जयपुर। दिल्ली में केजरीवाल सरकार की तर्ज पर राजस्थान में भी पहली बार विधानसभा के बजट सत्र को खत्म किए बिना साढ़े पांच माह बाद फिर से विधानसभा की कार्यवाही शुरू होगी। सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र का सत्रावसान करवाने के लिए राज्यपाल के पास फाइल ही नहीं भेजी। राजस्थान के संसदीय इतिहास में यह पहली बार है, जब विधानसभा के बजट सत्र का 5 महीने से ज्यादा समय से सत्रावसान नहीं हुआ। इसके पीछे मुख्य कारण पिछले साल सचिन पायलट खेमे की बगावत के बाद विधानसभा सत्र बुलाए जाने पर राज्यपाल और सरकार के बीच हुए टकराव को माना जा रहा है। यह दीगर बात है कि राजस्थान में सत्र बुलाने को ये टकराव क्षणिक था,परन्तु पता नहीं गहलोत सरकार ने किस सोच के कारण सत्रावसान की फाइल राज्यपाल को नहीं भेजी। दिल्ली का जहां तक सवाल हैं वहां केजरीवाल सरकार व उपराज्यपाल बैंजल के बीच तो केन्द्र सरकार के कारण शुरू से ही टकराव की स्थिति बनी हुई हैं।
18 सितम्बर से पहले सत्र बुलाना था जरूरी
राजस्थान में विधानसभा के बजट सत्र की कार्यवाही 19 मार्च को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की गई थी। 6 महीने के भीतर एक बार विधानसभा की बैठक बुलाना अनिवार्य होता है। इस हिसाब से 18 सितंबर तक विधानसभा की बैठक बुलाना जरूरी था। इसी को देखते हुए बिना सत्रावसान के विधानसभा की अगली बैठक 9 सितंबर को बुलाई गई है।
राजस्थान में ऐसा पहली बार हुआ
अब तक का राजस्थान विधानसभा के इतिहास को देखे तो बजट सत्र सहित हर सत्र की कार्यवाही खत्म होने के दो महीने के भीतर सत्रावसान कर दिया जाता रहा हैं। इस बार 19 मार्च को ही बजट सत्र का काम पूरा हो गया था, लेकिन यह परंपरा तोड़ दी गई। सरकार ने पिछले साल मानसून सत्र के बाद से सत्रावसान की फाइल को देरी से राजभवन भेजना शुरू किया। इस बार तो सत्रावसान की फाइल ही नहीं भेजी। पायलट खेमे की बगावत के समय राज्यपाल कलराज मिश्र ने अचानक विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी थी।
क्या था टकराव
सचिन पायलट खेमे की बगावत के वक्त विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर सरकार और राज्यपाल के बीच जमकर टकराव हुआ था। सरकार 31 जुलाई 2020 से पहले विधानसभा सत्र बुलाना चाहती थी, इसके लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कर फाइल राज्यपाल को भेजी थी। राज्यपाल ने 21 दिन पहले नोटिस देकर अचानक सत्र बुलाने का कारण पूछते हुए फाइल लौटा दी थी। इसके बाद सरकार ने तीन बार राजभवन फाइल भेजी, तीनों बार फाइल लौटा दी। मुख्यमंत्री सहित उनके समर्थक कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों ने राजभवन में धरना दिया और नारेबाजी की। इसके बाद राज्यपाल ने 14 अगस्त 2020 से विधानसभा सत्र बुलाने की फाइल को मंजूरी दी थी।
दिल्ली विधानसभा के सत्रों की स्थिति
माना जा रहा है कि पिछले साल विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर राज्यपाल से हुए टकराव के बाद सरकार ने दिल्ली की तर्ज पर सत्रावसान के लिए राज्यपाल को फाइल ही नहीं भेजने का नया रास्ता निकाला है।
राज्यपाल के अधिकारों पर अतिक्रमण-राठौड़
सरकार के इस कदम से राज्यपाल के अधिकारों पर अतिक्रमण को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि विधानसभा के बजट सत्र का सत्रावसान करने के लिए राज्य सरकार ने फाइल राजभवन ही नहीं भेजी। राज्य सरकार राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ। यह लोकतंत्र का अपमान है।
राठौड़ ने विधानसभा सचिव को भी लिखा पत्र
राठौड़ ने इस संबंध में एक पत्र विधानसभा सचिव को भी लिखा है उसमें संविधान के आर्टिकल 174 के साथ कई अन्य सवाल भी खड़े किए हैं और कहा है कि विधानसभा का सत्रावसान किए बिना सत्र आहुत करने से विधायक प्रश्न पूछने से भी वंचित रह जाएंगे। इसे विशेषाधिकार हनन भी बताया है तथा कहा है कि विधानसभा का सत्रावसान कर राज्यपाल से विधानसभा आहुत करवाई जाए।
क्या कहता है संविधान का आर्टिकल 174
संविधान के आर्टिकल 174 में राज्यपाल के जो अधिकार दिए गए है उसमें साफ प्रावधान है।
(1) राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किंतु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
(2) राज्यपाल, समय-समय पर,—
(क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा;
(ख) विधानसभा का विघटन कर सकेगा।