानों में 27 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को दो कार्टन किताबों के नाम पर 68,383 रुपए (हर एक को) का बिल थमा दिया गया था। इस हिसाब से वहां कुल 54 कार्टन थे, जबकि 27 बिलों का कुल योग 18,46,341₹ हो गया।

कार्यक्रम के दौरान यह सब कैसे हुआ, इस बारे में नाम न बताने की शर्त पर एक वीसी ने बताया, “राज्यपाल के साथ हुई बैठक में किसी ने हमारे ड्राइवर्स के नाम और नंबर ले लिए थे। हमें लगा कि उन्हें खाना-पानी देने के लिए ऐसा किया गया होगा।”

एक अन्य वीसी ने कहा कि घर-दफ्तर पहुंचते ही पता लगा कि जो बिल थमाया गया था, उसमें पांच टाइटल्स का जिक्र था, पर कार्टन में सिर्फ कलराज की आत्मकथा की कॉपियां थीं। बिल के अनुसार, बायोग्राफी की एक कॉपी की कीमत 3,999 रुपए है और इस हिसाब से 19 कॉपियों का कुल योग 75,981 हो जाता है। 10 फीसदी छूट के बाद यह दाम कम होकर 68,383 पर आता है।

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आत्मकथा के सह-लेखक कलराज के लंबे समय तक ओएसडी रहे गोविंद राम जयसवाल हैं। बायोग्राफी कहती है कि किताब की बिक्री से आने वाली रकम को राजस्थान और समाज विज्ञान पर होने वाले शोध प्रोजेक्ट्स पर खर्चा जाएगा और इसे किसी भी निजी लाभ के लिए नहीं इस्तेमाल किया जाएगा।

किस मद में खर्चा करेंगे वहन 

वीसी ने पूछा, “खरीद के नियम Rajasthan Transparency in Public Procurement (RTPP) Act, 2012 के तहत स्पष्ट हैं। आखिरकार विवि को एकतरफा तरीके से ऐसी किताबों से कैसे लादा जा सकता है? ये 27 सरकारी विवि तकनीक, स्वास्थ्य, कृषि, वेटनरी, कानून आदि सरीखे क्षेत्रों में अपनी पहचान रखती हैं। फिर हर विवि को इतनी सारी किताबों का बिल क्यों देना पड़ता है और हम किस मद में खर्चा वहन करेंगे?”

आगे जब राज्यपाल के सचिव से बायोग्राफी के कंटेंट (बीजेपी को समर्थन देने से जुड़े) पर सवाल हुआ, तो उन्होंने बताया, “जिन्होंने किताब लिखी है, यह वो जानें। मैंने न इसे लिखा है और न ही पढ़ा है।” हालांकि, एक अन्य वीसी का कहना था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उनके मुताबिक, “मैंने किताब तो नहीं देखी, पर अगर किताब राज्यपाल के बारे में है, तब यह विश्वविद्यालयों में जानी चाहिए। हां, उनकी दर/कीमत एक अलग मुद्दा हो सकता है। मिश्र तो राज्यपाल अभी हैं, पर यह किताब उनके पूरे जीवन पर है।”

कुलपतियों को दिए गए बिल पर International Institute of Management and Entrepreneurship (IIME), Jaipur के बैंक अकाउंट डिटेल्स दिए गए हैं, जिसका मतलब है कि इसका भुगतान आत्मकथा की कॉपियों के लिए किया जाएगा। किताब के अन्य सह-लेखक के साथ राज्यपाल के ओएसडी डॉ डीके टकनेत हैं, जो आईआईएमई से लंबे वक्त से जुड़े हैं। वहीं, किताब की “लीड रिसर्चर” टकनेत की पत्नी सुजाता हैं और वह भी आईआईएमई से जुड़ी हैं।

आईआईएमई खुद को स्वायत्त निकाय और गैर-लाभकारी संगठन बताता है। साथ ही राष्ट्रीय स्तर का शोध संस्थान भी मानता है, जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का एक वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन है। एक वीसी पूछते हैं कि केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कैसे एक शोध संगठन राज्यपाल पर कॉफी टेबल बुक को साइंस रिसर्च के तौर पर प्रकाशित कर सकता है?

संयोग से बिल में वीसी को सौंपी गई किताबों में से दो ये हैं- जेम ऑफ इंडिया और दि मारवाड़ी हेरिटेज। इन्हें जनवरी 2020 में आईआईएमई द्वारा सराकारी विवि को भेजा गया था। दोनों किताबों की 25 कॉपियां भेजी गई थीं, जिनके लिए 4,950 रुपए और 3200 रुपए प्रति कॉपी मांगे गए थे। यह कुल रकम तब दो लाख तीन हजार सात सौ पचास (2,03,750) थी।

राजभवन की तरफ से जारी बयान

मामले को लेकर राजभवन की तरफ से बयान जारी कर कहा गया है कि प्रकाशक ने राजभवन में लोकार्पण की अनुमति मांगी थी। पुस्तक के विपणन से राजभवन की कोई भूमिका नहीं है।

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