चमत्कारी सालासर बालाजी और पूजाने वाला एक सेवक

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  • देश में एकमात्र दाढ़़ी वाले बालाजी

हर्ष विमलेश शर्मा  @ जयपुर ।

रामभक्त हनुमान के यूं तो देशभर में अनेकों धाम है। देश के 16 प्रमुख और प्राचीन हनुमान मंदिरों में सालसर बालाजी का भी सबसे प्रसिद्ध मंदिर आता हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि पूरे देश में सालासर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां दाढ़ी मूंछ वाले बालाजी विराजमान हैं।
राजस्थान के चूरू जिले में स्थित सालासर बालाजी की राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों तथा देश-दुनियां में बसे प्रवासियों में सबसे ज्यादा हैं। सालासर को उत्तर भारत के प्रमुख मंदिरों मेंं से एक माना जाता हैं। दाढ़ी- मूंछो वाले इस चमत्कारी बालाजी की ख्याति का अंदाजा आप इसी से लगा सकते है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, पूर्व उप राष्ट्रपति सईद अंसारी की धर्मपत्नी सलमा अंसारी सहित कई हस्तियां सालासर बालाजी के दरबार में माथा टेकने आ चुके हैं।
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चमत्कारी मंदिर और बाबा मोहनदास
करीब तीन सौ साल पहले हनुमान भक्त मोहनदास जी महाराज को मूर्तिरूप मेंं प्रकट होने का वचन दिया और उसी वचन के अनुसार नागौर जिले के आसोटा गांव में एक किसान के खेत में हल जोतते समय दाढ़ी-मूंछो वाले बालाजी की प्रतिमा प्रकट हुई। बताते है कि आसोटा के ठाकुर इस मूर्ति को हवेली में ले आए, लेकिन बालाजी ने ठाकुर को स्वप्न में मूर्ति को सालासर पहुंचाने की आज्ञा दी। दूसरी तरफ बालाजी ने अपने परमभक्त मोहनदास जी से कहा कि प्रतिमा लेकर आ रही बैलगाड़ी जहां रूके वहीं इसकी स्थापना कर देना। बाबा मोहनदास जी ने संवत् 1811 में सावन शुक्ला नवमीं को बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। वर्तमान में उसी स्थान पर सालासर में बालाजी महाराज का भव्य मंदिर बना हुआ हैं।

 

छठी पीढ़ी के हाथों है प्रबंधन का जिम्मा
सालासर बालाजी का यह निज मंदिर है जहां मोहनदास जी ने अपने भांजे उदयदास को चोला प्रदान कर प्रथम पुजारी नियुक्त किया था। संंवत: 1850 की वैसाख शुक्ल त्रयोदशी को मोहनदासजी समाधिस्थ हो गए। उदयदास जी के इसरदास व कनीराम हुए। वर्तमान में उनकी छठी पीढ़ी मंदिर प्रबंध का जिम्मा संभाले हुए हैं।

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अखंण्ड धुणी और शमी का पेड़
सालासर स्थित बालाजी मंदिर में बाबा मोहनदासजी की ओर से प्रज्जवलित की गई धुणी आज भी अखंड प्रज्जवलित हैं। तीन सौ साल इस पुरानी धुणी से बालाजी के यहां आने वाले भक्त धुणी की भभूत ले जाना नहीं भूलते। मंदिर प्रांगण में वर्षों पुराना एक शमी का पेड़ भी हैं, जिस पर मनोकामना पूर्ण होने के लिए नारियल बांधकर जाते हैं। कहते है कि मोहनदास जी महाराज ने इसी पेड़ के नीचे बैठ मौनव्रत तपस्या की थी। इस चमत्कारी स्थान को पूजाने में मोहनदासजी महाराज को ही माना जाता हैं। सालासर के पुजारी जय श्रीबालाजी के साथ श्री मोहनदासजी महाराज की जय बोलना नहीं भूलते।

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चूरमें का प्रमुख भोग
सोने के सिहांसन पर विराजित बालाजी महाराज का प्रमुख भोग चूरमा हैं। कहते है कि जिस किसान के खेत में मूर्ति प्रकट हुई थी उसकी पत्नी ने पहला भोग चूरमे का लगाया था। तब से यहां चूरमे का भोग, सवामणी का प्रमुख प्रचलन चला आ रहा हैं। वैसे बहुत से भक्त बैसन के दाणेदार लड्डू तथा पेड़ों का भोग भी प्रमुखता से लगाते हैं।

मंदिर निर्माण में साम्प्रदायिक सद्भाव
सालासर मंदिर निर्माण से साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी जुड़ी हुई है। मंदिर को भव्य आकार देने में मुसलमान कारीगर नूर मोहम्मद व दाऊ प्रमुख थे।

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कैसे पहुंचे सालासर
सालासर बालाजी का यह मंदिर जयपुर-बीकानेर वाया नोखा राजमार्ग पर सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। सीकर से 57 तथा लक्ष्मणगढ़ सीकर से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए अब तो कई राष्ट्रीय व राजमार्ग बन चुके हैं। हवाईयात्रा करने वाले जयपुर से सड़क मार्ग से यहां पहुंचते हैं। सुजानगढ़ व सीकर तक रेलसेवा भी हैं। सालासर में यात्री निवास के लिए लग्जरी सुविधाएं धर्मशाला, होटल, लॉज बड़ी तादाद में उपलब्ध हैं।

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