राजनीति और कब्बडी के महारथी जनार्दन गहलोत नहीं रहे

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  • संजय ग़ांधी के जमाने में जिनकी तूंती बोलती थी
  • भैरोंसिंह शेखावत सरीखे नेता को हराने वाले
  • मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी व्यक्त की शोक संवेदना

जयपुर। राजस्थान की राजनीति के महारथी तथा संजय गांधी के जमाने के एकमात्र ऐसे नेता जिनकी तूती बोला करती थी वे जनार्दन गहलोत नहीं रहे। राजनीति के साथ कब्बडी को दुनियां तक पहुंचाने वाले अपने समय के युवातुर्क ने पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत सरीखे दिग्गज नेता को जयपुर की गांधीनगर सीट से हराया था। वे गहलोत सरकार में मंत्री भी रहे। कुछ दिनों तक वे भाजपा में भी गए पर मोहभंग होने पर वापस कांग्रेस में लौट आए। उन्होंने हाल में अपनी जीवनी पर संघर्ष से शिखर तक पुस्तक भी प्रकाशित करवाई थी।

वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेन्द्र बोड़ा ने पुस्तक की समीक्षा में जो कुछ लिखा उसे अविकल पढ़े।

दो गहलोतों का अंतर : होनी का खेल

साहिर लुधियानवी ने लिखा है “कदम कदम पर होनी बैठी अपना जाल बिछाए/ इस जीवन की राह में जाने कौन कहां रह जाये”। इसे होनी नहीं तो और क्या कहेंगे कि मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार राजस्थान की सरकार चला रहे अशोक गहलोत जिनके इशारे के बिना कांग्रेस हिल नहीं सकती को राजनीति में पहली बार कोई पद दिलाने वाला नेता गुमनामी के गर्त में खो जाता है। यह नेता है जनार्दन सिंह गहलोत जिसकी 1970 के दशक में कांग्रेस के संजय गांधी युग में तूती बोलती थी। मगर होनी को कुछ और मंजूर रहा। दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत को चुनाव में पराजय का कड़वा स्वाद चखा कर विधान सभा में पहुंचने का करिश्मा दिखाने वाला यह नेता राजनीति में कोई बड़ी कामयाबी नहीं हासिल कर सका। अलबत्ता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों की राजनीति में रम कर उसने अपनी हैसियत जरूर बनाए रखी।

संस्मरणों के रूप में जनार्दन सिंह गहलोत ने अपना जीवन वृतांत ‘संघर्ष से शिखर तक’ पुस्तक में बहुत ही सीधी और सरल भाषा में प्रस्तुत किया है जो अत्यंत दिलचस्प बन पड़ा है। करीब पौने दो सौ पेजों के इस वृतांत में कांग्रेस के बीत गये स्वर्णिम युग का खट्टा-मीठा वर्णन पढ़ने लायक है। इससे यह भी समझ में आता है कि राजनीति एक ऐसा खेल है जिसमें कौन सा मोहरा कहां पहुंच जाय और कौन सा छिटक कर बाहर हो जाय इसका हिसाब कोई नहीं लगा सकता। वरना दो गहलोतों की तकदीर इतनी अलग नहीं हो गई होती।

अपने ऊरूज़ की कहानी सुनाते हुए जनार्दन कहते हैं “दिल्ली में सक्रियता की वजह से मैंने युवक कांग्रेस तथा एनएसयूआई की राजस्थान इकाइयों में और भी नियुक्तियां कारवाई। इनमें ज़्यादातर जयपुर के युवा नेता थे। इस बात का उलाहना जोधपुर के मेरे घनिष्ठ मित्र जगदीश परिहार अक्सर दिया करते थे। वो कहते, तुम उक्त संगठनों में जो भी पदाधिकारी बनवा रहे हो सभी जयपुर के हैं। कभी जोधपुर से भी किसी को मौका दो। अशोक गहलोत परिहार के रिश्तेदार थे। उन्होंने सुझाया कि अशोक घर का ही बच्चा है, उसे एनएसयूआई का अध्यक्ष बनवाओ। अशोक गहलोत उस समय जोधपुर विश्व विद्यालय की छात्र राजनीति में सक्रिय थे। उन्होंने एनएसयूआई के टिकट पर छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गये थे। इसके बावजूद उन्होंने छात्रों के बीच सक्रियता बनाए रखी। मैंने अपने दोस्त के कहने पर एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष व्यालार रवि से कह कर अशोक गहलोत को राजस्थान अध्यक्ष बनवा दिया।”
यह वह समय था जब जनार्दन युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव थे। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। एक तरफ जहां होनी अशोक गहलोत का साथ देती चली गई और वे सफलता के पायदान चढ़ते ही चले गये जबकि जनार्दन के लिए राजनीति मरुस्थल साबित हुई और उन्हें थपेड़े देती रही।

एक और घटना जिसने “अशोक गहलोत के भाग्य के दरवाजे खोल दिये” उसका भी वर्णन जनार्दन ने अपनी पुस्तक में किया है। वह 1980 के लोकसभा चुनाव का समय था। जोधपुर की सीट के लिए परसराम मदेरणा का नाम तय हो गया था मगर उन्होंने मना कर दिया। दूसरे नेता खेतसिंह राठौड़ भी कन्नी काट गये। जनार्दन कहते हैं “इन्दिरा जी थोड़ी नाराज़ सी हो गई। उन्होंने दोनों से कहा, ऐसे नाज़ुक समय में आप जैसे वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं, ये ठीक नहीं है। इस पर मदेरणा जी बोले कि जोधपुर सीट निकालने की ज़िम्मेदारी हम लेते हैं। वहां के जाट वोट मैं दिलवाऊंगा और खेतसिंह जी राजपूतों के वोट की ज़िम्मेदारी लेते हैं। वहां एक युवा नेता है अशोक गहलोत, वह माली समाज से है और इस समाज के 65 हजार वोट हैं। आप उसे टिकट दिलवा दें, हम सब मिल कर जोधपुर सीट निकलवा देंगे। अंततः यही हुआ, गहलोत को प्रत्याशी बनाया गया। सबकी मेहनत से वो जीत भी गये। इस प्रकार 80 में पहली बार गहलोत सांसद बने और वहीं से उनका राजनीतिक पटल बड़ा हो गया”। जनार्दन सिंह गहलोत के इस आत्मकथ्य का महत्व इसलिए है कि हमारे यहां राजनेता कभी अपनी कहानी खुद नहीं कहते। इससे राजनीति और इतिहास के विद्यार्थियों एवं अध्येताओं को बहुत सारे महत्वपूर्ण तथ्यों के लिए मूल की बजाय अन्य स्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है। आशा है यह पुस्तक यह कमी पूरी करेगी।

राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर
जनार्दन सिंह गहलोत के निधन से राजनीतिक गलियारों में भी शोक की लहर दौड़ गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जनार्दन गहलोत के निधन पर शोक संवेदनाये व्यक्त की। वही मुख्य सचेतक डॉ. महेश जोशी ने जनार्दन सिंह गहलोत के निधन पर गहरा दुख जताया और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

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