गुणवत्ता और लागत की दृष्टि से एम-सैंड बजरी का बेहतर विकल्प – डीएमजी नायक

गुणवत्ता और लागत की दृष्टि से एम-सैंड बजरी का बेहतर विकल्प - डीएमजी नायक

जयपुर। नदियों व पर्यावरण को बचाना है तो बजरी के विकल्प के रुप में एम-सैंड को प्राथमिकता देनी ही होगी। मोटे रुप से यह निष्कर्ष आज उद्योग भवन में निदेशक खान संदेश नायक द्वारा प्रदेश के एम-सैंड यूनिटधारकों से सीधे संवाद के दौरान उभर कर आयें। एम-सैंड का निर्माण उद्योग, मड का ब्रिक्स उद्योग और शिल्ट का सीमेंट उद्योग में फ्लाई ऐश की तरह से उपयोग कर जीरो लॉस माइनिंग भी हो सकेगी।

निदेशक माइंस एवं पेट्रोलियम संदेश नायक ने कहा कि राज्य सरकार ने बजरी के सस्ते व सुगम विकल्प के रुप में एम-सैंड की उपलब्धता और उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए एम-सैड नीति लागू की है। नीति जारी होने के बाद प्रदेश में 36 एम सेैड इकाइयों द्वारा करीब सवा करोड़ टन एम-सैंड का वार्षिक उत्पादन होने लगा है। प्रदेश में निजी और रियल एस्टेट सेक्टर सहित निर्माण सेक्टर में एम-सैंड के उपयोग को बढ़ावा देने के समन्वित प्रयास करने होंगे।

राज्य सरकार द्वारा जारी एम-सैंड नीति में सरकारी निर्माण कार्यों मेें बजरी के विकल्प के रुप में कम से कम 25 प्रतिशत एम-सैंड का उपयोग अनिवार्य किया गया है। इसी तरह से निजी क्षेत्र के निर्माण कार्यों में भी एम-सैंड के उपयोग के लिए आमजन को प्रेरित करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि गुणवत्ता की दृष्टि से एम-सैंड बजरी का बेहतर विकल्प होने के साथ ही सस्ती व अधिक उपयोगी है।

डीएमजी नायक ने एम-सैंड नीति के सरलीकरण का विश्वास दिलाते हुए कहा कि यूनिटधारकों के व्यावहारिक सुझावों का परीक्षण करवाया जाएगा ताकि प्रदेश में एम-सैंड उद्योग और एम-सैंड का उपयोग दोनों को ही बढ़ावा दिया जा सके। उन्होंने विभागीय अधिकारियों व यूनिटधारकों द्वारा स्थानीय स्तर पर परस्पर समन्वय व सहयोग से अवेयरनेस कार्यक्रम भी संचालित करने की आवश्यकता प्रतिपादित की।

अतिरिक्त निदेशक बीएस सोढ़ा ने बताया कि यूनिटधारकों की व्यावहारिक समस्याओं का हल खोजा जाएगा वहीं इसके उपयोग को बढ़ावा देने के समन्वित प्रयास करने होंगे। एसएमई श्री प्रताप मीणा और एमई श्रीकृष्ण शर्मा ने भी सुझाव दिए।

बैठक में अध्यक्ष राजस्थान स्टोन क्रेशर एसोसिएशन पवन शर्मा, गौरव मोदी, डॉ. एमजी शर्मा, तेजपाल, ओपी गुप्ता, विपिन टांक, महिपाल चौधरी सहित भीलवाड़ा, चित्तोड़गढ़, जोधपुर, पहाडी भरतपुर, मकराना, अजमेर,डेगाना, कोटपूतली, नीम काथाना, अलवर, करौली, कोटा, जयपुर, भरतपुर आदि के एम-सैंड यूनिटघारकों ने व्यावहारिक सुझाव देते हुए कहा कि राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना रिप्स में एम-सैंड इकाइयों के लिए सहायता प्रावधानों को और अधिक व्यावहारिक बनाया जाए।

इसी तरह से सार्वजनिक निर्माण विभाग के अतिरिक्त भी अन्य विभागों, संस्थाओं व उपक्रमों के निर्माण कार्य में एम-सैंड के उपयोग की बाध्यकारी निर्देश दिए जाए। कुछ यूनिटधारकों ने बताया कि हिन्दुस्तान जिंक, हाईवे अथॉरिटी और रेल्वे द्वारा एम-सैंड की उपयोगिता व गुणवत्ता को देखते हुए प्राथमिकता से उपयोग किया जा रहा हैं वहीं राज्य में सरकारी, गैरसरकारी व निजी निर्माण कार्यों में एम-सेैंड सस्ती व बेहतर होने के बावजूद लोग उपयोग के लिए प्रेरित नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए अवेयरनेस कार्यक्रम भी चलाये जाने चाहिए।

इसी तरह से रॉयल्टी में रियायत, फ्यूल सरचार्ज नहीं नहीं लेने, एम-सैंड के लिए भी एसटीपी जारी करने की संभावना तलाशने, पुरानी क्रेशर इकाइयों को भी रिप्स के दायरे में लाने आदि के सुझाव दिए। यूनिटधारकों ने सुझाव दिया कि एम-सैंड के लिए शोधित पानी का उपयोग करने के लिए एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट से डीएमएफटी फण्ड से इकाइयों तक पाइपलाईन की सुविधा उपलब्ध कराने से शोधित पानी का तो उपयोग होगा ही इसके साथ ही भूजल या सतही जल की बचत हो सकेगी।

एम-सैंड यूनिटधारकों ने सुझाव दिया कि सीमेंट उद्योग में फ्लाई ऐश की तरह से एम-सैंड शिल्ट का भी बेहतर उपयोग किया जा सकता है जिससे एम-सैंड के अनुपयोगी मैटेरियल का सही उपयोग हो सकेगा। इसी तरह से मड का उपयोग ब्रिक्स इकाइयों द्वारा किया जा सकता है। इससे जीरो-रिप्स व रॉयल्टी में रियायत का सुझाव, सीमेंट उद्योग में फ्लाई ऐश की तरह एम-सैंड शिल्ट और ब्रिक्स उद्योग में मड का हो उपयोगलॉस माइनिंग को भी बढ़ावा मिलेगा। रिप्स व रॉयल्टी में रियायत का सुझाव, सीमेंट उद्योग में फ्लाई ऐश की तरह एम-सैंड शिल्ट और ब्रिक्स उद्योग में मड का हो उपयोग।

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