जयपुर: आंदोलनों वाले किरोड़ी बाबा। जी हां! भाजपा से राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के लिए ये ही नाम सबसे सटीक है। उन्होंने हर छोटी-मोटी समस्या को लेकर जितने जमीनी आंदोलन किये हैं उतने राजस्थान ही नहीं बल्कि देश मे भी कोई ऐसा नेता नहीं होगा जो आंदालनों के उनके रिकॉर्ड को छू भी सके।
“जहां खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं शुरू हो जाती हैं” अमिताभ बच्चन की फ़िल्म कालिया का यह डायलॉग किरोड़ी बाबा पर फ़ीट बैठता है। उसी तर्ज पर कहे तो “जहां किरोड़ी बाबा खड़े हो जाते हैं,वहां आंदोलनकारियों की भीड़ स्वतः स्फूर्त जुट जाती है”। आज 3 नवम्बर को उनका जन्म दिन हैं। 70 वर्ष के हो चुके किरोड़ी बाबा उम्र के इस पड़ाव में भी पहाड़ की चोटी पर चढ़ जाते हैं और खुले आसमान के नीचे आंदोलन स्थल पर सोना तो उनके लिए आम बात है। वे हर वेशभूषा में फ़ीट नजर आते हैं। जिस व्यक्तित्व के नाम पर गीत रचे जाते हो और जिन्हें महिला-पुरुष विभिन्न आयोजन-प्रयोजनों में गाते हो, इससे बड़ी उपलब्धि किसी व्यक्ति विशेष की क्या हो सकती हैं।
संघर्षों का वर्ल्ड रिकॉर्ड
संघर्षों का वर्ल्ड रिकॉर्ड रचने वाले डॉ. किरोड़ीलाल की अब तके की संघर्ष यात्रा को देखे तो डॉ.मीणा ने पौने छह सौ से अधिक आंदोलन तथा इन आंदोलनों के कारण 153 मुकदमें झेलने , 14 बार जेल यात्रा व 30 बार से अधिक गिरफ्तारी दे चुके इस जननायक अपने आपमे पार्टी संगठन हैं। जिस किसी की पीड़ा के बारे में सुना नहीं कि आंदोलन के लिए कूद पड़े।
एक विलक्षण प्रतिभा जिसने सड़कों पर गुजार डाला जीवन
यह भी सच्चाई है कि डॉ.किरोड़ीलाल मीणा ने अपनी राजनीतिक जीवन यात्रा का अधिक समय आमजन के लिए सड़कों पर संघर्ष में ही गुजारा हैं। इस संघर्षयात्रा की तीन से चार घटनाएं तो ऐसी है जिसमें मृत्यु को भी डॉ.किरोड़ी ने निकट से देखा और लोहे जैसी छाती को आगे कर मौत को भी मात दे डाला। इन घटनाओं के घाव उनके शरीर पर आज भी ताजा है पर उन्होंने कभी इन जख्मों की परवाह ही नहीं की। उन्होंने आंदोलनों में कभी हार का मुंह देखना तो सीखा ही नहीं।
मलाल केवल इतना
मलाल केवल इस बात का है कि जिस विचारधारा और पार्टी से वे जुड़े हैं उसने उनका सही ढंग से सदुपयोग किया ही नहीं। उसके चलते उन्हें जिस शिखर पर होना चाहिए था वहां नहीं पहुंच पाए। गलती उनके उन अनुयायियों की भी हैं जो व्यक्तित्व-कृतित्व को सही तरीके से जनमानस में प्रदर्शित नहीं कर सके।
सर्वसमाज के लिए लड़ी लड़ाई
इन आंदोलनों में कई घटनाएं तो ऐसी भी हैं जो स्वयं के समाज के खिलाफ थी,लेकिन सच्चाई और न्याय के साथ डॉ. किरोड़ीलाल खड़े दिखाई दिए। उन्हें केवल मीणा समाज का नेता कहने वालों को शायद यह पता नहीं कि डॉ. किरोड़ीलाल ने अपने आंदोलनों में से 70 प्रतिशत आंदोलन सामान्य व ओबीसी वर्ग के लिए लड़े और न्याय के बाद ही हटे। दबंग व जुझारू इस नेता की लोकप्रियता को देख मीणा समाज के ही कई नेताओं ने मुकाबले की कोशिश की,लेकिन मैदान में कहीं टिक नहीं पाएं। निर्भिक लीडर डॉ.किरोड़ी ने राजनीति के कई क्षत्रपों से भी जमकर लोहा लिया। चाहे वह उनके गुरु रहे पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैंरोसिंह शेखावत हो अथवा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे। जन से जुड़े आंदोलनों में उन्होंने यह कभी नहीं देखा कि किसकी सरकार हैं। भाजपा में रहते भाजपा सरकारों के खिलाफ भी उन्होंने आंदोलनों का बिगुल बजाया। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से राजनैतिक मतभेद के चलते उन्हें भाजपा तक को छोडऩा पड़ा। ये दीगर बात है कि राजे से इन दिनों उनके मधुर संबंध हैं।
मीणा हाईकोर्ट
दौसा जिले के नांगल प्यारीवास गांव की जिस भूमि को मीणा हाई कोर्ट के नाम से जाना जाता है उसके इतिहास का सुक्ष्म वर्णन किए बिना डॉ.किरोड़ीलाल मीणा की संघर्ष यात्रा के दर्शन अधूरे ही रह जाएंगे। इस भूमि का नाम भी पंचों की पंचायत और उसको लेकर आंदोलन से जुड़ा हैं। इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ.किरोड़ीलाल ने ही किया था। यह ऐतिहासिक स्थल आज जिस तरह से विकसित हो रहा हैं वह पूरे मीणा समाज को गौरवान्वित करने वाला हैं। इस स्थल की दूसरी खास बात यह है कि यहां होने वाले आयोजनों में समाज की जाजम पर सब मिलकर एक साथ बैठते हैँं भले ही राजनैतिक विचारधारा मेल नहीं खाती हो।
उम्र 70 साल, जज्बा जवान से भी अधिक
दौसा जिले के महवा तहसील के एक छोटे से गांव खोरा मुल्ला में 3 नवम्बर 1951 को एक साधारण किसान परिवार में जन्में डॉ.किरोड़ीलाल का बचपन भी संघर्षोँ में गुजरा। जवानी और अब वृद्धावस्था भी संघर्षों के नाम कर डाली। इतनी कठिन तथा कांटों भरी यात्रा के बावजूद डॉ. मीणा में आज भी एक नौजवान से कहीं अधिक ऊर्जा हैं। कुछ दिनों पूर्व डॉ.किरोड़ीलाल मीणा का जयपुर की आमागढ़ पहाड़ी पर चढने का वीडिय़ों आज भी सोशल मीडिया पर देखा जा सकता हैं।
सहज उपलब्ध, किसी को निराश नहीं लौटाते
एक राजनेता और पेशे से चिकित्सक डॉ.किरोड़ी लाल जनता के कार्य करने के लिए हर समय तैयार मिलते हैं। उनके वाला कोई भी शख्स कभी निराश नहीं लौटता। पूर्वी राजस्थान में तो उनका जबरदस्त दब-दबा हैं। सांसद किरोड़ी लाल मीणा खाट पर बैठ जब खाना खाते एक शांत और सहजता से उपलब्ध व्यक्ति लगते हैं। इसी तरह विभिन्न सामाजिक एवं पारिवारिक आयोजनों में मीणावाटी के गीतों तथा हेला ख्याल जैसे आयोजनों में नृत्य करते देख लगता ही नहीं कि राजनीति में दहाड़ लगा ललकारने वाला यहीं डॉ.किरोड़ीलाल हैं। अपनी गुस्सेल और आक्रामक छवि के बिल्कुल विपरीत।
राजनीतिक जीवन यात्रा
मीणा ने राजनीति में 1980 में कदम रखा और पहला विधानसभा चुनाव महवा से लड़ा, लेकिन मात्र 16 वोटों के अंतर से पिछड़ गए। उसके बाद वे कई बार विधायक व सांसद तथा मंत्री रहे डॉ.किरोड़ीलाल वर्तमान में भाजपा से राज्यसभा सदस्य हैं, पर आंदोलन में वे पार्टी लाइन से हटकर भी सर्वसमाज के लिए संघर्ष करते रहते हैं।
किरोड़ी की छापामार पद्वति
पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए कुछ भी कर सकने वाले इंसान वे कभी आपको जयपुर की सड़कों पर तो कभी सुदूर ढाणी और गांव में मोर्चा लिए नजर आ ही जाते हैं। ताजा आंदोलनों की बात करें तो बूकना (सपोटरा) का बाबूलाल वैष्णव हत्याकांड, टीकरी (महवा) के शंभू पुजारी हत्याकांड, आमागढ़ के धार्मिक स्थल को सभी के दर्शनों के लिए खुलवाने, रीट परीक्षा में हुई धांधली के खिलाफ धरना तथा बाजरे की खरीद को लेकर धेराव प्रमुख हैं। छापामार पद्धति से आंदोलन डॉ.किरोड़ी ही कर सकते हैं।
धर्मपत्नी गोलमा देवी का भी पूरा साथ
इन आंदोलनों में सहभागी रहने वाली उनकी धर्मपत्नी गोलमादेवी भी विधानसभा की सदस्य व गहलोत सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। गोलामादेवी ने भी कई संघर्षों में उनके साथ खुले आसमान के नीचे धरनों पर रात गुजारी हैं। डॉ. किरोड़ीलाल मीणा कभी दिल्ली तो कभी जयपुर तथा कभी करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा अथवा उदयपुर संभाग का आदिवासी इलाका वे बिना थके हारे जनता के बीच पहुंच ही जाते है।




