जयपुर : “हाथी पालना” (Elephant Cradle) कितना महंगा व घाटे का सौदा होता है,यह अभी तक तो कहावत ही सुनते आ रहे थे , पर कोरोना के कारण हाथी पालको पर यह कहावत सचमुच में चरितार्थ हो रही हैं।
फाके मारने की आई नोबत
कोरोना ने जयपुर के हाथी सवारी पर्यटन व्यवसाय की तो कमर ही तोड़ डाली। इसके चलते हाथी के तो खाने के लाले पड़ ही रहे हैं उसके साथ हाथी सवारी से जुड़े हाथी मालिक, केयर टेकर, महावत आदि परिवारों के भी फाके की नोबत आ गई हैं।
आमेर किला है हाथी पर्यटन का सबसे बड़ा केन्द्र
जयपुर में आमेर किला देखने प्रति वर्ष लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं और इनमें से बहुत से पर्यटक हाथी सवारी करके किले तक पहुंचते हैं। इसके अलावा हाथी तीज त्योहार, शोभायात्रा, शादी समारोह आदि में प्रयोग में लिए जाते हैं। कोरोना के चलते पिछले एक साल से पर्यटन स्थल, तीज त्योहारों के प्रमुख आयोजन सब बंद पड़े हैं। कई तरह की पाबंदियों के कारण हाथी पर सवार हो दूल्हे राजा के शाही अंदाज में तोरण मारने की प्रथा भी विलुप्त सी होती जा रही हैं।
कोरोना की दूसरी लहर की मार पड़ रही हैं भारी
हाथी गांव विकास समिति के अध्यक्ष बल्लू खां की माने तो कोरोना से पहले हाथी सवारी का व्यवसाय ठीक-ठाक चल जाता था पर कोरोना के कारण पिछले साल से पर्यटन व धार्मिक स्थल बंद है। बीच में नवंबर से हाथी सवारी की इजाजत मिली थी पर दूसरी लहर आने के बाद फिर से सब कुछ बंद हो गया।
एक हाथी की प्रतिदिन की खुराक ही तीन हजार रुपए की
एक हाथी मालिक के अनुसार एक हाथी की प्रतिदिन की खुराक का खर्च 3000 रुपए होता है। सरकार ने पिछले साल के लॉक डाउन के समय 600 रुपये प्रति हाथी खर्च का अनुदान भी दिया था, लेकिन ये हाथी की खुराक के सामने बहुत कम थी।
उस समय तो जैसे तैसे घाटे का मुकाबला किया पर अब फिर से कोरोना की बंदी ने हाथियों को बचाने की रही सही उम्मीद ही तोड़ डाली। पिछले साल सीएम रिलीफ फण्ड से राशि स्वीकृत हुई थी वह भी अभी तक पूरी नहीं मिल पाई है।
पच्चीस हजार पेट जुड़े है इन हाथियों से
हाथी पालकों(Elephant Cradle) के अनुसार जयपुर में हाथी सवारी व्यवसाय से 25 हजार लोग जुड़े हुए है उनके भी भूखे मरने की नौबत आ गई हैं। भुखमरी से बचने के लिए कई हाथी मालिकों ने पलायन करना भी शुरू कर दिया है।
हाथियों का भी पलायन
जयपुर में कोरोनाकाल से पूर्व 101 हाथी थे उसमे से तीन मर गए बाकी बचे 98 में से 11 हाथी गुजरात चले गए। जयपुर में बाकी बचे हाथियों को बचाने की मुश्किल घड़ी हैं। हाथियों के मरने तथा पलायन का यह सिलसिला रुका नहीं तो जयपुर में बना हाथी गांव भी स्मृतिशेष बनकर रह जाएगा। वन्यजीव प्रेमी तो जयपुर में वर्षों से चली आ रही हाथी सवारी के शुरू से ही पक्ष में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर एक मुकदमा भी चल रहा है।