“तत त्वम् असि” स्वामी प्रबुध्दानंद ने वेद और आत्मा के जुड़ाव को श्रीमद् भगवत का परम उद्देश्य बताया।

"तत त्वम् असि" स्वामी प्रबुध्दानंद ने वेद और आत्मा के जुड़ाव को श्रीमद् भगवत का परम उद्देश्य बताया।

जयपुर। गुलाबी नगरी में मंगलवार को शुरू हुआ अध्यात्म प्रेमियों के लिए श्रीमद् भगवत गीता पर तीन दिवसीय प्रवचन कार्यक्रम “तत त्वम् असि”। आर्श विद्या मंदिर दिल्ली की ओर से विद्याश्रम स्कूल के महाराणा प्रताप सभागार में ब्रह्मलीन स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती ने श्रीमद्भगवत में व्याप्त ईश्वरीय ज्ञान और अध्यात्म पर व्याख्यान दिया।

उन्होंने बताया की जहां विश्वास है वहां अध्यात्म है,साथ उन्होंने इस बात पर रोशनी डाली की मनुष्य हमेशा भौतिक चीज़ों में ईश्वर को ढूंढता है, लेकिन उसे ये बात समझनी चाहिए की परमेश्वर उसके स्वयं के भीतर है। उन्होंने कहा कि वेदांत का कोई विकल्प नहीं है।हिंदू धर्म में अद्वैतवाद व्याप्त है, जहां मनुष्य स्वयंसिद्ध है। उन्होंने आत्मा का वेद से जुड़ाव को ही श्रीमद् भगवत का परम उद्देश्य बताया है।

स्वामी प्रबुद्धानंद ने बताया की कर्मकांड अध्यास यानी मिथ्या ज्ञान, को मिटाते नहीं हैं, लेकिन वेदांत अभ्यास को मिटा सकते हैं। सारी प्रवृत्ति – निवृत्ति भी अध्यास में ही निहित है। जिस प्रकार स्वर्ग के होने के बारे में सर्वज्ञ ज्ञान मिथ्या नहीं कहा जा सकता ।स्वामी प्रबुद्धानंद ने पहले ही दिन श्रीमद् भगवत गीता के 6 अध्यायों को 1घंटे से कम समय में सारगर्भित स्वरूप में समझाया।

कार्यक्रम में कर्मयोगी अलंकार से गणमान्यों का किया सम्मान

मुख्य संरक्षक डॉ. एच. सी. गणेशिया, प्रसिद्ध कानून विध एवम भारतीय हिंदी साहित्य परिषद के चांसलर और मुख्य अतिथि राम चरण बोहरा,जयपुर संसद, कार्यक्रम संयोजक पवन टांक और आचार्य ईश्वरनंदा ने स्वामीजी को शॉल ओढ़ाकर और माला अर्पण कर स्वागत किया। साथ ही प्रवचन से पूर्व स्वामी दयानंद आश्रम ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी साक्षात्कृतानंद सरस्वती ने अपनी ब्रह्मज्ञान की जोत जलाकर श्रोताओं को ऊर्जावान किया।

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