श्रीराम को नारायण धनुष तो श्रीकृष्ण को दिया था सुदर्शन चक्र
@आचार्य राजेश्वर, जयपुर
भगवान श्रीपरशुराम नारायण के छठे अवतार कहे गए हैं, उनके बारे में अनेक भ्रांतियां, अनेक मिथक प्रचार में आ गए हैं। लोग अक्सर जब भी उनकी बात करते हैं तो यह कहते हुए पाए जाते हैं कि वह एक क्रोधी ऋषि है। उन्होंने अपनी माता का वध कर दिया या फिर उन्होंने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया, परंतु वास्तविकता यह है कि श्री परशुराम क्रोधी ऋषि नहीं, अपितु सौम्य ऋषि माने जाते हैं। ऐसे ऋषि जो अकारण कभी किसी पर क्रोध नहीं करते, शिक्षा प्रदान करना उनका कार्य रहा, वे श्रेष्ठ शिक्षक गिने जाते हैं। ऐसे शिक्षक जिनके पास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण , बलराम, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण आदि अनेक योद्धाओं ने अस्त्र शस्त्रों के साथ ही शास्त्रों का ज्ञान भी प्राप्त किया था।
पापी और अधर्मियों के लिए क्रोधी
पापी व अधर्मियों का नाश करने के लिए श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारंग धनुष, श्री राम को नारायण धनुष देने वाले भगवान परशुराम को भी यदि हम मात्र क्रोधी ऋषि या क्षत्रिय हंता के रूप में ही जाने तो यह उचित नहीं है । वह सौम्य इसलिए हैं क्योंकि वे शिक्षण कार्य से जुड़े रहे, शिक्षक सौम्यता का पर्याय है, वह चारों वेदों के ज्ञाता ऋषि हैं। , इसीलिए उनके लिए कहा है-
अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि।।
अर्थात उनके सम्मुख चारों वेद हैं, वे लोगों को वेद मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, पीठ पर उनके धनुष है, जिसका तात्पर्य है कि जो लोग वेद मार्ग पर नहीं चलते हैं, मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, अनाचारी हैं, ऐसे लोगों के लिए उनके पास दंड का विधान भी है ।
वरदान भी देते हैं। परशुराम जी
परशुराम जी के लिए कहा है कि यदि कोई वेद मार्ग का उल्लंघन करता है, पापाचार करता है तो उसे श्राप देते,पर अच्छे बर्ताव व श्रेष्ठ आचरण पर, वह वरदान भी देते हैं। दूसरी बात अक्सर लोग चर्चा करते हैं कि उन्होंने अपनी माता का वध कर दिया, परंतु इस कथा के पीछे भी एक मर्म है, एक संदेश है, और वह संदेश यह है कि कभी भी कैसी भी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए सोच विचार कर उसके दूरगामी परिणाम को देखते हुए ही कोई भी कार्य करना चाहिए।
इसलिए किया था माता का वध
वास्तव में यह घटना उनकी दूरदर्शिता व धैर्य की परीक्षा है। जब उन्होंने देखा कि उनके पिता क्रोध में हैं, और उन्होंने उनके बड़े भाइयों को अपनी ही माता का वध करने के लिए आज्ञा दी है और भाइयों के मना करने पर उन्होंने मुझसे अपनी मां का वध करने के लिए कहा है तो उन्होंने मन में विचार किया जो व्यक्ति सदैव दूसरों पर कृपा करता हो, जो परम तपस्वी है, जो सप्तर्षियों में से एक ऋषि हैं। जिन्होंने संजीवनी विद्या को सिद्ध किया हुआ है, जो सदैव लोगों को जीवन दान देने का कार्य करते हैं, वह किसी का वध करने के लिए कह रहे हैं, तो उसके पीछे निश्चित ही कोई कारण है।
इसीलिए उन्होंने मन में विचार किया कि सबसे पहले पिता के क्रोध को शांत करके उनको प्रसन्न किया जाए।
चूंकि पिता के पास जीवन दान देने का सामर्थ्य है। उन्होंने संजीवनी विद्या को सिद्ध किया है। अत: उनकी आज्ञा का पालन कर उन्हें प्रसन्न कर लिया जाए तो माता व भाइयों के जीवन को भी बचाया जा सकता है। इसीलिए उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन भी किया और पिता के प्रसन्न होने पर अपनी मां और भाइयों को जीवित करने का वरदान भी प्राप्त कर लिया ।
क्षत्रियों का नहीं आततायियों का किया था नाश
एक और बात अक्सर सुनने को मिलती है कि उन्होंने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया, जबकि वास्तविकता यह है कि अनेक क्षत्रियों ने उनसे अस्त्र-शस्त्र और ज्ञान प्राप्त किया, मार्गदर्शन प्राप्त किया। भीष्म पितामह क्षत्रिय थे जिनको उन्होंने अस्त्र शस्त्रों का विपुल भंडार सौंपा। श्रीराम भी सूर्यवंशी क्षत्रिय थे जिनको स्वयं जाकर नारायण धनुष भेंट किया। श्री कृष्ण भी क्षत्रिय ही थे, जिनको उन्होंने सुदर्शन चक्र व सारंग धनुष दिया।
ऐसे में यह कहना उचित नहीं है कि वह क्षत्रिय विरोधी थे, हां उन्होंने कुछ क्षत्रियों का वध किया, परंतु वे मात्र एक ही वंश के थे और वे थे हैहयवंशी क्षत्रिय, सहस्त्रार्जुन के वंशज और वे भी इसलिए मारे गए, क्योंकि सहस्त्रार्जुन ने भगवान परशुराम के पिता महर्षी जमदग्नि के आश्रम से तपोबल से प्राप्त कामधेनु का बलपूर्वक हरण किया। इतना ही नहीं सहस्त्रार्जुन के पुत्रों द्वारा महर्षि जमदग्नि का समाधि अवस्था में वध कर दिया, इसलिए मात्र सहस्त्रार्जुन के वंशज हैहय वंशी जो अनाचारी व आततायी क्षत्रिय थे। मात्र उनका ही परशुराम जी द्वारा वध किया गया।
नारी सम्मान के लिए भीष्म से भिड़ गए
भगवान परशुराम तो वह है जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए भीष्म पितामह से भिड़ गए। गोकर्ण ऋषि की कुटिया को वापस पाने के लिए समुद्र के सामने डट कर खड़े हो गए। भगवान परशुराम पुरुषों के लिए एक पत्नी व्रत के पक्षधर थे। उन्होंने महर्षि अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से नारी जागृति अभियान का भी संचालन किया। उन्होंने सदैव अधर्म का विरोध किया और वह इसलिए क्योंकि वे स्वयं नारायण के अवतार है।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।
अर्थात अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना ही उनके अवतार का मुख्य कारण है ।
केवल ब्राह्मणों के नहीं, सबके भगवान
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि श्रीपरशुराम जी ब्राह्मणों के भगवान हैं, वास्तविकता तो यह है कि वे स्वयं नारायण हैं। नारायण तो सभी के भगवान हैं। वे सभी के लिए अवतार लेते हैं तो भला वे किसी एक जाति,धर्म, संप्रदाय या समूह के भगवान कैसे हो सकते हैं। वे सर्वव्यापी हैं, सबके लिए पूजनीय है, सबके हितकारी हैं ।हां ब्राह्मण उनके वंशज जरूर कहलाते हैं।
प्रकृति प्रेमी
उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीँ वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँखार पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।
कोंकण, गोवा और केरला उन्हीं की देन
कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तिर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है। कहते है कि बाद में वे महर्षि कश्यप को सारी पृथ्वी तथा देवराज इंन्द्र को अपने सारे शस्त्र सौंप महेन्द्र पर्वत पर चले गए जहां वे आज भी तपस्यारत हैं। हनुमानजी व अस्वथामा की तरह परशुरामजी को भी चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है भगवान विष्णु के होने वाले दसवें अवतार कल्कि को भी वे ही शिक्षा-दीक्षा देंगे।
(लेखक कथावाचक, विद्वान है और आपने देशभर में परशुराम यात्रा निकाल परशुरामजी के बारे में भ्रांतियों का निराकरण किया था)