सांस्कृतिक जीवन की चमक बिखेरती है पुस्तक ‘रोळी मोळी’

पुस्तक

जयपुर : आखर पोथी के अंतर्गत रविवार को लेखक कमल किशोर पिपलवा की पुस्तक रोळी मोळी पर साहित्यिक चर्चा की गई। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. ज्योतिपुंज ने कहा कि राजस्थानी जनजीवन का हिंदी और अन्य भाषाओं में वर्णन तो है लेकिन मायड़ भाषा में लोक साहित्य, लोकरंजन, लोक जीवन का सुंदर वर्णन किया गया है। यह पुस्तक एक तरह से सामाजिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक जनजीवन का गुलदस्ता बनाकर अर्पित किया गया है। यह एक आनंद उत्सव है जिसमें भाषा का ठहराव, मस्ती, गायन है जो पाठक को खींचने में सफल होती है। इसमें आस्था है उसमें हमारी संस्कृति को बचाए रखने का प्रयास है। मुझे आशा और विश्वास है कि इस पुस्तक पर आगे भी बहुत चर्चा होगी।

डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’ ने समीक्षा में कहा कि इस पुस्तक में राजस्थानी संस्कृति का सुंदर चित्रण तो है ही, साथ में विवाह, मंगल कामना सहित अन्य पक्षों का भी वर्णन किया गया है। इसमें संस्कृति, प्रकृति, पशु पक्षी तक समाहित हैं। हथाई,मुहावरों का उपयोग, पंचायती, वनस्पति आदि पर चर्चा हुई है तो निबंध के नियमों की भी पूरी तरह से पालना की गई है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में राजस्थानी भाषा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम में इस पुस्तक का एक निबंध अवश्य शामिल किया जाएगा।

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कार्यक्रम में पुस्तक के बारे में प्रस्तावना पढ़ते हुए किशन प्रणय ने कहा कि हमारी पुरानी समृद्ध गद्य परंपरा से राजस्थानी भाषा की निबंध परंपरा का जन्म हुआ है। इस पुस्तक के कई निबंध गांव की पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं। इनमें सांस्कृतिक विषयों के साथ वर्तमान विषमताओं पर भी व्यंग्य किया गया है। यह निबंध लोक जीवन की अच्छी जानकारी देते हैं।

‘रोळी मोळी’ के लेखक कमल किशोर पिपलवा ने बताया कि इसमें कुल 15 निबंध हैं। राजस्थान के सामाजिक-सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक जीवन की जानकारी और विश्लेषण शामिल है। इनमे प्रमुख रूप से हथाई, पंचायती, हाण्डीहेत, मौखाण, मिमझर, मूरखता, चुगली, मरूथल रा जीव जिनावर, मरूथल री प्रकृति, वनराय अर रूंख, ब्याव, रणतभंवर सूं आयो विनायक, धेनडि़या, बिलोवणो, छातीकूटो, थुथकारो आदि हैं। लेखक पिपलवा ने पुस्तक के अंश भी सुनाए और कहा कि हथाई आपस की बातचीत है जिसमें जाति धर्म का भेद नहीं है। हिंदी और अंग्रेजी विषय का अध्ययन करते समय जानकारी मिली कि राजस्थानी भाषा बहुत मजबूत भाषा है और संस्कृति के मामले में भी हमारी विशिष्ट पहचान है। कार्यक्रम के समापन पर प्रमोद शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक का अन्य भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए ताकि राजस्थानी जनजीवन के बारे में अन्य लोग परिचित हों।

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