नवरात्रि विशेष : गरीब हो या “सेलिब्रिटी” सबकी मां (सकराय माता)

- अंबानी, बिड़ला, ठाकरे,बिग बी भी नवा चुके हैं माता के चरणों मे शीश - मन इच्छित फलदायिनी मां, जिन्हें विदेशी भी पूजते हैं - राजस्थान में उदयपुरवाटी के पास है यह चमत्कारी मंदिर

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जयपुर :  मां दुर्गा का प्राकट्य रूप शाकम्भरी की महिमा अपरम्पार है। शाकम्भरी के यूं तो देशभर में छह मंदिर है। इनमें राजस्थान में सीकर जिले के पास उदयपुर वाटी में मालकेतू की पहाडिय़ों में सकराय स्थित शाकम्भरी मंदिर देश-दुनियां में अपना अलग ही स्थान रखता है। यहां मां शाकम्भरी रूद्राणी(काली) और ब्रह्माणी(शाकम्भरी) के रूप में विराजमान है।

सेलिब्रिटी
देवी शाकम्भरी के प्राकट्य रूपों की ख्याति का आलम यह है कि यहां न केवल कुलदेवी के रूप में जात- जड़ूला करने वाले आम आवाम मां के दरबार में आते है,बल्कि मन इच्छित फलदायिनी मां शाकम्भरी के इस सिद्ध शक्ति पीठ में राजनेताओं,कारपोरेट जगत,फिल्मी जगत और विदेशी मेहमानों का आने का तांता लगा रहता है। इनमें पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभासिंह पाटिल,पूर्व उपराष्ट्रपति स्व.भैरोंसिंह शेखावत, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्रसिंह ,सपा नेता स्व. अमरसिंह, शिवसेना प्रमुख एवं महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री उद्वव ठाकरे, कॉरपोरेट जगत की प्रमुख हस्ती मुकेश अम्बानी, आदित्य बिड़ला, फिल्म स्टार मनोज कुमार, बीग बी अमिताभ बच्चन,अजय देवगन, काजोल सहित सैंकड़ों नामचीन सकराय के अपनी अरदास लगाने आ चुके है।

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vasundra rajeकैसे मिली प्रसिद्धि सकराय को
सकराय में नवरात्रा के दौरान तो विभिन्न धार्मिक आयोजन होते ही है उसके अलावा भी इस स्थान को देश-दुनिया में प्रसिद्धि दिलाने वाले पं. केदार शर्मा शतचंडी यज्ञ जैसे आयोजन करते ही रहते हैं। पंडित शर्मा ही मनोकामना सिद्धी के लिए तमाम हस्तियों को यहां लेकर आए। प्रमुख लोगों के आगमन के कारण यहां हवाई पट्टी भी बनी हुई है ,जिस पर हैलीकॉप्टर उतारा जा सकता है। मंदिर की देखरेख करने वाले नाथ सम्प्रदाय के नाथ जी महाराज के अनुसार मां का प्राकट्य पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। नवरात्रा के दिनों में तो यहां मेले जैसा दृश्य रहता है। मंदिर के पुजारी के अनुसार सकराय में मां की आरती सुबह साढ़े पांच बजे और शाम को पौने सात बजे दो वक्त होती है। आरती के समय आप मां को जिस रूप में देखना चाहते है उस रूप में दर्शन होते है। शाकम्भरी पीठ की प्रसिद्वि को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वर्ष 2017 में चौसठ दिन की 13000 किलोमीटर की शाकम्भरी दिव्य गुणगान यात्रा का आयोजन भी किया गया था।

shakambari mata

‘सकराय’ शाकम्भरी

जयपुर से 125 किलोमीटर दूर प्रकृति की गोद में मां के इस दरबार को सकराय वाली देवी के रूप में जाना जाता है। सैकड़ों वर्ष पुराने इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि सहारनपुर की तरह यह भी पुराना स्थान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब हिरण्याक्ष कुल के दुर्गम नामक राक्षस ने ब्रह्मा की घोर तपस्या कर चारों वेदों को प्राप्त कर लिया। इसके चलते सौ साल तक अकाल पड़ गया। ऋषि मुनियों ने आदि शक्ति जगदम्बा को पुकारा। ऋषि-मुनियों की पुकार सुन मां सताक्षी के रूप में प्रकट हुई। जगदम्बे की आंखों से अश्रुधारा बही उसी से पुन; पृथ्वी पर जलधारा का संचलन हुआ।
अकाल से लुप्त हुई वनस्पति और खाद्य पदार्थों को सताक्षी ने फिर से लगाया और प्राणी मात्र की भूख-प्यास मिटाई। इसीलिए सताक्षी से जगदम्बे को शाकम्भरी कहा जाने लगा। शाकम्भरी को इसीलिए वनस्पति देवी के नाम से भी जाना जाता है। शाकम्भरी ने दुर्गम राक्षस से युद्ध कर चारों वेदों को पुन: प्राप्त कियाा। सकराय में चांदी के सिंहासन पर शाकम्भरी रूद्राणी और ब्रह्माणी के रूप में विराजमान है। शाकम्भरी का दुर्गासप्तशती के 11 अध्याय में भी वर्णन मिलता है।

अन्य प्रमुख शाकम्भरी मंदिर

जयपुर के निकट सांभर,सहारनपुर उत्तरप्रदेश,कानपुर,केदारनाथ के पास केदारघाट पर तथा बैैंगलूरू के निकट बंनसंकरीधाम में शाकम्भरी माता के मंदिर हैं। सहारनपुर व सांभर का पुराने धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन हैं।

सकराय पहुंचने का सुगम मार्ग

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सकराय जाने के लिए उदयपुरवाटी(झुंझुनूं) से होकर प्रमुख मार्ग है। जयपुर से जाने वाले यात्री श्रीमाधोपुर,खंडेला होते हुए उदयपुरवाटी पहुंच सकराय जा सकते है। सीकर से पिपराली,रघुनाथगढ़,चिराना, नांगल होते हुए उदयपुरवाटी से सकराय जाया जा सकता है। झुंझुनूं की तरफ से आने वाले श्रद्धालु गुढ़ा गौडज़ी से उदयपुरवाटी होते हुए सकराय पहुंच सकते है। फ़्लाइट से जयपुर उतर तथा रेल से सीकर,झुंझुनूं और नवलगढ़ उत्तर भी पहुंचा जा सकता हैं।

 

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