आरएलपी सांसद बेनीवाल ने दलित हितों का संरक्षण करने की मांग उठाई लोक सभा में

आरएलपी सांसद बेनीवाल ने दलित हितों का संरक्षण करने की मांग उठाई लोक सभा में

नई दिल्ली : लोक सभा में संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022 की चर्चा में भाग लेते हुए विधेयक का समर्थक करते हुए राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक तथा नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने दलित हितों के संरक्षण को लेकर कई मुद्दे उठाए। सांसद ने देश में हुए विभिन्न आरक्षण आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन, हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन, गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन, राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन, कर्नाटक में लिंगायत आरक्षण आंदोलन, आंध्र में कापू आरक्षण आंदोलन हुए और जब प्रधानमंत्री सबका साथ सबका विकास की बात करते है तो प्रधानमंत्री को इन समुदायों के आरक्षण की मांग को लेकर भी सकारात्मक रुख केंद्र को अपनाना चाहिए। वहीं सांसद ने हरियाणा, यूपी, राजस्थान के धौलपुर, भरतपुर सहित 9 राज्यों के जाटों को भी केंद्र की नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।

सांसद ने कहा समाज के कमजोर वर्गो में सबसे प्रतिकूल स्थिति अनुसूचित जातियों व जन जातियों की है तथा संविधान में इन जातियों के बहुमुखी विकास को सुनिश्चित करने व इनकी सभी प्रकार के शोषण से रक्षा करने के लिए प्रावधान बनाए हुए है। उसके बावजूद इन वर्गो की जो स्थिति है उस पर सदन को चिंतन मनन करने की जरुरत है। सांसद बेनीवाल ने कहा कि एक तरफ जहां देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। वहीं दूसरी तरफ आज भी देश का दलित वर्ग समानता के लिए संघर्ष कर रहा है और तमाम कानूनों के बावजूद दलितों पर बढ़ते अत्याचारों के कोई कमी नही आ रही है।

एक रिपोर्ट के हवाले से सदन में कहा कि देश के 23 आईआईटी में दिसंबर 2021 में दिए आंकड़ों के मुताबिक देशभर के आई आई टी में अनुसूचित जनजाति के मात्र 32, अनुसूचित जाति के मात्र 183 और अन्य पिछड़ा वर्ग से मात्र 462 फैकल्टी सदस्य थे। वही विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में 31 दिसंबर, 2020 तक अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 34,000 से अधिक पद खाली पड़े रहे थे और जब इतने पद खाली है तो आरक्षण का लाभ ले कौन रहा है ?

वहीं सांसद ने कहा की राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) द्वारा तैयार किए गए ‘ग्रामीण भारत में कृषक परिवारों की स्थिति और परिवारों की भूमि एवं पशुधन धृतियों का मूल्यांकन, 2019’ सर्वे करवाया था जिसमे यह आंकड़े आए कि देश के 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 44.4 फीसदी परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 21.6 फीसदी अनुसूचित जाति (एससी), 12.3 फीसदी अनुसूचित जनजाति (एसटी) के हैं। इसी सर्वे ने यह भी दर्शाया है कि एक कृषि परिवार हर महीने औसतन महज 10,218 रुपये कमा पाता है. इसमें से ओबीसी कृषि परिवार और कम 9,977 रुपये, एससी कृषि परिवार 8,142 रुपये और एसटी कृषि परिवार 8,979 रुपये प्रति महीने ही कमा पाते हैं,इसी परिप्रेक्ष्य में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि यह सुनिश्चित किया जाये कि सामाजिक न्याय में कौनसे समुदाय अभी तक पिछड़े है, जहां आरक्षण का लाभ पहुंचाया जा सके लेकिन विडम्बना है कि सरकार ने जाति जनगणना कराने से इनकार कर दिया है,केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना ‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर’ है,बेनीवाल ने मांग करते हुए कहा की विकास की दौड़ में पिछड़ रहे समुदायों की जल्द से जल्द गिनती हो ताकि सामाजिक न्याय उन वर्गों तक पहुँच पाये। सांसद ने बाबा साहब आंबेडकर का जिक्र करते हुए कहा की जो अधिकार उन्होंने पिछड़ों और दलितों के लिए संविधान में दिए उसके बावजूद आज दलित भेदभाव व उत्पीड़न का शिकार हो रहे है।

राजस्थान की इन घटनाओं का किया जिक्र
सांसद बेनीवाल ने धौलपुर जिले में दलित महिला के साथ उसके पति और बच्चे के सामने हुए सामूहिक दुष्कर्म, अलवर जिले के थानागाजी में हुए सामूहिक दुष्कर्म तथा अलवर जिले में ही मुख बधिर बालिका के साथ हुए घिनोने कृत्य व पाली जिलें में दलित संविदा कार्मिक की हुई निर्मम हत्या, दलित दूल्हों को घोड़ी से उतारने के प्रकरणों का हवाला देते हुए राजस्थान में बढ़ते दलित उत्पीड़न के मामलों की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित किया।

यह मांग की प्रश्न काल में
सांसद हनुमान बेनीवाल ने प्रश्नकाल में राजस्थान में संचालित ग्राम न्यायालयों में न्यायिक अधिकारी के पद पर अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति महिला तथा अन्य वर्गो को न्यायधिकारी के पद पर समुचित प्रतिनिधित्व देने के विषय के लेकर सरकार से जानकारी चाही। जिसका जवाब देते हुए केंद्रीय विधि एवम न्याय राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ने सांसद बेनीवाल के सवाल का जवाब देते हुए कहा राजस्थान में 45 अधिसूचित ग्राम न्यायालयों में सभी न्यायालय कार्यरत है वही मंत्री ने केंद्र व राज्य की कमेटी में होने वाले सदस्यो का हवाला देते हुए कहा की केंद्र समय समय पर वहां न्यायालयों में आरक्षित वर्ग को मिलने वाले प्रतिनिधित्व की समीक्षा भी करता है। मंत्री ने सांसद के सवाल को विस्तारवादी बताते हुए वंचित वर्गो के आरक्षण की पैरोकारी पर सांसद की ज्यादा रुचि होने का जिक्र भी सदन में जवाब देते हुए किया।

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