(कोरोना को लेकर भुवनेश शर्मा की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट)
आज जब आधे से अधिक विश्व कोरोना के खिलाफ युद्ध को जीतने के मुहाने पर खड़ा है, भारत इसकी दूसरी व पहले से प्रचंड लहर का सामना कर रहा है। लगभग सभी राज्यों ने संसाधनों की कमी से हाथ खड़े कर दिए हैं और संक्रमितों की संख्या और मौतें रोजाना नए रिकॉर्ड बना रही है। हमारे वैज्ञानिक सलाहकारों का कहना है कि इसकी तीसरी लहर भी आयेगी। ऐसे में हमारे लिए यह आंकलन करना अतिआवश्यक हो जाता है कि आखिर कोरोना की दूसरी लहर का जिम्मेदार कौन है?
हम भारत के लोग
भारतीय संविधान के ये शुरुआती शब्द ही शायद कोरोना की दूसरी लहर का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि पहले स्थान पर राजनेताओं और सरकारों को रखना अपेक्षाकृत आसान होता परन्तु सत्य नहीं। हम इस बात से मुंह नहीं मोड़ सकते कि जब पहली लहर का वेग कुछ कम हुआ तो हमने उसे खत्म ही समझ लिया। अगर नेताओं ने रैलियां बुलायी तो उसमें जाने वाले हम ही लोग थे। अगर सरकारों ने धार्मिक आयोजनों की अनुमति दी तो उसमें बढ़ चढक़र हिस्सा लेने वाले भी हम ही लोग थे।
मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग जैसी चीजों को हमने फिजूल के तर्कों के साथ त्याग दिया और शादी, समारोह जैसे आयोजनों में भारी भीड़ बुलाकर हमने जैसे मुर्छित कोरोना को संजीवनी बूटी दे दी। हमने शायद इस बीमारी की गंभीरता कभी समझी ही नहीं। वैज्ञानिक आधारों पर विश्वास करने की जगह हमने अंधविश्वासों का सहारा लिया और इन सबका नतीजा यह है कि कल तक जो कोरोना हमें आस-पड़ोस या औरों को होने वाली बीमारी लगता था, आज उसने हमारे भी घर-आंगन में पैर पसार लिए है और साथ ही न जाने कितनो की जिंदगी लील गया।
चुनी हुई सरकारें
नि:संदेह सरकारों को हम ही लोग चुनते हैं, परन्तु इस प्रकार चुनाव द्वारा हम उन्हें कुछ विशेष शक्तियां व अधिकार प्रदान करते हैं और इससे भी बढक़र उन्हें मिलती है जिम्मेदारी। 135 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य व सुगम जीवन निर्वहन की जिम्मेदारी। जिसे निभाने में पिछले कुछ महीनों में सरकारें पूर्णतया विफल रही है।
प्रत्येक देशवासी गवाह है कि जब हमारे जिम्मेदारों को साथ मिलकर कोरोना से लडऩा था वे आपस में चुनावी लड़ाई लड़ रहे थे। जब उन्हें जीवनरक्षक दवाओं व उपकरणों की व्यवस्था करनी चाहिए थी वे एक-एक सीट के लिए मरने मारने पर उतारू थे और आज जब मरीजों के साथ-साथ व्यवस्थाओं का भी दम फूल रहा है तब बड़ी-बड़ी हुंकार भरने वाले एक भी योद्धा जमीन पर नहीं दिखाई दे रहे।
जब एक के बाद एक कई देशों ने दूसरी व तीसरी लहर के मद्देनजर सख्तियां लगाई तब हमारी सरकारें खुद की पीठ थपथपाने में लगी रही। जब बाकी देश वैक्सीन द्वारा खुद के लोगों को सुरक्षित करने में लगे थे हमारे यहां विपक्ष चुनावी फायदे के लिए उसी वैक्सीन पर सवाल उठा रहा था। जब तमाम वैज्ञानिकों ने दूसरी लहर की चेतावनी दी तो हमारे जिम्मेदारों ने टेस्टिंग कम करके व आंकड़ों में उलटफेर करके स्थिति सही दिखाने की कोशिश की।
परन्तु आज जब अस्पताल से श्मशानों तक कतारें हैं, तब सारा दोष बीमारी की भयावहता पर डालकर सरकार अपने कर्तव्यों से मुक्त नहीं हो सकती। माना बीमारी भयावह है परन्तु उससे भी भयावह है हमारी सरकारों का यह रवैया।
हमारी अदूरदर्शिता
हमने आग लगने पर ही कुआं खोदने की कहावत को हमारे जीवन में इस तरह आत्मसात कर लिया है कि हम दूसरों की गलतियों से सीखना ही भूल गये हैं। जिस तरह हमें पहली लहर से पहले सभी देशों के हाल पता थे और हमने उसी अनुरूप कदम भी उठाए, उसी तरह हमें दूसरी लहर का भी पूर्वानुमान था परन्तु हमनें बाहरी उड़ानों पर प्रतिबंध लगाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। हमें जरूरत थी जो वायरस म्यूटेंट पहले से ही सम्पूर्ण देश में फैल चुका था उसकी पहचान करते और संक्रमण को आगे फैलने से रोकते।
पहली लहर के अनुभवों के आधार पर आवश्यक दवाओं व ऑक्सीजन का उत्पादन व भण्डारण करते एवं पहली व दूसरी लहर के बीच मिले समय में अपनी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर ढंग से तैयार करते। उसके साथ दूसरी लहर को रोकने के साथ-साथ उससे लडऩे के लिए भी मुस्तैद रहते, परन्तु हमारे शाश्वत चलने वाले चुनावों में व्यस्त सरकारों ने वह मौका खो दिया। वक्त पर न जागने व सर पर खड़ी विपदा को देखकर भी शुतुरमुर्ग जैसे आंखें मूंदने से आज हालात बद से बदतर हो गए।
इन सबका परिणाम यह है कि आज हम सर्वाधिक संक्रमितों के साथ ऐसे स्थान पर खड़े है जहां हमारे हाथ में कुछ भी नहीं रहा और हमारे पैरों के नीचे से जमीन खिसकती जा रही है। अगर हम अब भी नहीं संभले तो भविष्य निश्चित ही और भयावह होगा।
(मूलत: बिसाऊ/सीकर के रहने वाले भुवनेश शर्मा वर्तमान में मुंबई में न्यू इंडिया एश्योरेंस में ऑफिसर पद पर कार्यरत हैं)