3 पार्टियां 3 जाट नेता, जंग में डोटासरा-बेनीवाल कामयाब, पूनियां पिछड़े

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  • सुजानगढ़ उपचुनाव था जाट राजनीति का प्रमुख केन्द्र बिन्दू

जयपुर। सुजानगढ़ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मनोज मेघवाल की जीत को भले ही सहानुभूति लहर की जीत का नाम दे ले, लेकिन इस हार-जीत ने प्रदेश के तीन प्रमुख जाट नेताओं की भविष्य की दशा और दिशा भी तय कर डाली। इन तीन जाट नेताओं में आरएलपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल, कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां शामिल हैं।

निर्णायक मतदाता
यूं तो सुजानगढ़ अजा वर्ग के लिए सुरक्षित सीट हैं पर यहां अन्य जाति वर्ग के मतदाताओं में प्रमुख रूप से जाट मतदाता की ही हार-जीत में प्रमुख भूमिका रहती हैं। सुजानगढ़ में 60 हजार से अधिक जाट मतदाता माने जाते हैं। उस लिहाज से आंकलन किया जाए तो आरएलपी उम्मीदवार सीताराम नायक को मिले 31,993 वोटों में से अधिकांश वोट विशुद्ध रूप से जाट मतदाताओं के ही थे और इसी वोट बैंक के कारण वे त्रिकोणीय संघर्ष बनाने में कामयाब रहे।

बेनीवाल बड़े क्षत्रप, पर जीत का सेहरा बंधा डोटासरा को
आरएलपी को मिले इन वोटों ने ये तय कर दिया कि वर्तमान में हनुमान बेनीवाल जाट राजनीति के सबसे बड़े क्षत्रप हैं। बेनीवाल की पार्टी की दमदार उपस्थिति के बावजूद कांग्रेस की यहां से 35 हजार से अधिक मतों से जीत से यह भी साफ हो गया कि बाकी बचे जाट वोट बैंक को अपने पक्ष में करने में कांग्रेस सफल रही। कांग्रेस की झोली में आए जाट वोटों का श्रेय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा को गया, क्योंकि सुजानगढ़ उप चुनाव की कमान डोटासरा के हाथ मे ही थी। लिहाजा न केवल डोटासरा के सिर पर जीत का सहारा बंधा, बल्कि जाट बेल्ट में टिके रहने का एक रास्ता खुल गया।

करिश्मा नहीं दिखा पाएं पूनिया
यहां सबसे करारी शिकस्त मिली तो भाजपा को। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां भी जाट बिरादरी से आते हैं, लेकिन वे कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए। पंचायत चुनाव में अपना प्रधान बनाने वाली भाजपा के हाथ से एक बड़ा वोट बैंक इतने कम समय में खिसक गया।

तीनों ही नेता इसी बेल्ट से
जाट बेल्ट में नागौर, सीकर, झुंझुनूं, चूरू जिले सबसे महत्वपूर्ण है और सुजानगढ़ को इन सब इलाको का केंद्र बिंदु माना जा सकता हैं। तीनों ही नेता इसी बेल्ट से आते हैं यह दीगर बात है कि पूनिया आमेर से चुनाव लड़ विधानसभा में पहुंचे।

यूं मिली कामयाबी
ऐसे में देखा जाए तो बेनीवाल की जाट वोट बैंक पर मजबूत पकड़ में से केवल डोटासरा ही हिस्सेदारी बांटने में कामयाब रहे हैं। डोटासरा को जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था तब उन्हें राजनीतिक गलियारों में हल्के में आंका गया था, लेकिन अध्यक्ष पद की बागडोर संभालने के बाद डोटासरा मजबूती से उभरे हैं।

सुजानगढ़ ने फूंके नए प्राण वायु
डोटासरा अध्यक्ष बनने के बाद राजनैतिक मैनेजमेंट से अपने निर्वाचन क्षेत्र में हुए चुनावों में नगर पालिका में अध्यक्ष, लक्ष्मणगढ़ व नेछवा दोनों पंचायतों में प्रधान बनाने में कामयाब रहे, जबकि पालिका व पंचायत दोनों में बहुमत नहीं मिल पाया था। अब सुजानगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत ने डोटासरा की नेतृत्व क्षमता में नए प्राण वायु फूंक डाले।

कौन कितने पानी में
देखना यह हैं कि डोटासरा अपनी इस उपलब्धि को आगे बढ़ाते हुए शेखावाटी के खांटी कांग्रेस नेता रहे रामदेव सिंह महरिया, नारायण सिंह और शीशराम ओला की श्रेणी में पहुंच पाते हैं या नहीं। हां! इतना अवश्य है कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की राजनीति चल निकली। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के लिए उपचुनाव परिणाम काफी भारी पडऩे वाले है। भाजपा में उनके विरोधियों के सक्रिय व संगठित होने का बड़ा मौका इन उपचुनाव परिणामों ने दे डाला है। डोटासरा व पूनिया की बड़ी अग्नि परीक्षा अभी होनी बाकी है।

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