जयपुर: कोरोना की दूसरी लहर का असर भले ही राजस्थान में कम हुआ है लेकिन कोरोना अभी ख़त्म नहीं हुआ है। इसी को देखते हुए कोरोना गाइड लाइन की पालना करते हुए मंदिर प्रशासन ने मंदिर परिसर को बंद रकने का निर्णंय लिया है। इस बार भी कोरोना का साया तीज-त्यौहारों पर रहेगा। पिछले साल की तरह इस बार भी जन्माष्टमी पर भक्तों को कान्हा के दर्शन नहीं होंगे। ठिकाना गोविंददेव जी ट्रस्ट जयपुर ने गोविंददेव जी मंदिर में 31 अगस्त तक भक्तों के प्रवेश पर रोक लगाने का निर्णय किया है। ऐसे में 30 अगस्त को आयोजित होने वाले जन्माष्टमी उत्सव और 31 अगस्त को नन्दोत्सव कार्यक्रम भी केवल मंदिर परिसर में पुजारियों की मौजूदगी में ही मनाया जाएगा।
जानकारी के मुताबिक साल 2020 में भी कोरोना के कारण मंदिर परिसर में भक्तों का प्रवेश बंद था। तब मंदिर में पुजारियों ने ही सभी परम्परा को निभाते हुए कान्हा के जन्मोत्सव को मनाया था। इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा। मंदिर परिसर को रंगीन रोशनी से सजाया जाएगा और पूरे मंदिर परिसर में फूलों की सजावट होगी।
ठाकुर जी के दर्शन होंगे ऑनलाइन
इस बार भी भक्तों को ठाकुर जी के दर्शन जन्माष्टमी पर केवल ऑनलाइन ही होंगे। इसके लिए मंदिर परिसर के मुख्य द्वार पर एक बड़ी एलईडी स्क्रीन लगाई जाएगी, जिस पर हर प्रोग्राम का लाइव प्रसारण किया जाएगा। इसके अलावा मंदिर के ऑफिशियल वेबसाइट पर भी लाइव दर्शन करवाए जाएंगे।
मंदिर के आस-पास लगती है लम्बी कतारें
गोविंददेव जी की मान्यता इस कदर है कि जन्माष्टमी ही नहीं सामान्य दिनों में भी मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु हर रोज आते है। जन्माष्टमी पर तो स्थिति यह रहती है कि मंदिर परिसर के बाहर आधा किलोमीटर दूरी तक भक्तों की लम्बी कतारें लगती है। ऊंचाई से देखे तो पूरे मंदिर परिसर में केवल सिर ही सिर नजर आते है। जन्माष्टमी के पूरे कार्यक्रम में व्यवस्था बनाए रखने के लिए 1 हजार से ज्यादा पुलिस और वॉलंटियर्स अपनी सेवाएं देते है। खासबात यह है कि यहां आने वाले हर भक्त को पंजीरी का प्रसाद बांटा जाता है।
राजा जयसिंह ने बनवाया था मंदिर
गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर, राजस्थान का प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर वाला मंदिर है। यह चन्द्र महल के पूर्व में बने जननिवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। संरक्षक देवता गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी, जिसको सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था।
गोविंद देवजी जयपुर के राज परिवार के इष्ट देव हैं। शहर के संस्थापक जयसिंह और उसके बाद के सभी शासकों ने गोविंद देवजी की भक्ति की है। इस मन्दिर का निर्माण 1735 में हुआ था। सवाई जयसिंह ने आज के जयनिवास में गोविंद देवजी की प्रतिमा को रखवाया और 1715 से 1735 तक गोविंद देवजी जयनिवास में ही रहे।