जिण भासा ने इतियास रच्यो, वीं री पीड़ा कुण जाणै है: शारदा कृष्ण

जयपुर। जब हम स्वयं अधिक से अधिक राजस्थानी बोलेंगे, पढ़ेंगे और लिखेंगे तभी भाषा का विकास होगा और प्रभाव पड़ेगा। यह विचार संस्कृतिकर्मी राजेश व्यास ने जवाहर कला केंद्र में आयोजित दो दिवसीय राजस्थानी युवा लेखक महोत्सव के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। प्रसिद्ध लेखक राजेश व्यास ने कहा कि, भाषा का अपना सौंदर्य होता है और हमारी भाषा किसी से कम नहीं है। जवाहर कला केंद्र में होने वाला यह आयोजन राजस्थानी भाषा की कला और सौंदर्य को भी आगे बढ़ाएगा।

पर्यटन विशेषज्ञ दुर्गा सिंह मंडावा ने कहा कि, राजस्थानी को आगे बढ़ाने के लिए हमें अपने बच्चों से भी राजस्थानी भाषा में ही संवाद करना चाहिए। इससे वह धीरे-धीरे अपनी भाषा के शब्दों का परिचय जान सकेंगे। राजस्थानी के लिए इतनी बड़ी संख्या में युवाओं का एकत्रित होना गौरव की बात है। अपनी भाषा को जीवित रखने के लिए युवाओं और पड़ोसियों को एकत्र कर अधिक से अधिक राजस्थानी बोलने का अभ्यास करना होगा।

प्रभा खेतान फाउंडेशन की उत्तर भारत प्रभारी अपरा कुच्छल ने कहा कि, प्रभा खेतान अपने समय की प्रतिष्ठित उद्यमी और लेखिका रही। कर्म ही जीवन है उनके इस मंत्र का पालन करते हुए प्रभा खेतान फाउंडेशन साहित्यिक, सांस्कृतिक विकास और महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहा है। यह हिंदी में कलम, अंग्रेजी में राइट सर्किल, उर्दू अरबी में लफ्ज और क्षेत्रीय भाषाओं में आखर के नाम से लेखकों को संवाद का मंच उपलब्ध कराता है। आखर वर्तमान में राजस्थान में बड़ी पहचान बन गया है और राजस्थानी भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए निरंतर कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। युवा लेखक महोत्सव भी इसी क्रम में नई कड़ी है।

जिण भासा ने इतियास रच्यो, वीं री पीड़ा कुण जाणै है: शारदा कृष्ण

राजस्थानी युवा लेखक महोत्सव की शुरूआत मोहन आलोक सत्र से हुई। सत्र में साहित्यकार डॉ सत्यनारायण, डॉ राजेश व्यास और विजय जोशी ने कविता, कहानी, गीत, बाल साहित्य, निबंध, रिपोर्ताज, उपन्यास, संस्मरण, व्यंग्य आदि पर विस्तारपूर्वक चर्चा की। दूसरा सत्र डॉ शक्तिदान कविया हुआ जिसमें साहित्यकार मदन गोपाल लढ़ा, मोनिका गौर, घनश्याम दास और चेतन औचित्य ने संवाद किया।

कार्यक्रम के दौरान संध्या में राजस्थानी कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। जिसमें प्रदेश भर के कवियों ने हिस्सा लिया। प्रसिद्व कवियत्री डॉ शारदा कृष्ण ने अपनी कविता ’अणतोली घणमोली म्हांरी, बोली रा बोल अडाणै है, जिण भासा ने इतियास रच्यो, वीं री पीड़ा कुण जाणै है’’ के माध्यम से राजस्थानी भाषा की पीड़ा व्यक्त की। इसके साथ ही डॉ गजादान चारण ने ‘लाडो ऐ बातां लख लीजे’ कविता के द्वारा किशोर बेटियों को सीख देती रचना प्रस्तुत कर ‘गुड टच एवं बेड टच’ की सरस पहचान करवाई।

जिण भासा ने इतियास रच्यो, वीं री पीड़ा कुण जाणै है: शारदा कृष्ण

जिनमें प्रसिद्व कवि जितेन्द्र निर्मोही, डॉ शारदा कृष्ण, डॉ गजादान चारण, प्रहलाद सिंह झोरड़ा, महेन्द्र सिंह छायण, नहुष व्यास, छैलू चारण छैल, राजूराम बिजारणियां, प्रीतिमा पुलक, अभिलाषा पारिक और देवीलाल महिया ने राजस्थानी भाषा, संस्कृति और साहित्य पर अपनी-अपनी कविताओं, गीत-संगीत से महोत्सव के पहले दिन का समापन किया।

कार्यक्रम का संचालन लेखिका अभिलाषा पारीक ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार डॉ कुंदन माली, विजय जोशी, घनश्याम नाथ कच्छावा, चेतन औदिच्य, मोनिका गौड़, राजूराम बिजारणियां लूणकरणसर, ग्रासरुट मीडिया के फाउंडर प्रमोद शर्मा उपस्थित रहे। सत्र में साहित्यकार डॉ सत्यनारायण, डॉ राजेश व्यास और विजय जोशी ने संवाद किया। इस महोत्सव का समापन 27 दिसंबर को होगा। महोत्सव के दूसरे दिन कमला कमलेश सत्र का आयोजन किया जायेगा जिसमें साहित्यकार विमला नागला, डॉ हरिमोहन सारस्वत, कुंदन माली और लेखिका संतोष चौधरी संवाद करेंगें।

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