नई दिल्ली : “आज के दौर में कूलिंग विकास संबंधी एक जरूरत बन गई है और हमारी सरकार गरीबों को कूलिंग के किफायती साधनों को मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है। हमें कूलिंग के सतत समाधानों को तलाशने की जरूरत है, खासकर उन श्रमिकों के लिए, जो हमारे लिए सड़कें, राजमार्गों और मेट्रो नेटवर्क बना रहे हैं। उन्हें भी सस्टेनेबल कूलिंग पाने का उतना ही हक है, जितना कि हम में से किसी को।” यह बात केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री (एमओईएफसीसी) भूपेंद्र यादव ने नई दिल्ली में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की ओर से सस्टेनेबल कूलिंग पर आयोजित नेशनल डायलॉग में अपने उद्घाटन भाषण के दौरान कही। उन्होंने आगे कहा कि “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत मार्च 2019 में नेशनल कूलिंग एक्शन प्लान (इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान) को लागू करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था। यह योजना आवासीय और व्यावसायिक भवनों, परिवहन, कोल्ड चेन और उद्योगों जैसे सभी क्षेत्रों में भारत की कूलिंग से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण प्रदान करती है।”
भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि “एक तरफ कूलिंग सेक्टर में मैन्युफैक्चरिंग और नवाचारों का समर्थन, दूसरी तरफ नेट जीरो बनने की प्रतिबद्धता के साथ भारत ने एक समृद्ध और जलवायु-अनुकूल भविष्य के लिए एक सस्टेनेबल एजेंडे की रूपरेखा को सामने रखा है। मैं सीईईडब्ल्यू को नवाचारों के मोर्चे पर भारत के नेतृत्व को रेखांकित करने और रूम एयर कंडीशनिंग क्षेत्र में घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर आर्थिक लाभ को अधिकतम बनाने के उपायों के बारे में सूचित करने के लिए बधाई देता हूं।” केंद्रीय मंत्री ने इस कार्यक्रम में सीईईडब्ल्यू के दो अध्ययनों ‘टेक्निलॉजी गैप्स इन इंडियाज एयर-कंडिशनिंग सप्लाई चेन’ और ‘मेकिंग सस्टेनेबल कूलिंग इन इंडिया अफोर्डेबल’ को जारी किया। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन बताते हैं कि भारत को 2070 तक नेट-जीरो वाली अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में परिवर्तन के लक्ष्य को पाने के लिए अपने नागरिकों को सस्टेनेबल कूलिंग के विकल्प उपलब्ध कराने की जरूरत है। इसके लिए कूलिंग और रेफ्रिजरेशन के लिए ऊर्जा-कुशल उपकरणों के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देना बहुत जरूरी होगा।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन सचिव लीना नंदन ने कहा कि “इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान को तीन साल पहले हरी झंडी दिखाई गई थी और प्रमुख कार्यों को पहले ही शुरू किया जा चुका है। हालांकि, एचएफसी को चरणबद्ध तरीके से हटाने की प्रतिबद्धताओं के संदर्भ में काफी कुछ करने की जरूरत है। अगर हम कूलिंग एक्शन प्लान के अपने लक्ष्यों का हमारी कॉप-26 घोषणाओं में शामिल बड़े लक्ष्यों के साथ तालमेल बैठा लें तो पूरी समस्या का समाधान हो जाएगा, क्योंकि हमारे पास एक समेकित दृष्टिकोण होगा।” सीईईडब्ल्यू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डॉ. अरुणाभा घोष ने कहा, “जैसा कि भारत को इस बार गर्मी के मौसम में लगातार लू (गर्म हवाएं) के हालात का सामना करना पड़ रहा है, सस्टेनेबल कूलिंग की दिशा में परिवर्तन अब एक राष्ट्रीय अनिवार्यता बन चुकी है। 2070 नेट-जीरो की प्रतिबद्धता के बाद, अब हमें इस लक्ष्य को पाने के लिए समस्याओं की जड़ों में जाकर काम करना होगा। सस्टेनेबल कूलिंग, नए और उभरते हुए क्षेत्रों (सन राइज सेक्टर्स) में से एक हो सकता है, जो हमें उत्सर्जन को घटाने, रोजगार पैदा करने और आर्थिक विकास को रफ्तार देने में सहायता कर सकता है। इसे पाने के लिए, हमारी सरकारों को निजी उद्योग को सस्टेनेबलिटी के रास्ते पर लाना होगा और इसके जरिए कूलिंग सेक्टर में नौकरियों, विकास और सस्टेनेबिलिटी को जोड़ना होगा।”
सीईईडब्ल्यू विश्लेषण में पाया गया कि हितकारी नीतियों और सार्वजनिक निवेश होने के बावजूद सस्टेनेबल कूलिंग टेक्नोलॉजी को व्यापक रूप से स्वीकार करने में इसकी ऊंची कीमत एक प्रमुख बाधा है। इसलिए, इस क्षेत्र में उपभोक्ताओं और निजी कंपनियों के लिए किफायती वित्तपोषण विकल्पों की उपलब्धता बढ़ाने को प्राथमिकता देनी चाहिए। निजी क्षेत्र को भी नई प्रौद्योगिकियों और नए व्यापार मॉडलों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि कीमतों में मौजूद अंतर को भरा जा सके। इसके अलावा, सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण ने हीटिंग, वेंटिलेशन और कूलिंग (एचवीएसी) क्षेत्र की सप्लाई चेन को स्थानीकृत (लोकलाइज) करने के लिए निवेश करने की जरूरत को रेखांकित किया है। कंप्रेशर और मोटर जैसे कल-पुर्जों के घरेलू निर्माण को प्राथमिकता देने की भी जरूरत है। इससे भारत को आगामी दशक में सस्टेनेबिलिटी और रोजगार दोनों को उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। विश्लेषण यह भी सुझाव देता है कि सरकारी योजनाओं को छोटे और मध्यम श्रेणी के कल-पुर्जा निर्माताओं को क्षेत्र की नई तकनीकों को अपनाने में मदद करनी चाहिए, और नए नियमों व विनियमों के अनुपालन में आने वाली लागत को व्यापक रूप से घटाना चाहिए। इसके अलावा, सरकारों, उद्योगों और शिक्षा जगत से जुड़े सदस्यों को घरेलू उद्योग के लिए विनिर्माण मानकों और अन्य प्रासंगिक बेंचमार्क बनाने के लिए आपस में साझेदारी करनी चाहिए।
2021 में, केंद्र सरकार ने एयर कंडीशनर्स और रेफ्रिजरेटर्स जैसे घरों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों (व्हाइट गुड्स) के कल-पुर्जों के घरेलू निर्माण में निवेश आकर्षित करने के लिए उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन योजना को घोषित किया था।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बेहतर आर्थिक विकास और परिवारों की आय में बढ़ोतरी को देखते हुए, 2038 तक भारत की कूलिंग संबंधी ऊर्जा की मांग 2018 के स्तर से आठ गुना बढ़कर लगभग 1,000 टन रेफ्रिजरेशन (टीआर) तक पहुंच जाने का अनुमान है। इससे सालाना 810 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन होगा, जो 2037 के लिए अनुमानित कुल वार्षिक राष्ट्रीय उत्सर्जन का लगभग 7 प्रतिशत है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के किगाली संशोधन के तहत, भारत ने 2047 तक इस्तेमाल होने वाले हाइड्रोफ्लोरो कार्बन (एचएफसी) में चरणबद्ध तरीके से 85 प्रतिशत कटौती करने का वादा किया है।