CM Ashok Gehlot: बढ़ते चले गए…कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

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-एक गांधी-मार्गी की अजातशत्रु सी प्रतिबद्ध यात्रा

@ विमलेश शर्मा

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) की जननायक और अजातशत्रु छवि उनकी साढ़े चार दशक की उस प्रतिबद्ध राजनीतिक यात्रा का अक्स है, जिसे उन्होंने अपने उसूलों पर अडिग रहकर गढ़ा है। गांधी -दर्शन के प्रति दृढ़ आस्थावान गहलोत की संवेदनशीलता और सरलता उन्हें पूरे देश के सभी नेताओं से अलग पहचान दिलाती है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं है कि अशोक गहलोत इक्कीसवीं सदी में राजनीति के सबसे प्रभावी शिक्षक और नयी पीढ़ी के लिए अनुसरण के उदाहरण हैं। लेकिन यह ऊंचाई उन्हें अनायास नहीं मिली है, अपने वैचारिक सिद्धांतों और नैतिक आदर्शों पर अडिग रहकर अशोक गहलोत आज एक प्रकाश-स्तंभ की तरह हैं और इस प्राचीर का निर्माण अपने आप में एक प्रेरक गाथा है।

 

तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री और केन्द्र में मंत्री रहे अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) ने अपनी राजनीतिक यात्रा में शालीनता और अनुशासन को अपना सबसे बड़ा नैतिक अस्त्र बनाया। उनका यह सफर खाद-बीज की दुकान से शुरू हुआ था जो कि मुख्यमंत्री तक पहुंचा।

 

उनके सफर को देखें तो यह साफ है कि वे जिस मिशन को लेकर चले उसमें कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। राजनीति की इस राह में उन्होंने संघर्ष के कई इम्तिहान पास किए।

कभी हार नहीं मानी
वर्तमान परिदृश्य को भी देखे तो गहलोत ने विपरीत परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानी। पायलट खेमे की ओर से की गई उठा पटक हो चाहे कोरोना-काल की चुनौतियां सबका डटकर मुकाबला किया। गहलोत ने हरेक विपरीत परिस्थिति में बतौर मुख्यमंत्री जनकल्याण के मार्ग को कभी नहीं भुलाया। समाज के सबसे कमजोर वर्ग के व्यक्ति के लिए उनके दिल में जो दर्द है उसे पिछले साल ‘ कोई भूखा ना सोये ‘ अभियान में सभी ने देखा है।

 

संवेदनशीलता और संकल्प
गहलोत खुद कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद पूरे संकल्प के साथ प्रदेश से कोरोना को भगाने में जुटे हुए हैं। उन्होंने आमजन की लापरवाही से बढ़ते मौतों के आंकड़ों पर भावुक होकर यहां तक कह डाला कि ” लोगों की जान बचाने के लिए सारा बजट झोंकना पड़े मंजूर हैं, पर व्यवस्था से कोई मरे वो मुझे सहन नहीं होगा “।

 

यह संवेदनशीलता उनके हृदय में आज से नहीं है, वे ऐसे जननायक हैं, जिनके हृदय में चौबीसों घड़ी समाज के हर वर्ष की भलाई का चिंतन जाग्रत रहता है। वे प्रदेश के कांग्रेसजनों और पत्रकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं से सबसे अधिक संवाद रखने वाले राजनेता हैं।

 

प्रदेश के ही नहीं, बल्कि देश के नेता
यही कारण है कि उनका नाम आज देश के चुनिंदा नेताओं में शुमार है। कांग्रेस संगठन तथा उसके इतर जब भी चर्चा चलती है तो गहलोत का नाम गांधी परिवार के बाद प्रधानमंत्री के चेहरे तथा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी लिया जाता है। उनकी कार्यशैली को पूरे देश में सभी राजनीतिक दलों और नेताओं में सराहा जाता है। इस कार्यशैली की बुनियाद महात्मा गांधी के जीवन -दर्शन के इर्दगिर्द बुनी गयी है। वे मूलतः गांधीजी के सबसे दृढ़ अनुयायियों में से एक हैं, ऐसे राजनेता जिन्होंने कभी कट्टरता से समझौता नहीं किया। इसलिए उन्हें पूरे देश में एक आशा और विश्वास के रूप में देखा जाता है।

 

सृजनात्मक क्षमता
स्पष्टवादी, निर्भीक, सहज, सरल और सादगी पसंद व्यक्तित्व के साथ सदाशयता तथा संवेदनशीलता जिसमें कूट-कूटकर भरी हो। जहां तक हो सके सच्चाई का साथ देते हुए नीति और सिद्धांतों पर चलना। अनुशासित और सकारात्मक भाव के साथ सृजनात्मक क्षमता रखना।

स्वच्छ छवि के साथ ईमानदारी में तो उनका कोई सानी नहीं। इसके साथ ही जीवन में किसी के प्रति उन्होंने दुराव नहीं रखा। सभी को साथ लेकर चले हैं। नब्बे के दशक में उन्होंने भाजपा की शेखावत सरकार को अपदस्थ करने की साजिश में साथ देने से मना कर दिया था, क्योंकि शेखावत बीमार थे और अमरीका में इलाज करा रहे थे। गहलोत की इसी नैतिक दृढ़ता की वजह से शेखावत हमेशा उनके प्रशंसक रहे।
यारों के यार
विपरीत परिस्थितियों में भी जूझने की क्षमता और अपने आपसे लड़ते रहना और समाधान की कोशिश करना। ऐसी स्थिति में भी कमजोरी को प्रकट नहीं होने देकर गुस्से पर काबू रखने की क्षमता और संघर्ष करके भी अतिरिक्त शक्ति जुटा लेना। वे अपने साथियों पर पूरा भरोसा करते हैं और किसी भी विपरीत परिस्थिति में भी वे राम की तरह मर्यादा नहीं भूलते। इस वजह से उन्हें राजनीति में शुचिता का पर्याय भी माना जाता है।

 

तर्क के साथ विचार रखने तथा दूसरों को सुनने। इसी विचारों की लीडरशिप के माध्यम से जन-जन को अपना बना लेने की क्षमता। एक साथ इतनी खूबियों के धनी है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot)। इसे जादुई करिश्मा भी कह सकते हैं।

मठाधीशों के सामने नहीं टेके घुटने
सत्ता और संगठन की शीर्ष राजनीति में सक्रिय रहे गहलोत का शुरुआती दौर आम कार्यकर्ताओं की तरह साधारण और अभावों में गुजरा। एक जमाना था जब एनएसयूआई से जुड़े छात्र नेताओं को कांग्रेस के पुराने मठाधीश कार्यालय तक नहीं घुसने देते थे। अशोक गहलोत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

 

गहलोत ने एनएसयूआई उस दौर में संभाली जब राजनीति में साधन नहीं थे। एक बार उन्हें उदयपुर में जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यालय के बाहर बरामदे में रात काटनी पड़ी, जब वे एनएसयूआई के अध्यक्ष थे।

भविष्यवाणी जो सच हुई
भले ही मठाधीश गहलोत को पसंद नहीं करते थे ,पर वे भी उनके राजनीतिक कौशल को मन ही मन स्वीकार करते थे। ‘ एक दिन बड़े नेता बनोगे ‘ यह बात प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे स्व.गिरधारीलाल व्यास ने तो तब कही थी, जब गहलोत एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष थे।

क्या है किस्सा
व्यास के इन शब्दों से जुड़ा भी रोचक किस्सा हैं। व्यासजी को इंदिराजी से मिलने तथा अशोक गहलोत को एनएसयूआई के कार्यक्रम में भाग लेने दिल्ली जाना था। पहले दिन शाम के समय गहलोत प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय आए तो दिल्ली जाने को लेकर उनकी चर्चा यूं ही व्यास जी के सहयोगी चपरासी कन्हैया लाल से हो गई। कन्हैया ने बताया कि व्यासजी के साथ वे भी भोर सुबह दिल्ली जा रहे हैं । हमारे साथ ही दिल्ली चल लेना ट्रेन में जाने के पैसे बच जाएंगे।

 

गहलोत ट्रेन से जाने का इरादा छोड़ प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में ही सो गए। जब व्यास जी की कार रवाना हुई तो वे भी ड्राइवर के पास दुबक कर बैठ गए। व्यासजी भी माला फेरते पीछे की सीट पर ध्यान मग्न हो बैठ गए। आधे रास्ते बाद पूजा से निवृत हो व्यासजी ने आंख खोली तो पूछा ये आगे और कौन बैठा है। इस पर व्यासजी के सहयोगी कन्हैया ने बताया कि अशोक हैं। इसे भी दिल्ली जाना था। इसकी ट्रेन छूट गयी थी तो मैने ही बैठा लिया। कन्हैया ने ये झूठ इसलिए बोला था,क्योंकि उसने व्यासजी को  बिना बताए ही गहलोत को कार में साथ चलने को बोल दिया था।

इंदिराजी से मुलाकात ने किया प्रभावित
दिल्ली पहुंच व्यासजी ने तो डेरा जमा लिया, जबकि गहलोत तैयार हो एनएसयूआई कार्यक्रम में पहुंच गए। वहां उनकी इंदिराजी से मुलाकात व कुछ समय चर्चा भी हो गई। ये बात जब कन्हैया को पता चली तो वे गहलोत को व्यासजी के रूम में ले गए और बताया कि अशोक तो इंदिराजी से मिल भी आए अपने को पता नहीं कब टाइम मिलेगा।

 

व्यास जी ये सुन बहुत प्रभावित हुए और मुलाकात की सारी बाते सुन बोले तुम बड़े नेता बनोगे। उन दिनों इंदिरा जी से मुलाकात भी बड़ी बात मानी जाती थी, क्योंकि प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी इंदिराजी से मुलाकात के लिए कम से कम 5 से 7 दिन तक दिल्ली में डेरा डालना पड़ता था। इंदिरा जी की तरह राजीव गांधी, श्रीमती सोनिया गांधी,राहुल गांधी व प्रियंका गांधी यानी पूरी गांधी फैमली से उनके मधुर संबंध जग जाहिर हैं।

 

अखबार के दफ्तरों में खुद जाते थे खबर लेकर
वे कार्बन लगाकर हाथ से खबर लिखना और उसे अखबारों के दफ्तरों तक भी खुद पहुंचाकर आते थे।
अशोक गहलोत ने अपनी युवावस्था से एक -एक शब्द पर ध्यान दिया। वे हर कागज को आज भी बहुत गंभीरता से पढ़ते हैं। शब्दों की लफ्फाजी उन्हें नापसंद है और शब्दों के साथ ही वे आचरण को भी महत्व देते हैं। उनकी कथनी और करनी में कभी भेद नहीं रहा।

 

चाय मीटिंग
वे कार्यालय के स्थान पर साथी पदाधिकारियों के यहां चाय मीटिंग करते थे। बारी-बारी से पदाधिकारी के घर चाय मीटिंग के दौर में कई घरों में उलाहना भी सुनना पड़ता था। जो पदाधिकारी अपने घर ले जाता उसके घर वाले उन्हें भी डांटते थे, लेकिन दृढ़ निश्चय के धनी गहलोत डांट-फटकार को भी हंसकर सहन कर लेते थे। कहते थे कि आपके घर आए हैं तो चाय पीकर तो जाएंगे ही।

 

 

पारले G के भी शौकीन
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) चाय की चुस्कियों के साथ पारले G बिस्किट बड़े चाव से खाते हैं। देर रात तक जगकर काम करना और उसके बावजूद सुबह 6 बजे दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर सदैव तैयार मिलने का ये उनका क्रम आज भी जारी है।

टिफिन गोठ
एनएसयूआई में थे तब पैसे तो होते नहीं थे। सम्मेलन आदि का आयोजन कैसे करें? इसका भी तरीका निकाल लिया। टिफिन गोठ की शुरुआत की। कार्यकर्ता अपने घरों से टिफिन लेकर आते और सम्मेलन के बाद सामूहिक रूप से बैठकर भोजन करते।

जोड़ने की कला कोई इनसे सीखे
एनएसयूआई अध्यक्ष रहते गहलोत ने जोधपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ा। इस चुनाव में वे हार गए, लेकिन हार को सहज भााव से स्वीकारते हुए एक-एक कार्यकर्ता के घर गए और धन्यवाद ज्ञापित किया।

गहलोत (CM Ashok Gehlot) जोधपुर जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी छोटी उम्र मेें बन गए थे। सबको साथ लेकर चलना था। बड़े नेताओं को कैसे राजी करें इसके लिए उन्होंने एक-एक वरिष्ठ नेता के घर जाने का टाइम-टेबल बनाया और जाकर कहा कि वे अपने अनुभवों के आधार पर संगठन को आगे बढ़ाने का मार्गदर्शन दे। एक-एक नेता को मनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। संगठन में भी नए लोगों को जोड़ा जो उनके साथ चल सके।

 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने तो एक बार फिर ऐसी स्थिति आई। प्रदेश स्तर पर भी नई टीम जोडऩी पड़ी। हालांकि वरिष्ठ कांग्रेसजनों के सम्मान में कोई कमी नहीं आने दी। लोगों को जोडऩे की कला भी कोई इनसे सीखे।

येजदी मोटर साइकिल
राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) जब एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष बने तो उनके पास उस समय एक येजदी मोटर साइकिल हुआ करती थी। उसी मोटर साइकिल पर वे साथी मित्रों से चर्चा करने रोज शाम सोजती गेट आते और इसी मोटर साइकिल से आस-पास के इलाकों का सफर करते। जहां पैदल जाया जा सकता था, वहां वे पैदल जाना ज्यादा पसंद करते। साथी मित्रों के साथ साइकिल पर भी खूब बैठै।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ImpactVoice News website की सलाहकार समिति के चेयरपर्सन हैं।)

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