विमलेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, जयपुर @
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत खुश मिज़ाज़ और हरदिल इंसान थे। “होज्यासी, कर देस्यां” उनका तकिया कलाम था। विराट व्यक्तित्व के धनी और देश के जाने-माने नेताओं में से एक शेखावत संविधान,संसदीय नियम, प्रक्रिया और परम्परा के ज्ञाता तथा यारों के भी यार थे।
अटलजी, आडवाणीजी, नरसिम्हा राव, चंद्रशेखर, शरद पवार, जयललिता, प्रियरंजन दास मुन्शी, राजस्थान में देखें तो पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया, हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर के अलावा नाथूराम व रामनिवास मिर्धा, भुवनेश चतुर्वेदी, पूनमचंद विश्नोई, ज्वाला प्रसाद, रामानंद अग्रवाल, मथुरादास माथुर, मोहन लाल छंगाणी, पंडित रामकिशन जैसे अनेक नेताओं से न केवल मधुर संबंध थे, बल्कि उनकी इन सबसे खूब छनती थी। विपक्ष के नेताओं के साथ प्रगाढ़ संबंधों के एक नहीं अनेक किस्से हैं। सुखाड़िया और हरिदेव जोशी पर तो आरोप तक लगते रहे हैं कि वे शेखावत के साथ मिलकर प्रपंच रचते थे।
सा मंत्री पद जा तो चल्यो जा पर आ दोस्ती कौनी टूटे
इन्हीं नेता मित्रों की लिस्ट में खेतसिंह राठौड़ व गुलाब सिंह शक्तावत भी थे। इनसे भी खूब अंतरंग गुफ्तगू होती थी। बात उन दिनों की है जब राठौड़ व शक्तावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रथम कार्यकाल में मंत्री थे और शेखावत प्रतिपक्ष में। सिविल लाइन का बंगला नंबर 14 शेखावत का आवास हुआ करता था। गहलोत सरकार के ये दोनों मंत्री शाम के समय उनके बंगले पहुंच जाते और शुरु हो जाता गपशप का दौर। घंटों हंसी-ठहाकों के साथ नई पुरानी बातें व किस्से चलते रहते।
मंत्रियों के आए दिन प्रतिपक्ष के नेता के घर जाने की शिकायत हुई तो दोनों मंत्रियों ने साफ कह दिया कि शेखावत साब से दोस्ताना मेल मुलाकात बंद नहीं होगी चाहे मंत्री पद चला जाए। खेतसिंह राठौड़ दलीय सीमाओं के कारण उपराष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह में तो शामिल नहीं हो पाए पर शपथ से पहले राजस्थान हाउस पहुंच बधाई देने से नहीं चूके। खेतसिंह अपने मित्र को बधाई देने के लिए ही विशेष रूप से दिल्ली गए थे।
भींडर-कटारिया को लगाई फटकार
शेखावत जब देश के उपराष्ट्रपति बन गए तब भी उनका अंदाज पुराने मित्रों से मिलने-जुलने का बदला नहीं। बात उपराष्ट्रपति के रूप में उदयपुर यात्रा की है। शेखावत 2003 विधानसभा चुनाव के बाद उदयपुर आए तो गुलाब सिंह शक्तावत मिलने नहीं आए। शेखावत ने पहले तो अपने विश्वसनीय कार्यकर्ता से कारण जाना और फिर शक्तावत को हराकर विधानसभा में पहुंचे रणधीर सिंह भींडर को बुलाकर जबरदस्त डांट लगाई। बोले- शक्तावत के खिलाफ जो मुकदमे दर्ज करवाएं हैं वो वापस लो। चुनाव हो गए, तुम जीत गए कोई जीवनभर दुश्मनी थोड़े होती है।
शक्तावत से जुड़े एक मामले में वर्तमान प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया को भी डांटा। शक्तावत के एक घरेलू सर्वेंट बदन सिंह रावत हत्या प्रकरण में कटारिया के नेतृत्व में भाजपा ने मेवाड़ में जबरदस्त आंदोलन छेड़ रखा था। शेखावत कटारिया जी की सुपुत्री के विवाह समारोह में आए तो सबके सामने कटारिया को कहा ये आंदोलन वगैरह बंद करो। इसके पीछे उनकी सोच थी कि राजनीति अपनी जगह पर व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं होनी चाहिए।
खांडल और शेखावत
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के बड़े राजनेताओं के अलावा गांव- गुवाड़ के कई अंतरंग मित्र भी थे। उन्हीं में एक नाम राधेश्याम खांडल का है। खांडल की मुख्यमंत्री निवास हो या दूसरा आवास सब जगह बिना रोक टोक सीधे एंट्री थी।
शेखावत और खांडल दोस्ताना अंदाज में एक दूसरे को खूब छेड़ते और मज़ाक करते रहते थे। खांडल पारिवारिक सदस्य की तरह थे।
किस्सा नम्बर एक
शेखवात एक बार कोलकाता आदि शहरों से चुनावी चंदा लेकर आए थे। कोई 25 से 30 हजार रुपए के बीच एक पोटली में बंधे हुए थे। खांडल पोटली को ले बिना बताए अपने गांव चले गए। शेखावत को पोटली जब इधर-उधर नहीं मिली तो खांडल को फ़ोन लगाया दूसरी तरफ से जबाव आया- हां मैं ले आया। बेटी की शादी करनी है तुम (शेखावत) तो इतने रुपए कहीं ओर से ले आना।
किस्सा नम्बर दो
खांडल साफ दिल इंसान थे। खांडल झुंझुनूं जिले में अपने गांव चूड़ी अजीतगढ़ के सरपंच भी रहे थे। सरपंची के समय के कुछ बकाया भुगतान वाले बिल लेकर जयपुर आए और शेखावत से कहा कि मंत्री शीशराम ओला से कहकर बिल पास करवा दो ताकि बच्ची की शादी कर सकूं। शेखावत ने ओला को फ़ोन कर खांडल के आने की वास्तविकता बताई। ओला ने भी बिल के स्थान पर स्वयं मदद का हाथ बढ़ाते हुए झुंझुनूं में एक मित्र को फोन किया। उस मित्र ने ओला का नाम लिए बिना खांडल जो चाहते थे वो व्यवस्था करवा दी।
ओला को पता था कि मदद में उनका नाम आएगा तो स्वाभिमानी खांडल लेंगे नहीं। झुंझुनूं की स्थानीय राजनीति में खांडल और ओला एक -दूसरे के घोर विरोधी थे। राधेश्याम खांडल जनसंघ के जमाने के कार्यकर्ता थे, उनकी लालकृष्ण आडवाणी आदि नेताओं से भी आत्मियता थी। खांडल पहले शिक्षक थे और खिरोड़ में पोस्टेड थे। वहीं से त्यागपत्र देकर उन्होंने पहले 1967 में नवलगढ़ व 1972 में मंडावा से विधानसभा चुनाव भी लड़ा था।
भैरोंसिंह के पास 500 उम्मीदवार
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के दरवाजे पत्रकारों के लिए भी हमेशा खुले रहते थे। घंटों गपशप चलती थी। वे पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे उस समय प्रतिपक्ष के कई नेता मौजूद थे। उनमें माकपा के श्योपत सिंह व अमराराम भी थे। एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया कि आपकी पार्टी भाजपा को तो पूरी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिलते। थोड़ी देर तो चुप्पी साधे रहे, फिर बोले भैरोंसिंह 500 उम्मीदवार खड़े करने की ताकत रखता हैं। उनका इशारा वहां मौजूद प्रतिपक्ष के सदस्यों की तरफ था। इसी कारण उन पर ये भी आरोप लगते रहे कि कांग्रेस में अपने मित्रों को जोड़-तोड़ कर जितवाते हैं। वामपंथी नेता भी उनके लिए कहते थे कि विचारधारा से इतर व्यक्तिगत रिश्ते भी तो होते हैं। इन दलों के लोग भी उन्हें अपना नेता मानते थे।
कुछ ऐसी ही स्थिति आमजन की थी। एक बार शेखावत से मिलने पर ही इतनी आत्मीयता हो जाती थी कि वे कभी उसे भूलते नहीं थे। सभी को नाम से संबोधित करते थे। सर्व विप्र मार्तण्ड पत्रिका के संस्थापक संरक्षक ढिगाल निवासी एवं दिल्ली प्रवासी पीडी शर्मा ने भी पूर्व उपराष्ट्रपति से हुई मुलाकातों के कई रोचक संस्मरण सुनाए।
एक ही सिंह
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत से जुड़े इतने किस्से और संस्मरण हैं कि एक बड़ा ग्रंथ तैयार हो सकता है। बाबोसा के नाम से प्रसिद्ध शेखावत के लिए लगने वाले इस नारे “राजस्थान का एक ही सिंह, भैरोंसिंह-भैरोंसिंह” से ही अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि उनका कद कितना बड़ा था। स्व. शेखावत की 11वीं पुण्य तिथि पर शत-शत नमन।