जयपुर : हमारे मंत्री जनता के प्रति कितने संवेदनशील है इसकी एक बानगी देखिए। आप भी भौचक्के रह जाएंगे। इन मंत्रियों को दौरे के दौरान व जन सुनवाई में सैंकड़ों आवेदन तत्काल मदद की गुहार वाले मिलते हैं पर मंत्री जरूरतमंदों की तत्काल सहायता का नाम ही नहीं लेते।
जरूरतमंद को तत्काल सहायता के लिए बाकायदा एक स्वविवेकानुदान कोष बना हुआ है उसमें से एक वर्ष में कौन मंत्री कितनी राशि खर्च कर सकता है उसकी सीमा तय है, लेकिन सीमा की बात तो दूर, कई मंत्रियों ने मंत्री बने पौने तीन साल की अवधि में एक आना भी इस कोष में से खर्च करने की जहमत उठाई। इन मंत्रियों ने कोरोना संकट के इस दौर में भी इस कोष से किसी की सहायता करने की सोची तक नहीं।
ये 11 मंत्री जिन्होंने एक पैसा भी किसी जरूरतमंद को नहीं दिया
राजस्थान में गहलोत सरकार जब बनी थी तब मुख्यमंत्री सहित कुल 25 सदस्य मंत्रिमण्डल में थे उसमें से उसमें तीन सचिन पायलट, विश्वेन्द्रसिंह व रमेश मीणा ने इस्तीफा दे दिया। एक भंवरलाल मेघवाल का निधन हो गया बाकी बचे 21 मंत्रियों में से केवल आठ ने जरूर पिछले पौने तीन सालों में कुछ राशि खर्च की, लेकिन 11 मंत्रियों का तो विवेकानुदान कोष से क्या कुछ खर्च किया उसका कोई ब्यौरा नहीं हैं।
इनमें कैबिनेट मंत्रियों में नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल, चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा, राजस्व मंत्री हरीश चौधरी तथा राज्य मंत्रियों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा, जनजाति मंत्री अर्जुनसिंह बामणिया, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री भंवरसिंह भाटी, वन एवं पर्यावरण मंत्री सुखराम विश्नोई, खेल राज्यमंत्री अशोक चांदना, श्रमराज्यमंत्री टीकाराम जूली, गृहराज्य व नागरिक सुरक्षा राज्य मंत्री भजनलाल जाटव और चिकित्सा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग शामिल हैं।
इन मंत्रियों में पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का नाम भी है जो शिक्षा राज्यमंत्री के साथ पार्टी के प्रदेश मुखिया भी है। उनके पास तो पार्टी स्तर पर भी आवेदन आएं होंगे, लेकिन उन्होंने भी स्वविवेकानुदान कोष का उपयोग किया।
किसको क्या है अधिकार
मंत्रिमण्डल सचिवालय के अनुसार स्वविवेकानुदान कोष से प्रति वर्ष मुख्यमंत्री 50 लाख रुपए, केबिनेट मंत्री 2 लाख रुपए, राज्यमंत्री 1 लाख और उपमंत्री 50 हजार रुपए सालाना इस फण्ड से तत्काल जरूरतमंद की मदद में खर्च कर सकते हैं। यह फण्ड 1959 से गठित है और इसमें मंत्रियों के अलावा संसदीय सचिवों तक को इसमें शामिल किया हुआ है ताकि कहीं जाए तो तत्काल सहायता की जरूरत पड़े तो स्वविवेकानुदान कोष का उपयोग ले सके।
पौने तीन साल में किसने क्या खर्च किया
स्वविवेकानुदान कोष से खर्च की वर्षवार सूची देखे तो पहले वर्ष 2019-20 में प्रतापसिंह खाचरियावास, परसादीलाल मीणा, भंवरलाल मेघवाल, लालचंद कटारिया, प्रमेाद जैन भाया ने ही केवल स्वविवेकानुदान कोष से राशि खर्च की। इसी प्रकार 2020-21 में बी.डी.कल्ला, परसादी लाल मीणा, लालचंद कटारिया, प्रमोद जैन भाया, राजेन्द्र यादव, शाले मोहम्मद, ममता भूपेश और उदयलाल आंजना ने इस कोष का उपयोग किया, लेकिन चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को छोड़ किसी ने पांच पैसे भी स्वविवेकानुदान कोष से खर्च करने की जहमत उठाई।
चालू वित्तीय वर्ष 2021-22
♦ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 25 लाख रुपए | ♦ किसी मंत्री के खर्च का कोई हिसाब नहीं |
वित्तीय वर्ष 2020-21
♦ मुख्यमंत्री 10 लाख रुपए | ♦ बीडी कल्ला 2 लाख रुपए |
♦ परसादी लाल 2 लाख रुपए | ♦ लालचंद कटारिया 1.75 लाख रुपए |
♦ प्रमोद जैन भाया 1.75 लाख रुपए | ♦ राजेन्द्र यादव 1 लाख रुपए |
♦ शाले मोहम्मद 70 हजार रुपए | ♦ ममता भूपेश 50 हजार रुपए |
♦ उदयलाल आंजना 15 हजार रुपए |
वित्तीय वर्ष 2019-2020
♦ प्रतापसिंह खाचरियावास 1.40 लाख रुपए | ♦ परसादी लाल मीणा 2 लाख रुपए |
♦ भंवरलाल मेघवाल 1.45 लाख रुपए | ♦ लालचंद कटारिया 1.40 लाख रुपए |
♦ प्रमोद जैन भाया 1.70 हजार रुपए |
प्रतिपक्ष का आरोप
विधानसभा में प्रतिपक्ष के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ का कहना है कि सरकार के मंत्रियों में गरीब के प्रति संवेदना नही हैं। विवेकानुदान कोटे का इस्तेमाल नहीं करना ये दर्शाता है कि गरीब हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार और उनके मंत्रियों में थोड़ी सी भी मानवीयता नहीं हैं।