@ राहुल पांडे
जयपुर। वैदिक मंत्रोच्चार की आध्यात्मिक शक्ति को भले ही अपने आपको छदम् धर्मनिरपेक्ष कहने वाले नहीं माने,लेकिन साइंटिस्टों ने अपनी रिसर्च में माना है कि बचपन से ही वैदिक मंत्रोच्चार करने वालों का दिमाग सामान्य लोगों से तेज होता है।
CBMR की हालिया रिसर्च के अनुसार अल्प आयु से ही मंत्रोच्चार व वैदिक शिक्षा ग्रहण करने वाले लोग सामान्य लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान, विचारशील व तार्किक होते हैं। उनकी याददाश्त,समझने की क्षमता व मानसिक संतुलन बेहतर होता है। इसका मूल कारण मंत्रोच्चार से दिमाग में उपजने वाली सकारात्मक सोच है। ऐसे लोग ज्यादा भावुक, हाजिर जवाब व तर्कशील भी होते हैं। वैदिक मंत्र कोरोना से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने तथा इस दौरान आने वाली साइकलॉजिकल समस्या के निदान में भी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। साइंटिस्टों ने मानसिक अवसाद का अपने शोध में उल्लेख भी किया हैं।
लखनऊ स्थित सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (CBMR) के डॉ उत्तम कुमार, डॉ अंशिका सिंह व क्राइस्ट यूनिवर्सिटी बेंगलुरु के साइकोलॉजी विभाग के डॉ. प्रकाश के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के मस्तिष्क के कुछ हिस्से जैसे हिप्पोकैंपस, थैलमस व इंसुला सामान्य लोगों से अधिक विकसित होते हैं, जिसका असर याददाश्त, तार्किक व बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है।
क्या कहता है रिसर्च?
रिसर्च के लिए CBMR की टीम ने 25-25 युवाओं के ऐसे दो दलों का निर्माण किया जिनमें से एक दल ने बचपन से ही विधिवत मंत्रोच्चार द्वारा वेदों की शिक्षा प्राप्त की व प्रशिक्षित पंडित हैं तथा दूसरा दल सामान्य लोगों का जिन्हें संस्कृत का ज्ञान तो है परन्तु वे नियमित मंत्रोच्चार व वेदों का नियमित पाठ व अध्धयन नहीं करते।
रिसर्च में दोनों दलों की मस्तिष्क की संरचना का अध्ययन किया गया व पाया कि प्रशिक्षित पंडितों के दल में थैलेसम में ग्रे मैटर की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गयी जिसकी वजह से सीखने व समझने की क्षमता बढ़ती है। इसी प्रकार याददाश्त को प्रभावित करने वाला हिस्सा हिप्पोकैंपस भी इस दल में अधिक सक्रिय मिला। इनमें लगातार मंत्रोच्चार से संदेशवाहक न्यूरोन्स बेहतर कार्य करने लगे जिनसे त्वरित जवाब देने की क्षमता बढ़ती है व लेफ्ट इंसुला के ज्यादा सक्रिय होने से इनके उच्चारण की शुद्धता भी बढ़ जाती है।
क्या है वजह?
रिसर्च टीम के अनुसार गुरुकुल में अल्प आयु से ही मंत्रोच्चार व सस्वर उच्चारण द्वारा वेदों की शिक्षा दी जाती है। वेदों को श्रुति भी कहा जाता है अर्थात गुरु अपने शिष्यों को मौखिक रूप से सभी वेदों का अध्ययन करवाता है तथा शिष्यों को भी लगातार उसे दोहराकर कंठस्थ करते हुए उनका भावार्थ समझना होता है।
औसतन 10-15 साल इसी प्रक्रिया को दोहराने से मस्तिष्क एक विशेष प्रकार से प्रशिक्षित हो जाता है तथा उसके अंदरूनी हिस्सों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मंत्रों का उच्चारण भी एक निश्चित लय में ही किया जाता है जिसमें वाणी में तनाव कम व सांसों का क्रम नियमित होता है। परिणामस्वरूप मस्तिष्क में ग्रे मैटर की मात्रा बढ़ जाती है। यही ग्रे मैटर सीखने, समझने व निर्णय क्षमता को बढ़ाता है। इसी तरह एंगुलर गायरिस में बदलाव की वजह से रिकॉल क्षमता ज्यादा हो जाती है।
याददाश्त व जवाब देने की बढ़ती है क्षमता
डॉ. कुमार के अनुसार भी मंत्रोच्चार वालों में मस्तिष्क की मेमोरी (हिप्पोकेंपस) का स्कोर सामान्य की अपेक्षा ज्यादा मिला। जब इंसान अवसाद में होता है तो ये हिप्पोकेंपस मरने लगते हैं। इसी तरह लिखने, समझने व किसी बात को संग्रह करने वाले हिस्से (थैलमस) में ग्रे मैटर ज्यादा मिला। स्पष्ट है कि वैदिक अध्ययन करने वालों में सकारात्मकता व याददाश्त तेज होती है।
वैदिक मंत्रोच्चार पर देश में पहला अध्ययन
काउंसिलिंग के बाद फंक्शनल एमआरआई से सभी की ब्रेन मैपिंग की गई। ब्रेन के स्कोर के हिसाब से डाटा का आकलन किया गया। डॉ. उत्तम का दावा है कि मस्तिष्क की संरचना के आधार पर वैदिक मंत्रोच्चार को लेकर यह देश में पहला अध्ययन है। इससे मानसिक व न्यूरो से जुड़ी बीमारियों के इलाज में काफी मदद मिलेगी।
इनसे भी तेज दिमाग मंत्रोच्चार वालों का
मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी विभिन्न प्रकार के कौशल से जुड़ी हुई होती हैं जैसे संगीत सीखना या अभ्यास करना ,गोल्फ, वीडियों गेम, ड्राइवरी, ड्रमिंग, करतब दिखाना आदि अनेक कलाओ से ज्यादा वैदिक मंत्रोच्चार वालों का दिमाग तेज मिला।
यूं करता है सक्रियता से कार्य दिमाग
श्लोक, मंत्र का उच्चारण करते वक्त सांस की गति पर नियंत्रण जरूरी होता है। इससे दिमाग को संदेश देने वाले न्यूरॉन्स में धीरे-धीरे बदलाव शुरू हो जाता है। कुछ समय बाद बदलाव स्थायी हो जाता है। इससे दिमाग अधिक सक्रियता से कार्य करने लगता है। इस रिसर्च से इतर हम देखे तो आध्यात्म से जुड़े लोगों का तो यहां तक कहना है कि मंत्रोच्चार से श्वांस क्षमता भी बढ़ती हैं। वैदिक गुरुकुल में अध्ययन करने वालों तथा नियमित मंत्रोच्चार करने वाले बीमार भी कम होते है।
रिसर्च से वैदिक शिक्षा के खुले नए सिरे से द्वार
आदिकाल से ही हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु रहा है। इस देश ने आर्यभट्ट, वराहमिहिर, सुश्रुत जैसे विद्वान व नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय दिये है, जिसमें शिक्षा प्राप्त करने हेतु देश-विदेश से लोग आते रहे हैं। इन सबमें एक महत्वपूर्ण योगदान हमारी वैदिक शिक्षा प्रणाली का भी रहा है। इस रिसर्च से जहां एक तरफ पुन: हमारी पुरातन परंपराओं की सर्वोच्चता साबित हुई है वहीं दूसरी ओर रिसर्च ने भी भविष्य में मंत्रोच्चारण व वैदिक शिक्षा में अपार संभावनाओं के द्वार खोल दिए है।
कोरोना पीडि़तों को भी मिलेगा इसका लाभ
डॉ. उत्तम कुमार के अनुसार उनके इस रिसर्च से कोरोना काल में लोगों में मानसिक समस्या बढ़ी है। ऐसे में उनके इलाज के लिए तैयार होने वाले नए प्रोटोकॉल को बनाने में इस अध्ययन से मदद मिलेगी। उनके रिहैबिलिटेशन में मदद मिलेगी।
इनका कहना है
वैदिक मंत्रोच्चार की शक्ति को सम्पूर्ण दुनिया अपने अध्ययनों में पहले भी मान चुकी है,लेकिन भारत में ही एक वर्ग ऐसा है जो सच्चाई को स्वीकार करने के स्थान पर अर्नगल टिप्पणियां करता रहता हैं। इस रिसर्च से ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों की बोलती बंद हो जाएगी।
उनके यहां गुरुकुल में वैदिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे 2020 में कोरोनाकाल के दौरान वेद विद्यालय,रैवासा में ही थे। वे इस दौरान पूर्णत: स्वस्थ्य रहे। आमजन भी नियमित एक छोटे से मंत्र अथवा श्लोक का जाप करें तो उनमें न केवल सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा बल्कि वातावरण में बदलाव आने से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। इस कालखंड में दुर्गा सप्तशती के महामारी नाशक मंत्र का जाप श्रेयस्कर हैं।
लक्ष्मीकांत शास्त्री
आचार्य,वेद विद्यालय,रैवासा (सीकर)
Scientific Reports : Extensive long-term verbal memory training is associated with brain plasticity
(लेखक जयपुर में शासन सचिवालय स्थित खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में सीनियर प्रोग्रामर के पद पर कार्यरत हैं।)