नेट-थियेट पर दिखा सुरों का संगम

नेट-थियेट

जयपुर। नेट-थियेट पर सुर संगम संगीत प्रस्तुति में शनिवार को शहर उभरते कलाकरों ने अपनी सरस अंदाज से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नेट-थियेट के राजेंद्र शर्मा राजू ने बताया कि गीतकार अहमद फ़राज़ की ग़ज़ल शांतनु पॉल ने रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए तो आ, आ फिर से मुझे छोड़कर जाने के लिए।

समीर गुप्ता ने फैज अनवर गजल – कोई फरियाद मेरे दिल में दबी हो जैसे, तूने आंखों से कोई बात कही हो जैसे और सुदर्शन सैमुअल ने हाकिम नासिर की ग़ज़ल जिंदगी को ना बना ले वह सजा मेरे बाद, हौसला देना उन्हें मेरे खुदा मेरे बाद। गीतकार डॉ तूलिका सेठ की ग़ज़ल बड़ी खूबसूरत खता हूं तुम्हारी, मुझे ढूंढ लो तुम वफा हो तुम्हारी मोनिका राठौड़ ने प्रस्तुत की।

सैमुअल अल्फ्रेड ने डॉ ज़ीनत कैफ़ी ग़ज़ल कभी शबनम कभी बारिश कभी बादल की तरह, दिल की दुनिया में बसे हो किसी जंगल की तरह की शानदार सुरो के साथ देवेन्द्र कुमार ने ताल का ऐसा समागम किया कि दर्षक इस सुरो के संगम में बहते ही चले गये। संचालन आर.डी. अग्रवाल ने किया। संगीत विष्णु कुमार जांगीड, प्रकाश मनोज स्वामी, कैमरा जितेन्द्र शर्मा मंच सज्जा अंकित शर्मा नोनू, अंकित जांगिड, आदि का रहा।

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