गृह निर्माण सहकारी समिति अब खातेदार से सीधे नहीं खरीद सकेगी जमीन

जयपुर। गृह निर्माण सहकारी समितियों के बैकडेट में पट्टे काटकर लाखों का कारोबार करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार ने सख्त निर्णय लिया है। अब सहकारी समिति केवल राज्य सरकार व स्थानीय निकायों से भूमि आवंटित करवाकर ही योजना विकसित कर सकेंगी। अन्य संस्थाओं अथवा व्यक्तियों, खातेदारों से सीधे भूमि का क्रय नहीं कर सकेंगी। सोसायटी किसी भी स्थिति में केवल एक ही योजना सृजित कर सकेंगी, इससे ज्यादा योजना विकसित करने पर कानूनी रोक रहेगी।

सहकारिता विभाग ने गृह निर्माण सहकारी समितियों के उपनियम संशोधित करते हुए आदर्श उपनियम का प्रारूप तैयार कर सभी उप पंजीयक सहकारी समितियों को निर्देश प्रदान किए है। विभाग ने यह प्रारूप राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर पीठ के एक मामले में दिए गए निर्णय के बाद राजस्थान सहकारी अधिनियम 2001 एवं नियम 2003 के अन्तर्गत तैयार किया गया है। इसके बाद रजिस्ट्रार मुक्तानंद अग्रवाल ने नियमों को संशोधित करने के निर्देश दिए है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सोसायटी को अवसायन में लाया जा सकेगा।

रकम एक माह में जमा नहीं कराने पर आवंटन निरस्त
यदि कोई सदस्य भवन-फ्लैट के आवंटन के कार्य के बाद इसके लिए मांगी गई रकम को मांगपत्र मिलने के एक माह के भीतर जमा ना कराए तो समिति उसके आवंटन को निरस्त कर सकेगी और उसकी ओर से जमा कराई गई समस्त निर्माण राशि, पांच प्रतिशत कमी कर उसको लौटा दी जाएगी।

निरस्तीकरण के नोटिस के एक माह के भीतर समिति समस्त बढ़ी हुई राशि एवं उस पर शास्ति, जो समिति की ओर से निर्धारित की जाए, अदा होने पर निरस्तीकरण वापस ले सकेगी। यदि कोई सदस्य सोसायटी की ओर से निर्मित गृह पर आधिपत्य कर लेने के बाद ऋण की किश्तों एवं अन्य देय राशियों को जमा कराने में असफल रहेगा अथवा किश्तों की देय एवं कर की राशि को समय पर जमा न कराए, तो उससे समस्त बकाया ऋण राशि, एक मुश्त वसूल की जा सकेगी और उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी तथा बकाया राशि को उस गृह की नीलामी करके या किसी अन्य सदस्य को आवंटित करके वसूल कर ली जाएगी। आवंटित भवन का विभाजन, परिवर्तन, नवीन निर्माण, सोसायटी की एवं स्थानीय निकाय की स्वीकृति के बिना नहीं हो सकेगा।

सहमति के बाद ही सदस्यों को भवन-फ्लैट का आवंटन
सोसायटी के नियमों में कार्यकलाप का स्पष्ट प्रावधान किया गया है, जिसमें सदस्यों के गृह निर्माण के लिए नक्शा तैयार करा सकेगी और उस पर अनुमानित व्यय की योजना बनाकर रजिस्ट्रार सहकारी समिति से सहमति लेकर जयपुर विकास प्राधिकरण, नगर परिषद, नगर निगम व नगरपालिका से स्वीकृति ले सकेंगी। योजना के निर्माण के लिए राज्य सरकार, स्थानीय निकाय, प्राधिकरण से योजना का अनुमोदन करवाने के बाद ही सदस्यों को भवन व फ्लैट का आवंटन कर सकेगी। योजना में आंतरिक विकास कार्य करना सोसायटी की जिम्मेदारी होगी।

सोसायटी में सदस्यता की पात्रता का लेकर प्रावधान किया गया है कि कोई भी वह व्यक्ति जो कम से कम 18 साल का हो, स्वस्थ मस्तिष्क तथा संविदा करने के लिए सक्षम हो तथा अधिनियम एवं नियम में रखी गई पात्रताओं की पूर्ति करता हो, वह सोसायटी का सदस्य हो सकेगा। सोसायटी का पंजीकरण किए जाने के लिए कम से कम 15 सदस्य होंगे। सोसायटी में सदस्यों की अधिकतम संख्या वहीं होगी, जो स्थानीय निकाय की ओर से भवनों अथवा फ्लैटों की संख्या स्वीकृत की गई है, लेकिन यह 250 से अधिक नहीं होगी।

वर्तमान में क्या करती हैं सोसायटी
शहरी क्षेत्रों में बिना भूमि की खरीद किए बिना ही सोसायटियां पट्टा काट देती है, जबकि उस भूमि का नामांतरण सोसायटी के नाम होना जरुरी है। साथ ही बैकडेट में पट्टा काटकर प्रति वर्गगज चार्ज लेकर कारोबार कर रही है। जिन सोसायटियों को अवसायन में लाया जा चुका है, वे भी इस कारोबार में जुटी है। प्रदेश की करीब 2500 हजार ऐसी गृह निर्माण सहकारी समितियों के खिलाफ आए दिन विभाग को भी शिकायते मिलती रहती है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *